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अपनों की चली मर्जी तो दिव्यांगों की बजाय चहेतों को दे दिया इनाम

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सीकर.राज्य सरकार ने भले ही दिव्यांगों को राजनीति में आगे लाने के लिए नया कानून लागू किया हो लेकिन खुद सरकार के जिम्मेदार इसका मखौल उड़ाने से नहीं चूक रहे हैं। पिछले दिनों स्वायत्त शासन विभाग की ओर से नगर निकायों में प्रदेश में 250 से अधिक पार्षद मनोनीत किए गए। इसमें कई नगर निकायों में दिव्यांग कोटे में सामान्य व्यक्ति को पार्षद बना दिया गया। इसको लेकर खुद सरकार की किरकिरी होने के साथ विपक्षी दल भी हमला करने से नहीं चूक रहे हैं। सीकर जिले के लोसल में खंडेला नगर पालिका में ऐसा मामला सामने आ चुका है, लेकिन सरकार की ओर से अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। अब खुद कांग्रेस पार्टी से चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशी ने स्वायत्त शासन मंत्री को इस मामले में शिकायत दी है। विवादों के बीच लोसल नगर पालिका में सोमवार को पालिका प्रशासन ने मनोनीत पार्षदों का शपथ ग्रहण कार्यक्रम भी करा दिया। इधर, स्वायत्त शासन विभाग के सूत्रों का कहना है कि विभाग की ओर से सभी विधायकों से नाम मांगे गए थे। उनके भेजे नामों के आधार पर ही नियुक्ति दी गई है। कई स्थानों से शिकायत पहुंचने के बाद अब विभाग की ओर से सभी दिव्यांगों से प्रमाण पत्र मांगे जाने की कवायद शुरू हो गई है।
खुद पार्षद बोला, मेरे पास प्रमाण पत्र नहींलोसल नगर पालिका में मनोनीत पार्षद संदीप कुमावत उर्फ सोनू कुमावत को राज्य सरकार की मनोनीत पार्षदों की सूची में दिव्यांग घोषित किया गया। जबकि सोनू कुमावत दिव्यांग नहीं है। मामले में सोनू कुमावत से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि किसी ने आगे से ही दिव्यांग लिख दिया होगा। इस बारे में उन्हें पता नहीं है। जबकि उनके पास किसी प्रकार का दिव्यांगता प्रमाण पत्र नहीं है। इसी तरह खंडेला नगर पालिका में भी बाबूलाल पारीक को दिव्यांग कोटे में पार्षद बना दिया गया।
रोचक: किसी की पत्नी तो कोई खुद हारा, फिर भी इनामचुनाव हारने वाले नेताओं की भी इन सूचियों के जरिए लॉटरी लग गई है। लोसल के वार्ड 9 से लालचंद वर्मा की पत्नी सरिता देवी ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था। लेकिन निर्दलीय राजबाला ने मात देकर चुनाव में जीत हासिल की थी। वहीं वार्ड 33 में सोनू कुमावत की पत्नी मणी कुमावत ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन निर्दलीय प्रतिभा रणवां ने जीत हासिल की थी। वार्ड 35 से मोनिका चौधरी ने खुद चुनाव लड़ा था। इनको भी निर्दलीय गीता देवी के सामने हार का सामना करना पड़ा था। इनको अब मनोनीत पार्षदों की सूची में जगह मिली है।
मकसद: दिव्यंाग भी आए राजनीति में इसलिए पहलदिव्यांगों के क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं के प्रतिनिधियों का दावा है कि देशभर में संभवतया राजस्थान ऐसा एकमात्र राज्य है जहां दिव्यांगों को राजनीति में समान भागीदारी लाने के लिए यह पहल की गई थी। दिव्यांगों की ओर से कई साल से यह मांग उठाई जा रही थी। इसके बाद वर्ष 2019 में सरकार ने इसकी कवायद की थी।
एक्सपर्ट व्यू: कानून की भावना के विपरीत, निष्पक्ष जांच होराजस्थान सरकार ने नवाचार करते हुए दिव्यांगों को प्रोत्साहित करने के लिए यह ऐतिहासिक कदम उठाया था। कानून के तहत दिव्यांगों से आवेदन लिए जाते। इसके बाद उनमें से योग्य दिव्यांगों को मनोनीत किया जाता तो फायदा मिलता। अब सरकार को इस मामले में तुरंत जांच करानी चाहिए। जिससे दिव्यांगों को न्याय मिल सके।सुदीप गोयल, सामाजिक कार्यकर्ता, सीकर
कानून का मजाक नहीं बनने देंगे: भाजपादिव्यांगों के हक के लिए भाजपा सड़क से विधानसभा तक लड़ाई लड़ेगी। किसी भी सूरत में दिव्यांगों के हक को छीनने नहीं दिया जाएगा। खंडेला व लोसल में सामान्य व्यक्ति को दिव्यांग कोटे में पार्षद बनाने के मामले की शिकायत कई अधिकारियों को कर दी है।इंदिरा चौधरी, जिलाध्यक्ष, भाजपा
खुद कांग्रेस भी उठा रही सवालसरकार की मंशा अच्छा थी, लेकिन चहेतों को फायदा देने के लिए यह खेल रचा गया। खंडेला में दिव्यांग व एससी-एसटी कोटे में गलत तरीके से मनोनयन कर दिया गया। स्वायत्त शासन मंत्री को इसकी शिकायत कर चुके हैं। जहां भी उचित मंच लगेगा आवाज उठाई जाएगी।सुभाष मील, खंडेला विस क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी रहे

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