अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि (Mahant Narendra Giri) की मौत की जांच योगी आदित्यनाथ सरकार ने जिस तरह हड़बड़ी में केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपी, उससे संदेह के बादल छंटने के बजाय कुछ अधिक गहरे हो गए. सरकार ने 24 घंटे पहले ही इस मामले की जांच के लिए 18 सदस्यीय विशेष जांच दल (एसआईटी) बनाया था.
ऐसा लगता है कि सरकार ने जांच सीबीआई को सौंपने का फैसला इसलिए भी लिया कि महंत की मौत पर संदेह उठाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गई थीं. ऐसे में, केन्द्र सरकार और बीजेपी नेतृत्व ने योगी को यह मामला सीबीआई को सौंपने की सलाह अनौपचारिक तौर पर दी. नरेंद्र गिरि का पार्थिव शरीर 20 सितंबर को प्रयागराज के बाघंबरी गद्दी मठ के उनके कमरे में मिला. यह बिस्तर के बगल में जमीन पर पड़ा था और रूम का पंखा चल रहा था.
मौके पर पहुंची पुलिस को मठ के लोगों ने बताया कि कमरे का दरवाजा खटखटाने पर भी जब अंदर से कोई आवाज नहीं आई, तो उन लोगों ने दरवाजा तोड़ दिया. उस वक्त नरेंद्र गिरि का शरीर पंखा से लटक रहा था. उन लोगों ने रस्सी काट दी, उनके शरीर की जांच की, तो वह ठंडा पड़ चुका था, इसके बाद उन लोगों ने पार्थिव शरीर को जमीन पर लिटाकर पंखे का स्विच ऑन कर दिया.
नरेंद्र गिरि 72 साल के थे और वह पैरों तथा घुटने में दर्द की बातें अपने लोगों से बराबर किया करते थे. ऐसे में, आत्महत्या के लिए उन्होंने इस तरह मशक्कत की, इस पर लोगों को आश्चर्य ही है। वैसे, पुलिस को मठ के कुछ लोगों ने बताया कि जिस रस्सी से वह लटके मिले, उसे उन्होंने खुद मंगाई थी. उन्होंने सल्फास की गोलियां भी हाल में मंगवाई थीं. हालांकि इस मामले की जांच से जुड़े लोग कुछ भी आधिकारिक तौर पर नहीं बता रहे लेकिन यूपी पुलिस के एक अफसर ने कहा कि आम तौर पर किसी भी वारदात स्थल पर सबसे पहले पास की चौकी या थाने से लोग पहुंचते हैं.
लेकिन जिस तरह सबसे पहले पहुंचने वालों में बड़े अफसर भी थे, वह थोड़ा आश्चर्य पैदा करने वाला है. सीबीआई जांच शुरू होने से पहले जिन अधिकारियों पर इस पर नजर रखने को कहा गया था, उनमें से एक ने कहा कि जिस दिन महंत नरेंद्र गिरि की मौत हुई, उस दिन उनके फोन पर कुल 35 कॉल आई थी. इनमें से 18 पर उन्होंने बातचीत की थी. बातचीत करने वालों में हरिद्वार के कुछ लोग और 2 बिल्डर भी थे.
ये फोन कॉल रिकॉर्ड भी जांच के दायरे में हैं. वैसे, यह भी अजीब ही है कि मठ में लगे कैमरों के रिकॉर्ड अब तक नहीं मिल पाए हैं. मठ के कई लोग खुद भी इस बात से आश्चर्यचकित हैं कि मठ द्वार से पहली मंजिल के विश्राम कक्ष तक के कैमरे उस दिन अचानक बंद क्यों हो गए थे. इसी कक्ष में नरेंद्र गिरि का शव मिला था. मठों के पास अकूत संपत्ति होना आम बात है. इस मठ से जुड़ी जमीन की खरीद-बिक्री पर भी जांच अफसरों की निगाह है. लेकिन नरेंद्र गिरि के सुरक्षाकर्मी भी दो वजहों से जांच के दायरे में हैं। उनकी टू टियर यानी दोहरी सुरक्षा थी.
