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नड्‌डा के गृहराज्य में भाजपा साफ, ये रहे पार्टी की हार के कारण

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भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्‌डा (JP Nadda) के गृह राज्य हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के उपचुनाव में हुई हार ने बीजेपी के प्रदेश और राष्ट्रीय नेतृत्व को सवालों के घेरे में ला दिया है. मंडी लोकसभा के साथ 3 विधानसभा सीटों पर हुए इस उपचुनाव को दिसंबर-2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था. इसमें कांग्रेस ने भाजपा का सफाया कर दिया है.
मंडी संसदीय सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह ने, जबकि विधानसभा उपचुनाव में अर्की सीट पर कांग्रेस के संजय अवस्थी, जुब्बल-कोटखाई सीट पर कांग्रेस के रोहित ठाकुर और फतेहपुर सीट पर कांग्रेस के भवानी सिंह पठानिया ने जीत दर्ज की. हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर 4 साल से सरकार चला रहे हैं और बतौर CM उनकी कार्यशैली पर सवाल भी उठते रहे हैं.
2017 के विधानसभा चुनाव में पूर्व CM प्रेमकुमार धूमल के हारने के बाद जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री की कुर्सी जातिगत समीकरणों की वजह से मिली. खराब परफॉर्मेंस की वजह से हाईकमान उन्हें कई बार दिल्ली तलब कर चुका है.

हिमाचल में भाजपा की सबसे बड़ी चिंता गुटबाजी

हिमाचल में भाजपा की सबसे बड़ी चिंता पार्टी की गुटबाजी है. यहां पूर्व CM प्रेमकुमार धूमल के गुट और नड्‌डा कैंप के बीच चल रही खींचतान से हर कोई वाकिफ है. इसी खींचतान की वजह से उपचुनाव में जुब्बल-कोटखाई से चेतन बरागटा को पार्टी टिकट नहीं मिला क्योंकि चेतन धूमल और उनके बेटे केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के करीबी हैं. बीजेपी ने बरागटा की जगह जिस महिला नेत्री नीलम सरैइक को टिकट दिया, उन्हें महज 2644 वोट मिले और उनकी जमानत तक जब्त हो गई. इस गुटबाजी का नतीजा ये रहा कि जुब्बल-कोटखाई सीट पर भाजपा प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रही.
उपचुनाव से पहले मंडी लोकसभा सीट और जुब्बल-कोटखाई विधानसभा सीट भाजपा के पास थी, वहीं अर्की और फतेहपुर विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास थीं. हिमाचल में भाजपा कई गुटों में बंटी है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा‌ और पूर्व सीएम प्रेमकुमार धूमल के बीच पुरानी अदावत है. किसी समय हिमाचल के सबसे ताकतवर नेता रहे धूमल ने ही CM रहते हुए नड्‌डा को हिमाचल की राजनीति से बाहर करने के मकसद से राज्यसभा भेजा, लेकिन समय ने ऐसी पलटी खाई कि नड्‌डा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए. नतीजा- आज धूमल और उनके गुट के नेता साइडलाइन हैं.
2. महंगाई का मुद्दा भाजपा पर भारी
हिमाचल प्रदेश में 2017 से भाजपा की सरकार है और वहां के लोग लगातार बढ़ती महंगाई से परेशान हैं. चुनाव प्रचार के दौरान लोगों ने इस मुद्दे पर बेबाकी से अपनी राय भी रखी. मंगलवार को चार सीटों के नतीजे आने के बाद खुद CM जयराम ठाकुर ने माना कि महंगाई ही भाजपा की हार की वजह रही.
3. सरकार से नाराजगी
भाजपा हिमाचल में 4 साल से सत्ता में है और वहां के लोगों में पार्टी के प्रति नाराजगी साफ झलकती है. इस पहाड़ी प्रदेश के लोगों का मानना है कि 4 बरसों में न तो लोगों को रोजगार मिला और न ही विकास के काम हुए. ऐसे में उन्होंने अपना गुस्सा उपचुनाव में कांग्रेस को वोट देकर निकाला. भाजपा का वोट बैंक समझा जाने वाला यूथ इस उपचुनाव में वोट डालने ही नहीं आया. भाजपा के इस वोट बैंक की बेरुखी इसी बात से समझी जा सकती है कि मंडी संसदीय सीट पर महज 57.73% मतदान हुआ. हिमाचल में 12 महीने बाद, यानी दिसंबर 2022 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.
4. पुरानी अदावत भाजपा को ले डूबी
नड्डा-धूमल की इस लड़ाई की वजह से पार्टी ने जुब्बल-कोटखाई से चेतन बरागटा का टिकट काटते हुए नीलम सरैइक को उम्मीदवार बना दिया जिन्हें उपचुनाव में महज 2644 वोट मिले. भाजपा से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले बरागटा ने उपचुनाव में 23662 वोट हासिल लिए और महज 6293 वोट से हार गए. अगर भाजपा आपसी खींचतान को छोड़कर जुब्बल कोटखाई से चेतन बरागटा को टिकट देती तो शायद यहां का नतीजा कुछ और रहता.
भाजपा का सैनिक कार्ड फेल, प्रतिभा सिंह ने कारगिल वार हीरो को हराया
मंडी लोकसभा सीट पर भाजपा ने सैनिक कार्ड चलते हुए कारगिल युद्ध के हीरो रहे ब्रिगेडियर खुशहाल सिंह को मैदान में उतारा. ब्रिगेडियर खुशहाल सिंह की यूनिट 18 ग्रेनेडियर ने ही कारगिल युद्ध के दौरान सबसे मुश्किल मानी जाने वाली चोटी तोलोलिंग और टाइगर हिल पर भारतीय झंडा फहराया था. मंडी संसदीय हलके में पूर्व सैनिकों के अच्छे-खासे वोट भी हैं, मगर पार्टी की रणनीति सफल नहीं रही. कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह ने रिटायर्ड ब्रिगेडियर को 8766 वोटों से हराया. प्रतिभा सिंह को कुल 3 लाख 65 हजार 650 और ब्रिगेडियर खुशहाल सिंह को 3 लाख 56 हजार 884 वोट मिले.
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