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यहां कफन नहीं दिल पर चल रही कैंची, दस गुना ज्यादा बढ़ी मांग

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नरेंद्र शर्मासीकर. लिखते कलम लरज रही है! कागज भी कंपकंपा रहे हैं! कलम से स्याही कम आंसुओं की दस्तकारी ज्यादा है! खबर सामान्य है…लेकिन गहरी है! हालांकि कोविड के कारण इन दिनों सीकर ही नहीं पूरे प्रदेश में मृतकों की संख्या में अचानक तेजी आई है… लिहाजा इसी अनुपात में कफन का सफेद कपड़ा भी अब ज्यादा कटने लगा है। कफन…सिहरा देने वाला शब्द…अरबी का एक शब्द है जिसका अर्थ अंत्येष्टि में प्रयोग किया जानेवाला सफेद वस्त्र!, जो मृत व्यक्ति के शरीर पर डाला जाता है। अमूमन खबरों में खाद्य सामग्री की खपत बढ़ी…ऑक्सीजन की खपत बढ़ी…ऐसा ही पढ़ते थे, लेकिन सीकर में इन दिनों कफन की खपत भी बढ़ती ही जा रही है। शब्द…निशब्द से हैं…यह विषय भी नहीं लिखने का, लेकिन जो हकीकत है, वह झूठलाई भी नहीं जा सकती। सीकर में अंतिम संस्कार के लिए निर्धारित दुकान बेहद सीमित संख्या में ही है। बावड़ी गेट के पास पतली गली में इसकी दुकान है, जहां के संचालक विजयसिंह रूआंसे स्वर में कहते हैं-हां, पहले की अपेक्षा इन दिनों कफन का कपड़ा ज्यादा कटने लगा है, लेकिन यह कपड़ा काटते वक्त कैंची कपड़े पर नहीं दिल पर चलती है। उनके शब्दों में-मेरा यही कारोबार है। मृत्यु अंतिम सच है, लेकिन मौत का ऐसा तांडव कभी नहीं देखा। पहले कभी कभार…किसी घर में किसी बुजुर्ग पुरुष या महिला की स्वाभाविक मौत पर कफन का कपड़ा काटकर दे दिया जाता था…साथ ही खरीदार को सांत्वना के दो शब्द भी बोल देते थे कि पका फल था, टूट गया, धीरज रख, अंत्येष्टि का सामान ले जा और पूर्ण विधि विधान से क्रियाकर्म कर…। लेकिन अब जो खरीदार आते हैं उन्हें यह सब कहने की हिम्मत ही नहीं होती। कोविड न बुजुर्गों को छोड़ रहा..ना जवान को। बकौल विजयसिंह-30-30 साल के युवा…जवान…छोरे…उफ! हे भगवान…ये क्या हो रहा। कफन का कपड़ा काटते हुए भी हाथ कांप उठते हैं। एक आंकलन के अनुसार एक मई से 9 मई के बीच ही 70 से 80 के बीच मौतें हो चुकी। लक्ष्मणगढ़ क्षेत्र के खीरवां गांव की 21 मौतें और इसी क्षेत्र के बलारां गांव में 9 दिन की 11 मौतें अलग हैं। मौत ने शेखावाटी में तांडव मचा रखा है।
एक मुर्दा….9 मीटर कफन
बकौल विजयसिंह एक मुर्दे के लिए नौ मीटर कफन लगता है। पहले कभी कभार नौ मीटर की जगह 18 मीटर कपड़ा काटना पड़ता था, लेकिन इन दिनों हर रोज 90 से 110 मीटर कपड़ा काट रहे हैं। ये कपड़ा काटते हुए दिल रो पड़ता है।
धर्माणा में 500 मुर्दा जिस्मों के लिए लकड़ों का इंतजामरामलीला मैदान के पीछे स्थित धर्माणा के लंबे चौड़े मैदान में इन दिनों लकडिय़ों का अंबार लगा है। यहां के संचालक कैलाश तिवाड़ी का कहना है कि अमूमन यहां महीने के 5 से 7 पार्थिव शरीरों के लिए लकडिय़ों का अतिरिक्त इंतजाम करके रखते थे, लेकिन इन दिनों अधिक संख्या में पार्थिव देह आ रहीं है। लिहाजा धर्माण परिसर में इस समय करीब ढाई लाख किलो लकडिय़ों का अतिरिक्त भंडार कर रखा है।
सीकर…महज 9 दिन…और 76 मौतें
तारीख – मौतें1 मई-9
2 मई-123 मई-9
4 मई-95 मई-3
6 मई-87 मई-6
8 मई-109 मई-10

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