सीकर. अपना बेड़ा पार के लिए प्रशासन शिक्षा विभाग का बंटाधार करने में जुटा है। सरकार के कानून-कायदों को भी नहीं बख्शा जा रहा। ताजा मामला शिक्षकों को जनाधार से राशन कार्ड के मिलान का काम सौंपना है। जिसके लिए आरटीई एक्ट 2009 व पिछले साल जारी मुख्य सचिव डीबी गुप्ता के आदेशों को अनदेखा कर दिया गया है। जिसमें एक्ट व राज्य सरकार के निर्देशों का हवाला देते हुए शिक्षकों को गैर शैक्षिक कार्यों में नहीं लगाने के कठोर निर्देश थे। पर आदेश की अनदेखी कर एसडीएम गरिमा लाटा ने शिक्षकों को राशन डीलर के साथ काम में नियुक्त कर दिया है। जो सरकार, कानून व शिक्षा तीनों व्यवस्था के खिलाफ है। इसेे लेकर शिक्षक संगठनों में आक्रोश गहरा गया है।
यूं समझें मामला
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना के तहत जनाधार से राशन कार्ड का मिलान होना है। इसके लिए सीकर एसडीएम गरिमा लाटा ने आदेश जारी कर बीएलओ को ये काम सौंपा है। जो राशन डीलर से रोजाना प्रपत्र लेंगे और उसे भरकर व सत्यापित कर वापस राशन डीलर को देकर ब्लॉक अधिकारी को रिपोर्ट देंगे। अब चूंकि 90 फीसदी बीएलओ सरकारी स्कूल के शिक्षक ही है। ऐसे में उन शिक्षकों को अब स्कूल में पढ़ाने की बजाय राशन डीलर के साथ काम करना होगा। जिससे स्कूलों की शैक्षिक व्यवस्था एक से दो महीने तक प्रभावित हो सकती है।
ये कहता है आरटीई एक्ट
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 27 व नियम 21 (3) के अनुसार शिक्षकों को राष्ट्रीय जनगणना, आपदा राहत कार्यों तथा स्थानीय प्राधिकरण, राज्य विधानसभाओं या संसद के चुनावों से संबंधित कार्यों के अलावा गैर- शैक्षणिक कार्यों में नहीं लगाया जा सकता है।
बोर्ड परीक्षा की तैयारी प्रभावित
बीएलओ शिक्षकों को इस काम में लगाने से कई स्कूलों की बोर्ड कक्षाएं भी प्रभावित होगी। क्योंकि कई बीएलओ विषय अध्यापक भी हैं। मसलन बजाज रोड स्थित राबाउमावि में गणित की शिक्षिका अनुप्रिया चौधरी को इस कार्य में लगाया गया है। जो इस विषय की एकलौती शिक्षक होने की वजह से यहां गणित जैसे अहम विषय की पढ़ाई प्रभावित होगी।
घर घर जाकर लाए बच्चे, कैसे रहेगा विश्वास
शिक्षकों को गैर शैक्षिक कार्यों में लगाने पर शिक्षक संगठनों में आक्रोश है। उनका कहना है कि शिक्षक गांव- ढाणियों में घर- घर जाकर अभिभावकों केा विश्वास में लेकर सरकारी स्कूलों का नामांकन बढ़ा रहे हैं। उन्हीं शिक्षकों को शैक्षिक कार्यों से हटाकर दूसरे कार्यों में लगाया जा रहा है। इससे सरकारी स्कूलों की शैक्षिक व्यवस्था बिगडऩे सहित अभिभावकों में सरकारी स्कूल के प्रति विश्वास घटेगा।
इनका कहना है:
कोरोना की वजह से डेढ़ साल में बच्चों की पढ़ाई को हुए नुक़सान की भरपाई की जिम्मेदारी सबकी है। लेकिन बेपरवाह प्रशासनिक अधिकारी आरटीई एक्ट व मुख्य सचिव के आदेश की पालना नहीं कर रहे हैं तो शिक्षक भी उनके आदेशों को मानने को बाध्य नहीं है। संगठन ऐसे आदेशों का पुरज़ोर विरोध करेगा।उपेन्द्र शर्मा, प्रदेश महामंत्री, राजस्थान शिक्षक संघ (शेखावत)
शिक्षकों को गैर शैक्षिक कार्यों में लगाना सरकारी स्कूल के बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। ऐसे आदेशों को प्रशासन को वापस लेना चाहिए। विषय अध्यापकों को तो बिल्कुल भी ऐसे कार्यों में नियुक्त नहीं करना चाहिए।विजय कुमार, जिलाध्यक्ष, शिक्षक संघ राष्ट्रीय, सीकर
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