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पशुओं की आवक इतनी कम तो मेले होंगे ही बेदम

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यह संयोग ही कहा जाएगा कि केन्द्र में मोदी की सरकार के गठन के साथ ही इस पशु मेले में लगातार गिरावट आती गई। If the arrival of animals is less then fair will be breathless वर्ष 2013 तक इस मेले में 10 हजार से अधिक पशु आए, इसके बाद इनकी संख्या आधी और इसके बाद लगातार गिरती रही। नागौर जिले के परबतसर का वीर तेजा पशु मेला अनूठा रहा है। हर साल रक्षाबंधन से शुरू होकर 15 दिवस तक चलने वाला यह मेला अब महज 3 दिन में सिमट चुका है। अस्सी के दशक में इस मेले में सर्वाधिक 1 लाख 35 हजार पशुओं की आवक होने पर एशिया का रेकॉर्ड बना था जबकि इस वर्ष मेले मेें महज 595 पशुओं की बिक्री और 18 सौ 27 पशुओं की आवक हुई है।
तीन मेले है मुख्य
नागौर जिले में पशुपालन विभाग की ओर से मुख्य रुप से तीन पशु मेलों का आयोजन करवाया जाता है। जिसमें नागौर का रामदेव मेला, मेड़ता का बलदेवराम पशु मेला और परबतसर का वीर तेजा पशु मेला मुख्य है। जहां वर्ष 1999 तक 20 हजार से अधिक पशुओं की आवक और बिक्री होती थी। वर्ष 2000 के बाद इन मेलों में पशुओं की आवक कम होने लगी और अब यह मेले महज नाम के पशु मेले होकर रह गए है।
पशुपालन विभाग के लिए घाटे का सौदा
वर्ष 2000 के बाद से यह मेला पशुपालन विभाग को राजस्व देने के स्थान पर घाटा दे रहा हैं। नागौर के तीनों ही मेलों में पशुपालन विभाग को नुकसान हो रहा है। जबकि इन मेलों में पशुपालन विभाग के अधिकांश कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाती है। हाल ही चल रहे परबतसर के पशु मेले में कभी करीब 70 कर्मचारियों की ड्यूटी लगी है।
यह रहे हैं मेले की कमजोरी के मुख्य कारण- – 3 साल से कम के बछड़ों के परिवहन पर न्यायालय की रोक के बाद इन मेलों में बछड़ों की बिक्री कम हो गई। – ऊंटों को राज्य से बाहर भेजने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।- ग्लैंडर्स बीमारी के चलते घोड़ें भी अब इन मेलों से दूर हो गए। इस साल परबतसर के पशु मेले में एक भी घोड़ा बिकने के लिए नहीं आया। – कुछ वर्षों में गौवंश सहित अन्य पशुओं के परिवहन के समय मारपीट की घटनाओं से भी व्यापारी मेलों में नहीं आते है।
पशु मेलों के आयोजन की होगी समीक्षा-पशु मेलों में लगातार पशुओं की आवक और बिक्री घटने से पशुपालन विभाग भी चिंतित है। समीक्षा के साथ ही मेलों के आयोजन के संदर्भ में 26 अगस्त को जयपुर में पशुपालन निदेशालय में अधिकारियों की बैठक होगी। यूं घटती गई परबतसर के पशु मेले में पशुओं की आवक और बिक्री-
वर्ष आवक बिक्री 2013 10891 4858 2014 5027 2033 2015 5460 1907 2016 2686 1105 2017 2101 861 2018 2529 1000 2019 1827 595

इनका कहनापशुओं की आवक घटने और पशुपालकों का मेलों से रुझान घटने के कई कारण है। परबतसर में चल रहे मेले में भी इस बार पशुओं की आवक बहुत कम हुई है। किशनलाल कुमावतउपनिदेशक, पशुपालन विभाग।
पत्रिका व्यू
कभी मेलों में पशुओं की बिक्री के साथ-साथ विभिन्न लोक कला और ग्रामीण संस्कृति से रुबरु होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे। जो अब बंद हो गए है। आजादी के पहले से चले आ रहे इन पशु मेलों में पशुपालकों का रुझान घटने से नागौर के कृषि संयत्र कारोबार को भी ग्रहण लग गया है। पहले इन मेलों में कई राज्यों से आने वाले व्यापारी नागौरी नस्ल के बैलों को खरीदने पहुंचते थे। लेकिन 3 साल से कम के बछड़ों पर रोक और गत वर्ष ऊंट को भी राजस्थान राज्य से बाहर भिजवाने पर रोक के बाद तो नागौर जिले के पशु मेले अब विलुप्त होने के कगार पर है। कभी पूरे देश में नागौरी नस्ल के बैलों की मांग हुआ करती थी। बछड़ों के परिवहन पर रोक और गौवंश के परिवहन में परेशानियों के बाद दूसरे प्रदेशों के पशु व्यापारियों का नागौर के पशु मेलों से मोह भंग गया। ऊंटों की हालत भी ज्यादा अच्छी नहीं है। सरकार भी नागौर के पशु मेलों को बचाने का प्रयास नहीं कर रही है?

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