बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार क्या इस बार विधानसभा चुनाव में आखिरी पारी खेल रहे हैं, क्या उन्होंने जेडीयू में उत्तराधिकारी ढूंढना शुरू कर दिया है, क्या नीतीश कुमार इस बार के विधानसभा चुनाव के बाद राज्य की राजनीति से खुद को अलग कर लेंगे, क्या जेडीयू का बीजेपी में विलय हो जाएगा?
बिहार विधानसभा चुनाव के बीच इस तरह के कई सवाल राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय बने हुए हैं. बतौर जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार के हालिया फैसले से इन सवालों को और भी बल मिलना शुरू हो गया है. राजनीतिक गलियारे में इन सवालों को क्यों बल मिल रहा है, आइए इसे समझने की कोशिश करते हैं.
प्रशांत किशोर को जेडीयू में लाने के पीछे क्या थी मकसद?
2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश और लालू यादव की जोड़ी के बिहार की सत्ता में आने पर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का काफी नाम हुआ था. कुछ ही महीने बाद प्रशांत किशोर को जेडीयू में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत करा दी गई थी. इस दौरान चर्चा शुरू हुई थी कि क्या नीतीश कुमार प्रशांत किशोर को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाना चाह रहे हैं. हालांकि प्रशांत किशोर ने पार्टी लाइन से अलग जाकर कई बयान दिए जिसके बाद उन्हें हाशिये पर ढकेल दिया गया और बाद में उन्हें पार्टी से भी निकाल दिया गया. इस बार के विधानसभा चुनाव में वह कहां हैं इसकी कोई खोज खबर भी नहीं है.
नीतीश कुमार ने बिहार चुनाव संभालने के लिए 5 नेता तय किए
बिहार की राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले जानते हैं कि जेडीयू जैसी पार्टी में नीतीश कुमार सर्वेसर्वा हैं. यहां तक की शरद यादव जैसे वरिष्ठ नेता नीतीश कुमार की इच्छा से अलग जाकर काम करने की कोशिश की तो उन्हें भी पार्टी से बाहर कर दिया गया. अब वही नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 की जिम्मेदारी संभालने के लिए पार्टी के पांच नेताओं को तय किया है. ये नाम हैं- संजय झा, अशोक चौधरी, विजय चौधरी, ललन सिंह और आरसीपी सिंह.
इन पांच नेताओं के कंधे पर बिहार विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी गई है. सूत्रों का कहना है कि इनसे कहा गया है कि वे पार्टी के फैसलों में सहभागी बनें. बीजेपी या किसी और राजनीतिक दल के साथ अगर बातचीत करनी है तो इन्हीं पांच चेहरे में से कोई एक जाएगा. कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी को जेडीयू में प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है. अशोक चौधरी तेज तर्रार नेता माने जाते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि अशोक चौधरी पासी जाति से आते हैं, इस तरह वह दलित चेहरा भी हैं. अशोक चौधरी नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाते हैं. माना जाता है कि जेडीयू में चुनिंदा नेता हैं जिनकी सीधी पहुंच नीतीश कुमार तक है.
नीतीश कुमार की ओर से बनाई गई टीम में जातीय संतुलन का खास ख्याल रखा गया है. अशोक चौधरी दलित, संजय झा ब्राह्मण, विजय चौधरी भूमिहार, ललन सिंह भूमिहार और आरसीपी सिंह कुर्मी बिरादरी से हैं. इन पांच चेहरों को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि नीतीश कुमार कोई दूर की राजनीतिक प्लानिंग कर रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि नीतीश कुमार पार्टी में सेकेंड लाइन नेतृत्व डेवलप कर रहे हैं.
इस वक्त नीतीश कुमार 69 साल के हैं. अगर इस बार सत्ता में आते हैं और पूरे पांच साल मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहते हैं तो वे अगले चुनाव तक 74 साल के हो जाएंगे. वह बिहार की सत्ता में करीब साढ़े 13 साल मुख्यमंत्री रह चुके हैं. इस लिहाज से देखें तो एक नेता के तौर पर उन्होंने बिहार में सफल पारी खेल चुके हैं. ऐसे में अटकलें हैं कि वह इस बार के विधानसभा चुनाव में अपने नेतृत्व में एनडीए गठबंधन को जीत दिलाने के बाद राजनीति के किसी दूसरे राह पर अग्रसर होंगे. हालांकि यह सब अटकलें हैं जब तक खुद नीतीश कुमार या उनके कोई करीबी इसका आधिकारिक पुष्टि नहीं कर देते हैं तब तक अटकलों का बाजार गर्म होता रहेगा.
इसके अलावा आपको बता दे कि बिहार विधानसभा चुनाव में आचार संहिता की घोषणा के बाद जोड़-तोड़ की राजनीति भी शुरू हो गई है. यहां तक कि जो बड़े नेता हैं वे अपने लिए ठिकाना भी ढूंढने लगे हैं. इसी के तहत बाहुबली नेता आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद ने भी सोमवार को राजद की लालटेन पकड़ ली है. पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी से उनके आवास पर जाकर उन्होंने मुलाकात की, जिसके बाद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई. इस अवसर पर लवली आनंद के बेटे चेतन आनंद भी वहां मौजूद थे.
कयास लगाया जा रहा है कि लवली आनंद अपने लिए और अपने कुछ नजदीकी लोगों के लिए राजद से टिकट ले सकती हैं. सदस्यता ग्रहण करने के बाद लवली आनंद ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि नीतीश सरकार हर विरोधी को जेल भेजने का काम कर रही है. इसलिए मैं इस सरकार को उखाड़ फेंकने और तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए जो भी संभव होगा, वो काम करूंगी.
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