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कैसे एक झटके में सब कुछ उल्टा हो रहा है?

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) प्रशांत किशोर की रणनीति पर चलते हुए लगातार कांग्रेस को तोड़ने के प्रयास में लगी हुई है. हरियाणा से लेकर असम तक और अब मेघालय तक लगातार कांग्रेस के नेताओं और विधायकों को अपनी पार्टी की सदस्यता दिला कर कांग्रेस को कमजोर कर रही हैं.
यह सबको पहले ही पता है कि ममता बनर्जी खुद को 2024 में नरेंद्र मोदी के सामने विपक्ष की तरफ से राहुल गांधी को दरकिनार करके प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित करवाना चाहती है. लेकिन यह सब कुछ किस रिस्क पर हो रहा है? किन शर्तो पर हो रहा है? क्या देश की जनता देख नहीं रही है, ममता बनर्जी की चाल को और उनके स्वार्थ को समझ नहीं रही है?
अभी तक एक प्रोपेगेंडा फैलाया जा रहा था कि बीजेपी वर्सेस ऑल. लेकिन हकीकत क्या है देश की जनता कांग्रेस (Congress) की मनो स्थिति को समझ रही है या नहीं?
जो स्थिति दिखाई दे रही है उसके हिसाब से कांग्रेस वर्सेस ऑल है. बीजेपी भी कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखती रही है और खुद को बीजेपी के विरोध में दिखाने वाली क्षेत्रीय पार्टियां भी कांग्रेस मुक्त भारत का ही बीजेपी का सपना आगे बढ़ाने की कोशिश में लगी हुई है. लेकिन क्या यह कामयाब हो पाएगा?
इस देश की तमाम पार्टियां चाहे वह बीजेपी हो या फिर दूसरे क्षेत्रीय दल, जिसमें अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी तथा ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भी शामिल है, यही चाहते हैं कि कांग्रेस खत्म हो जाए. यह देश बचाने की लड़ाई हो रही है या फिर कांग्रेस को खत्म करने की लड़ाई? यह बीजेपी को हराने की लड़ाई हो रही है या फिर कांग्रेस को समाप्त करने की?
एक तरफ सोनिया गांधी, राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी देश की जनता के लिए, लोकतंत्र के लिए, संविधान के लिए कई बार खुद नुकसान उठाकर भी बीजेपी को हराने के लिए क्षेत्रीय दलों की शर्तों पर उन्हें सहयोग कर चुकी है. ताकि जनता को राहत मिले बीजेपी के हारने से या किसी मुद्दे पर बीजेपी के घुटने टेकने से.
क्या हो रहा है?
लेकिन दूसरी तरफ क्या हो रहा है? क्षेत्रीय पार्टियां सिर्फ खुद का राजनीतिक फायदा देख रही हैं. उन्हें जनता की परेशानियों से मतलब नहीं है. क्षेत्रीय पार्टियां यह समझ चुकी है कि कांग्रेस जनता के लिए सैक्रिफाइस कर लेगी और कांग्रेस की इसी मजबूरी का फायदा उठाकर क्षेत्रीय पार्टियां लगातार कांग्रेस को कमजोर कर रही हैं. लेकिन क्या यह कांग्रेस कमजोर हो रही है या फिर देश की जनता और देश?
चाहे बीजेपी हो या फिर क्षेत्रीय पार्टियां, हर कोई कांग्रेस से लड़ाई लड़ रहा है. हर कोई कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है. दूसरी तरफ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जनता के मुद्दों पर बीजेपी से लड़ाई लड़ रहे हैं, सीमा सुरक्षा के मुद्दों पर बीजेपी को एक्सपोज कर रहे हैं और ममता बनर्जी जैसे नेता इन सबके बीच कांग्रेस की पीठ में छुरा घोंपने का काम कर रहे हैं, राजनीतिक फायदे के लिए.
क्षेत्रीय दलों के नेताओं का यही रवैया अगर रहा तो कांग्रेस को पूरे देश में अकेले दम पर चुनाव लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. अगर कहीं क्षेत्रीय दलों से बीजेपी जीत रही हो और कांग्रेस के सहयोग से हार सकती है तो फिर कांग्रेस वहां क्षेत्रीय दलों का सहयोग नहीं करेगी. (जैसे कि महाराष्ट्र और चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल के अंदर अंदरूनी सहयोग तृणमूल को) क्योंकि कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के साथ वैसा ही व्यवहार करेगी, जैसा बीजेपी के साथ करती है. क्योंकि क्षेत्रीय दल बीजेपी से लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं. बल्कि कांग्रेस से लड़ रहे हैं. आज यह मजबूर कर रहे हैं, कल कॉन्ग्रेस खुद मजबूर करेगी.
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