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क्या यह किसानों की जीत है, जिसे हम सेलिब्रेट कर रहे हैं? | Aajkal Rajasthan
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क्या यह किसानों की जीत है, जिसे हम सेलिब्रेट कर रहे हैं?

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लंबे और बड़े स्तर पर विरोध के बाद मोदी सरकार ने किसानों और विपक्ष (राहुल गांधी) के सामने घुटने टेकते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया है. हालांकि अभी इसे संसद में वापस लेना बाकी है. लेकिन यह किसानों की बड़ी जीत है. मोदी सरकार अपने कदम पीछे खींचने के लिए नहीं जानी जाती है लेकिन पीछे खींचे हैं तो क्या सिर्फ किसान आंदोलन के कारण?
तमाम विश्लेषकों और अपने आप को निष्पक्ष पत्रकार कहने वालों का कहना है कि मोदी सरकार ने पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया है. चुनावी हार के डर से मोदी सरकार ने अपने कदम पीछे खींचे हैं. बिल्कुल इनका सही कहना है.
लेकिन तमाम विश्लेषक और निष्पक्ष पत्रकार जिस पहलू को भूल रहे हैं या यूं कहें कि जानबूझकर छूना नहीं चाहते वह राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का पहलू है. क्या किसान आंदोलन के आगे मोदी ने घुटने टेके हैं? बिल्कुल भी नहीं. इतने लंबे चले आंदोलन से और किसानों की शहादत से मोदी सरकार पर कोई फर्क पड़ा था? बिल्कुल भी नहीं.
अगर पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं तो उसका क्या असर पड़ जाता चुनाव पर और प्रधानमंत्री मोदी के खुद के प्रचार पर? आजकल जनता के अंदर सबसे अधिक फर्क किसी चीज का पड़ता है तो वह है टीवी मीडिया. मीडिया में किसान आंदोलन को, किसानों की बातों को कितना कवर किया जा रहा था? किसानों के पक्ष को कितना दिखाया जा रहा था? किसानों की मांगों को कितना जायज बताया जा रहा था? किसानों को कितना सही ठहराया जा रहा था? क्या यह बातें किसी से छुपी हुई हैं?
किसानों को तो मीडिया के सहारे बीजेपी कभी आतंकवादी, कभी खालिस्तानी, कभी देशद्रोही, कभी नकली किसान, कभी विदेशी फंडिंग से चलने वाला आंदोलन करार दे रही थी. क्या किसान इन बातों को रोक पाए? किसानों की बातों को कौन आगे बढ़ा रहा था सबसे अधिक और कौन समर्थन कर रहा था निष्पक्ष पत्रकारों और यूट्यूब चैनल्स के अलावा?
विपक्षी पार्टियों का समर्थन करने वाली जनता किसानों का समर्थन कर रही थी और सोशल मीडिया के जरिए उनकी बातों को आगे बढ़ा रही थी और मीडिया के प्रोपेगेंडा को नेस्तनाबूद कर रही थी और इन विपक्षी पार्टियों के समर्थकों में सबसे अधिक संख्या किसी की थी तो वह थे कांग्रेस के समर्थक. कांग्रेस के समर्थक भी अगर सबसे अधिक किसी को पसंद करते हैं तो वह है राहुल गांधी.
राहुल गांधी की जीत
निश्चित तौर पर यह किसानों की जीत है. लेकिन किसानों को यह बिल समझ में ही नहीं आया था और किसान आंदोलन करने वाले ही नहीं थे, किसान सड़कों पर उतरे ही नहीं थे, किसान आंदोलन होगा भी? यह बात किसी को पता ही नहीं थी. किसानों के नेता बाहर आए ही नहीं थे. राकेश टिकैत को कोई जानता ही नहीं था, उस वक्त राहुल गांधी ने पंजाब से लेकर हरियाणा तक ट्रैक्टर रैली निकालकर तीनों कृषि कानूनों का विरोध किया था, इन्हें वापस लेने की मांग की थी. राहुल गांधी ने संसद के अंदर सीना ठोक कर यह ऐलान किया था कि मोदी सरकार को इन तीनों को ऋषि कानूनों को वापस लेना ही पड़ेगा.
राहुल गांधी ने संसद के अंदर मोदी सरकार की आंख में आंख डालकर यह कहा था कि तीनों कृषि कानून उद्योगपतियों के लिए लाए गए हैं, मोदी सरकार के मित्रों के लिए लाए गए हैं. इन तीनों कृषि कानूनों से किसान बर्बाद हो जाएगा. राहुल गांधी ने संसद से लेकर सड़क तक और सोशल मीडिया तक मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों का पूरी दिलेरी से बिना डरे विरोध किया था और किसानों को यह विश्वास जताया था कि वह हर कीमत पर उनके साथ खड़े हैं. जिस वक्त विपक्ष की तमाम पार्टियां किसानों के नाम पर वोटों की फसल है काटने की तैयारी कर रही थी, उस वक्त भी राहुल गांधी किसानों के समर्थन में मोदी सरकार पर दबाव बना रहे थे.
जिन राज्यों में चुनाव थे, कांग्रेस को मालूम था वहां जनता समर्थन नहीं करेगी, क्योंकि वहां की जनता जाति और धर्म में बटकर या तो बीजेपी का समर्थन करती है या फिर क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं का उसके बावजूद राहुल गांधी किसानों की आवाज उठाए जा रहे थे. इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि राहुल गांधी चुनावी फायदे के लिए किसानों के पक्ष में आवाज उठा रहे थे और मोदी सरकार से सवाल कर रहे थे और दबाव बना रहे थे. राहुल गांधी ने लगातार प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बीजेपी पर और खासतौर से प्रधानमंत्री मोदी पर दबाव बनाया.
जिस वक्त तमाम विपक्षी पार्टियां देश के उद्योगपतियों का नाम लेने से डरती हैं, उस वक्त खुलेआम राहुल गांधी अंबानी और अडानी का नाम लेकर मोदी सरकार से मिलीभगत का आरोप लगाकर यह साबित कर रहे थे कि राहुल गांधी किसी बात से नहीं डरते. वह हर कीमत पर देश की जनता के साथ खड़े हैं, उनकी समस्याओं के लिए आवाज उठा रहे हैं.
मीडिया के जरिए भी हमेशा राहुल गांधी ने यही कहा कि यह कानून किसी भी कीमत पर किसानों के फायदे के लिए नहीं है, राहुल गांधी ने मीडिया के अंदर खुलेआम ऐलान किया था कि आखिर में मोदी सरकार को झुकना पड़ेगा और कृषि कानूनों को वापस लेना ही पड़ेगा और पूरी दिलेरी से फुल कॉन्फिडेंस के साथ राहुल गांधी ने इस बात का ऐलान किया था और आखिर में प्रधानमंत्री मोदी को देश से माफी मांगते हुए इन तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान करना पड़ा.
तो अपने आप को हर मुद्दे का विश्लेषक बताने वाले और निष्पक्ष पत्रकार कहने वाले किसानों की इस जीत में थोड़ा बहुत भी राहुल गांधी को श्रेय क्यों नहीं दे रहे हैं?
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