मौजूदा राजनीतिक सत्ता ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हिंदुस्तान की हर संस्था को, हिंदुस्तान के हर व्यक्ति को प्रभावित करने का काम किया है.
मौजूदा परिवेश में सीबीआई, ईडी से लेकर तमाम सरकारी एजेंसीया सत्ता के इशारे पर विपक्षी नेताओं पर बिना किसी ठोस आधार की कार्यवाही कर रही हैं, घूंगरू मीडिया की बात किसी से छुपी नहीं है, घुंघरू मीडिया मौजूदा सत्ता का प्रचारक मात्र बनकर रह गया है.
मोदी सत्ता में अगर कहीं सबसे ज्यादा बदलाव देखने को मिला है तो वह है सेना की कार्यवाही में.
पाकिस्तान के इतिहास में पाकिस्तान की सत्ता पर लगभग आधे से अधिक समय तक पाकिस्तानी सेना का कब्ज़ा रहा है. पाकिस्तानी सेना ने पाकिस्तान की हुकूमत पर लंबे समय तक राज किया है, जिसका नतीजा यह हुआ है कि, आज दुनिया के सबसे बड़े भिखारी देशों में पाकिस्तान की गिनती होती है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था जमीनोजद चुकी है. पाकिस्तान अपने देश को चलाने के लिए तमाम देशों से भीख मांगने के लिए मजबूर है.
कुछ साल पहले तक हिंदुस्तान की गिनती दुनिया की तमाम बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच होती थी, लेकिन मौजूदा समय में देखा जाए तो हिंदुस्तान विदेशी कर्ज के भंवर में डूबता जा रहा है. वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सत्ता से पहले लगभग 67 सालों में यानी 2014 तक हिंदुस्तान के ऊपर 54,90,763 करोड़ रुपए था, जो सितंबर 2018 में बढ़कर 82,03,253 करुण रुपए तक पहुंच गया.
हिंदुस्तान का राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है, रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सत्ता में हिंदुस्तान की सरकार का कर्ज 49 फ़ीसदी तक बढ़ चुका है.
नए इंडिया के शोर के बीच मोदी सत्ता ने हिंदुस्तान पर इतनी मुसीबतें बढ़ा दी हैं कि, आने वाली कई सरकारें चुकाएंगी इसकी कीमत.
कुछ समय तक मौजूदा सत्ता और उसकी प्रचार एजेंसी मीडिया और मौजूदा सत्ता की आईटी सेल द्वारा सोशल मीडिया पर खूब प्रचार किया गया कि, मोदी सत्ता आने के बाद वर्ल्ड बैंक से ₹1 भी कर्जा नहीं लिया गया है, लेकिन यह सिर्फ एक कोरी बकवास के अलावा कुछ भी नहीं है. अगर आप जानना चाहते हैं कि मोदी सत्ता ने वर्ल्ड बैंक से कितना कर्ज लिया है.
तो गूगल कीजिए.
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लिंक विश्व बैंक की आधिकारिक वेबसाइट का आएगा, यहां कुछ डिटेल मिल जाएगी आपको, इसमें साफ तौर पर हिंदुस्तान और विश्व बैंक के बीच हुए करार मिल जाएंगे और मोदी सत्ता द्वारा वर्ल्ड बैंक से लिए गए कर्ज की डिटेल मिल जाएगी.
अब बात करते हैं सेना की. हिंदुस्तान की सेना के पराक्रम पर किसी को भी संदेह नहीं है, यह सेना 70 सालों में तैयार हुई है, मजबूत हुई है, जिसका लोहा दुनिया के तमाम देश मानते हैं, लेकिन मोदी सत्ता में हिंदुस्तान की सेना का राजनीतिकरण लगातार हो रहा है.
मोदी सत्ता को बचाने के लिए हिंदुस्तान की सेना बयानबाजी करने लगी है, जैसे ही कोई चुनाव आने वाला होता है किसी राज्य का, उससे पहले सेना की तरफ से खुलकर बयान बाजी होने लगती है. पाकिस्तान, चीन को धमकी दी जाने लगती हैं. चुनाव के पहले तक सेना शांत बैठी रहती है, सेना के अधिकारी शांत बैठे रहते हैं, सेना प्रमुख शांत बैठे रहते हैं, लेकिन जैसे ही किसी राज्य का विधानसभा चुनाव आता है, यह बयान बाजी चालू कर देते हैं.
इन सब चीजों से आगे बढ़कर इस बार सेना ने मोदी सत्ता को बचाए रखने के लिए बालाकोट हमले का वीडियो गेम तक लॉन्च कर दिया. अब यहां सवाल यह उठता है कि यह वीडियो गेम चुनाव से ठीक पहले सेना द्वारा क्यों लांच किया गया? किसके कहने पर लांच किया गया ? 2019 के लोकसभा चुनाव के ठीक बाद क्यों नहीं लांच किया गया?
सेना को खुद का राजनीतिकरण होने से रोकना होगा, सेना की हमारी नजरों में बहुत इज्जत है उसको बरकरार रखना होगा.
मोदी सत्ता में लगातार देखने को मिल रहा है कि यहां खलनायको को नायक बनाया जा रहा है, जैसे आभासी दुनिया में दिखाई देता है या फिर हमारी बॉलीवुड की फिल्मों में दिखाई देता है कि, जो शुरू से अंत तक विलेन के रोल में होता है उसे आखिरी में हीरो बना दिया जाता है. वही काम मोदी सत्ता में हो रहा है.
मोदी सत्ता में लगातार फिल्मी अंदाज में जनता को गुमराह करने की कोशिश की जा रही है और यह काम अभी से नहीं लंबे समय से हिंदुस्तान में देखने को मिल रहा है. 2002 का खलनायक इसी प्रकार जनता की नजरों में नायक बना दिया गया और अब वह राष्ट्रपिता की पदवी तक पाने के लिए लालायित नजर आ रहा है.
मोदी सत्ता में मोदी से लेकर तमाम मोदी की प्रचार एजेंसियां और खुद मोदी, गांधी-गांधी का दिखावा सिर्फ ऊपर से कर रहे हैं, लेकिन यह जनता को मानकर चलना होगा कि 2014 ही नहीं 2019 में भी हमने जिसे चुना है, वह लोग गांधी का जमाना नहीं गोडसे का जमाना लाना चाहते हैं और इसमें कुछ हद तक यह कामयाब भी हो चुके हैं.
पर्दा गांधी का है,पिक्चर गोडसे की चल रही है.
गांधी जयंती के दिन हमने ट्विटर पर देखा था कि,कुछ लोग गोडसे अमर रहे का ट्रेड करवा रहे थे, आखिर वह कौन से लोग थे ? क्या उनमें से मोदी किसी को फॉलो नहीं करते? सरकार की तमाम एजेंसियां विपक्ष के नेताओं को सिर्फ निशाना बनाने के लिए हैं ? गोडसे अमर रहे का ट्रेड कौन करवा रहा है, यह सरकार पता नहीं लगा सकती थी ? ट्विटर पर यह ट्रेड सत्ता की शह पर चलाया गया और यह वही लोग थे जो गांधी नहीं गोडसे या मोदी बनना चाहते हैं.
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