सीकर. खेत खलियानों को कभी पुरुष प्रधान श्रम समझा जाता था…लेकिन सीकर की महिला किसानों ने अपने संघर्ष से इस क्षेत्र में भी दबदबा बना लिया। कृषि के जिन क्षेत्रों में पुरूषों ने कब्जा किया हुआ था वहां घूंघट तक सिमटी रहने वाली महिलाओं ने आकर एक मुकाम बनाया है जहां तक पहुंच पाना किसी पुरुष के लिए आसान नहीं है। ये महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाने के बजाय वे उन्हें काफी पीछे छोड़ते हुए आगे निकल गई हैं और अपनी मेहनत के बूते नित नए कामयाबी के झंडे गाड़ रही है। सीकर की जिले की प्रगतिशील महिला किसानों ने बताया कि किसान का मतलब नहीं है धोती पहनने और हल चलाने वाला व्यक्ति। मौजूदा दौर में बाजार के रूख को देखते हुए खेती में बदलाव अपनाने वाला ही कामयाब किसान है। यह संघर्ष की कहानी है महिला किसान संतोष की जो खेती में नवाचारों के कारण देशभर में चर्चित है। सीकर जिले के झीगर छोटी गांव की संतोष आठवीं तक पढ़ी हैं। संतोष ने गाजर की खेती में नवाचार कर देशभर में नाम कमाया है। संतोष को गाजर में नवाचार पर तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सम्मानित भी किया था। इसके अलावा इन्हें खेती में नवाचार पर राज्य स्तर पर जैविक खेती व हलधर पुरस्कार भी मिला है। संतोष ने गांव में देसी तकनीक से गोबर गैस प्लांट लगाया है। गोबर गैस प्लांट से पहले खुद की रसोई व बाद में ग्रामीणों की रसोई तक गैस पहुंचाई। इस तरह गोबर गैस से 20 घर रोशन हो रहे हैं। संतोष पचार हर दिन महिलाओं के बीच जाती है। उन्हें खेती में नवाचार के बारे में समझाती है।
ये किया गाजर में नवाचार
प्रगतिशील महिला किसान ने गाजर में नवाचार कर सबको हैरत में डाल दिया। उसने काली व लाल गाजर का रंग अंदर से बदल कर उसमें मिठास को तो बढ़ाया ही है साथ ही उत्पादन में भी डेढ़ से दो गुना तक का फायदा हुआ है। इसके लिए उसने शहद व देशी घी को प्रयोग में लिया है। दोनों से बीज का नया परागण तैयार कर बुआई की और 75 दिनों में डेढ़ से ढ़ाई फीट लंबी गाजर पककर तैयार हो गई। उसने बताया कि एक किलो गाजर के बीज में 15 एलएल शहद व पांच एमएल घी को मिलाकर छाया में सुखा दिया था। इनकी बिजाई कर दी। बीज अंकुरित भी जल्दी हो गए और खराबा भी ज्यादा नहीं हुआ। जब पकी हुई गाजर को काट कर देखा तो अंदर सफेद की जगह रंग पीला हो गया था। मिठास भी पांच फीसदी तक ज्यादा बढ़ गई।
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