सीकर. कोरोना से ज्यादा भूख से मरने की चिंता शहर के कई परिवारों को सता रही है। गुरुवार को भी पत्रिका की पड़ताल में ऐसे परिवार सामने आए। जिसमें कोरोना से ज्यादा भूख का रोना है। एक वक्त की रोटी भी मदद से ही मयस्सर हो रही है। नहीं मिलने पर बेबस बूढ़े व मासूम बच्चों को भूखे रहकर दिन गुजारने पड़ रहे हैं। जिंदगी इन्हें इतनी बोझिल लगने लगी है कि ‘मदद की जगह अब ये मौत’ मांगने लगे हैं।
लाइव: दृश्य-1 स्थान- हाउसिंग बोर्ड कच्ची बस्ती का अंतिम छोरबेबस, बेकस और झुर्रियों से भरी कमजोर बूढ़ी काया वाली मुरली देवी आंखों से देख नहीं पाती। पैरों से चल नहीं सकती। दो साल पहले पति की मौत के बाद से वह एक छोटी सी जर्जर झुग्गी में अपने बेटे बुद्धु, मानसिक विक्षिप्त बहु संगीता तथा चार व एक साल के दो मासूम बच्चों के साथ रहती है। पूरे परिवार की पेट भराई बुद्धु की छोटी-मोटी मजदूरी व मांगकर लाने पर ही निर्भर है। जो लॉकडाउन के बाद बेहद मुश्किल हो गया है। पत्रिका की टीम जब मुरली तक पहुंची तो झुकी कमर से बहु का हाथ थामें वह लडखड़़ाते कदमों से उस तंग झोपड़े से बाहर आई। हाल पूछने पर जिंदगी का दर्द व भूख की व्यथा बयां करते हुए उसकी आंख छलछला आई।। बोली ‘साहब! अब तो बुद्धु को भी कोई कुछ नहीं देता। कभी कुछ मिलता है तो खा लेते हैं, वरना पानी पीकर भूखे ही सो जाते हैं।’ पति के साथ की अच्छी यादों को ताजा करने के साथ मौजूदा निशक्ता व भूख की पीड़ा से उसकी तुलना कर रुआं सी होकर वह आगे कहती है कि ‘साहब अब तो इसी झुग्गी में जिंदगी कैद होकर रह गई है। अब तो इस अंधी को मदद की जगह मौत ही मिल जाए तो अच्छा’। परिवार को मदद दिलाने के पत्रिका के आश्वासन पर पैर छूने के अंदाज में जमीन को बार बार छूकर हाथ जोड़ते हुए वह झकझोर देने वाले करुण भावों से भर गई।
दृश्य-2 स्थान- गांधी योजना नगर। खुशिया अपने नेत्रहीन बेटे सूरदास के साथ घर के बाहर भी घूम रही थी। लॉकडाउन में परिवार के हालात जानने के लिए टीम ने जब उससे बात की तो पति ओमप्रकाश और बेटा महेश भी वहां आ गए। पूछने पर खुशिया ने बताया कि उसके चार बेटे हैं। बड़े बेटे बिल्लु के भी दो साल व दस महीने के दो बच्चे हैं। तीन बेटे छोटे हैं। लॉकडाउन से पहले पति ओमप्रकाश व बड़ा बेटा बिल्लु चेजे व छोटी- मोटी मजदूरी कर जैसे तैसे परिवार का पालन कर रहे थे। लेकिन, अब दोनों को कभी कभार ही काम मिलने पर परिवार पर रोजी- रोटी का भयंकर संकट गहराया हुआ है। कभी कभार लोग मदद के लिए आते हैं तो उससे पेट भरते हैं। कभी रूखी- सूखी व एक समय भोजन कर भी काम चलाना पड़ रहा है।
गरीबी की ग्राउंड रिपोर्ट: नेत्रहीन मुरली बोली, ‘मदद नहीं अब तो मौत दे दो साहब’
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