ऐसे में भी अगर वह दवाब में थे, और आत्महत्या से तो यही लगता है कि वह दवाब में थे, तो यह बात लोगों के गले आसानी से नहीं उतर रही. इसी वजह से ऐसे सुरक्षा कर्मियों को खास तौर से जांच के दायरे में रखा गया है जिनके पास लग्जरी कारें और करोड़ों के बंगले भी हैं. आत्महत्या से पहले लिखे गए नरेंद्र गिरि के पत्र की फॉरेन्सिक जांच की बात प्रयागराज रेंज के आईजी केपी सिंह ने पहले दिन ही कही थी. यह रूटीन प्रक्रिया है. लेकिन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अंग- निरंजनी अखाड़ा के सचिव रवीन्द्र पुरी ने सार्वजनिक तौर पर इस पर यह कहते हुए प्रश्नचिह्न लगाया कि इस पर नरेंद्र गिरि के हस्ताक्षर वह नहीं लगते जिस तरह वह हस्ताक्षर किया करते थे.
रवीन्द्र पुरी का यह भी कहना था कि हस्ताक्षर के अलावा वह एक शब्द भी नहीं लिख सकते थे. ऐसे में, आठ पेज का पत्र लिखना संभव ही नहीं है. उनके परिवार वालों ने कहा है कि नरेंद्र गिरि दसवीं नहीं पास कर पाए थे, तब भी उन्होंने 9वीं तक की पढ़ाई तो की ही थी. वैसे, इस पत्र में उन्होंने अपने शिष्य रहे आनंद गिरि को लेकर जिस तरह की बातें कही हैं, उससे आरंभिक ध्यान उन पर ही टिका रहना स्वाभाविक है. वह गिरफ्तारी के बाद अभी न्यायिक हिरासत में हैं. वह गोरे, स्लिम, लंबे कद के हैं, लंबे बाल रखते हैं और संतों के बीच हीरो माने जाते हैं. कभी वह नरेंद्र गिरि के सबसे प्रिय शिष्य कहे जाते थे. लेकिन जमीन बिक्री के एक मसले की वजह से उनका अपने गुरु से झगड़ा हुआ, तो वह आमने-सामने हो गए.
आनंद गिरि ने नरेंद्र गिरि पर बाघम्बरी मठ की 40 करोड़ की जमीन बेच देने का आरोप लगाया था. आनंद ने नरेंद्र गिरि पर अधिकतर आरोप ‘वी सपोर्ट स्वामी आनंद गिरि’ और ‘फैन्स स्वामी आनंद गिरि’ नाम के फेसबुक पेज के जरिये लगाए थे. यहां तक कि आनंद गिरि नरेंद्र गिरि को नार्को टेस्ट कराकर दूध का दूधऔर पानी का पानी करने की चुनौती भी देने लगे थे. आनंद गिरि की ऑस्ट्रेलिया में दो शिष्याओं से बदसुलूकी के आरोप में 2019 में गिरफ्तारी भी हुई थी. ये घटनाएं 2016 और 2018 में होने के आरोप लगे थे. इन विवादों के बाद महंत नरेंद्र गिरि ने आनंद गिरि को बाघम्बरी मठ और निर्वाणी अखाड़े से निकाल दिया.
बाद में आनंद गिरि बरी हो गए. फिर, अखाड़े के लोगों ने बीच-बचाव कर सुलह कराई, तब आनंद की माफी मांगते हुए वीडियो सामने आई थी. दोनों में नया विवाद दुबारा तब शुरू हुआ जब आनंद ने नरेंद्र गिरि को बताए बिना हरिद्वार में आश्रम बना लिया. अब आनंद गिरि के कॉल डीटेल की जांच भी की जा रही है.
वैसे तो नरेंद्र गिरि राम मंदिर आंदोलन से जुड़े हुए थे और इसमें उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी. लेकिन 2019 में इलाहाबाद में पंचायती अखाड़े के सचिव आशीष, गिरि की संपत्ति विवाद में हत्या होने पर उन पर भी संदेह किया गया था. आशीष का शव रहस्यमय परिस्थितियों में मिला था. पुलिस को नरेंद्र गिरि के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिला था और उसने उन्हें क्लीन चिट दे दी थी.
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