सीकर. कोरोना की दूसरी लहर ने शहरों से लेकर गांव-ढाणियों तक मौतों का दर्द दिया है। अब तीसरी लहर बच्चों के लिए खतरनाक बताई जा रही है। यदि ऐसा हुआ तो प्रदेश में हालात ज्यादा बद्तर हो सकते हैं। क्योंकि यहां सर्वे के हिसाब से ज्यादातर जिलों में 5 से 23 फीसदी बच्चे कुपोषण की जद में है। जो कोरोना का सॉफ्ट टारगेट हो सकते हैं। सीकर जिले में ही 29 हजार से अधिक बच्चे अति कुपोषण के शिकार हंै। दूसरी तरफ महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से मार्च महीने के बाद बच्चों को पूरक पोषाहार भी नहीं दिया गया है। ऐसे बच्चों पर कुपोषण के साथ कोरोना का हमला ज्यादा घातक साबित हो सकता है। जिले में बच्चों के चिकित्सा के हिसाब से इंतजाम भी नाकाफी है। यदि समय रहते जिम्मेदारों ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया तो हालात ज्यादा विकट हो सकते हैं। ये बात अलग है कि जिला प्रशासन की ओर से जनाना अस्पताल में बच्चों के लिए अलग से एक और विंग बनाने के दावे किए गए हैं।
दो महीने से बच्चों को नहीं मिला पोषाहारमहिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से कुपोषित व अति कुपोषित बच्चों को हर महीने पोषाहार दिया जाता है। पहले यह पोषाहार स्वयं सहायता समूहों की ओर से उपलब्ध कराया जाता था। लेकिन पिछले साल कोरोना की लहर के बाद विभाग ने यह स्वयं सहायता समूहों की व्यवस्था को बंद कर यह काम राशन डीलरों को दे दिया। जिले के ज्यादातर राशन डीलरों के पास पिछले दो महीने से सप्लाई नहीं है। ऐसे में बच्चों के पूरक पोषाहार पर संकट गहराया हुआ है।
एक्सपर्ट व्यू: कुपोषण से प्रभावित होती है रोग प्रतिरोधक क्षमता
डॉ. मदन सिंह फगेडिया का कहना है कि बच्चों में कुपोषण से रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है। इससे अन्य बीमारी भी ऐसे बच्चों को जल्द जकड़ लेती है। बच्चों के बीमार होने पर सोशल डिस्टेंस भी संभव नहीं है। क्योंकि बच्चे अपनी देखभाल खुद नहीं कर सकते है इसलिए बच्चों के सम्पर्क में दूसरे भी आते हैं। इसलिए मास्क, सोशल डिस्टेंस व सेनेटाइजेशन पर पूरा फोकस करें।
खानपान पर ज्यादा फोकस करेंडॉ.जेके लोन अस्पताल के वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ योगेश यादव का कहना है बच्चों की कुपोषित बच्चों के खानपान पर ध्यान देना बेहद जरूरी है। बच्चों को अंकुरित चने, दूध, दही, रोटी, फल उसकी आयु वर्ग की कैलोरी के हिसाब से देने होंगे। यदि बच्चों के अधिक समय तक तेज बुखार, आंख लाल होना, हाथ-पैरों में सूजन, पेट संबंधी समस्या, शरीर पर चकते या लाल दाने होना आदि लक्षण मिलते है तो तत्काल चिकित्सकों की सलाह लेनी चाहिए। समय पर उपचार शुरू करने पर पांच से छह दिन में बीमारी पर आसानी से काबू पाया जा सकता है।
अभिभावकों की पीड़ा: रोजाना पूछ रहे कब मिलेगा पोषाहारझुंझुनूं बाईपास निवासी अशोक कुमार के परिवार में चार बच्चे है। इनमें से दो बच्चों को कई महीनों से पोषाहार नहीं मिल पा रहा है। अशोक कुमार का कहना है कि कई बार राशन की दुकान पर पूछकर आए लेकिन हर बार यही बताया जाता है कि राशन अभी नहीं आया। इसी तरह नीमकाथाना, श्रीमाधोपुर व खंडेला इलाके के लोगों की पीड़ा है।
जिले की फैक्ट फाइल:कम बजन वाले बच्चे: 20.5 फीसदी
खून की कमी वाले बच्चे: 48.8 फीसदीआंगनबाड़ी से जुड़े: 1.10 लाख
अति कुपोषित बच्चे: 29 हजारशिशु रोग के लिए आइसीयू: 9
नवजात शिशु इकाई: 7
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