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गरीबी की ग्राउंड रिपोर्ट: रोजी- रोटी के लिए दर दर भटक रहा परिवार

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प्रमोद स्वामीसीकर/ खाटूश्यामजी. गरीबी क्या होती है साहब यह हम गरीबों से बेहतर कोई नहीं जानता और इस कोरोनाकाल ने तो हमारी कमर ही तोड़कर रख दी है। पहले राम फिर राज ने भी मुंह फेर लिया है। परिवार का पेट पालने के लिए मजदूरी के लिए दर-दर भटकते है, मगर काम नहीं मिलने से परिवार का गुजारा कैसे चलाए। यह दर्द भरे लब्ज दांतारामगढ उपखंड के मगनपुरा गांव में रहने वाले साधुराम नट ने पत्रिका के सामने रखा। उसने बताया कि इस गांव में कई पीढी से रह रहे है। परिवार में पत्नी संतोष के अलावा चार लड़की और चार लड़के है। शादी में ढाले बजाने-गाने का हमारा खानदानी काम है। मगर कोरोन की दूसरी लहर और सरकार के आदेश के बाद शादियां न के बाराबर हो रही है। जिसके चलते काम पूरी तरह से बंद है। पिछले लोकडाउन में मजदूरी मिल जाती थी। मगर इस साल भवन निर्माण के काम भी कम हो रहे है। इसलिए काम भी नहीं मिल रहा। ऐसे में परिवार के दो जून की रोटी पर भी भारी संकट आ गया है। उसने बताया कि पिछले साल जनप्रतिनिधियों और भामाशाहों ने राशन की भरपूर मदद की। मगर इस साल हमारा हालचाल पूछने कोई नहीं आया। यही बात पास में रहने वाले मुकेश नट व उसकी पत्नी संजू ने बताई। उन्होंने कहा काम-धंधा बंद पड़ा है मजदूरी मिल नहीं रही ऐसे में एक लड़का व एक लड़की का पालन पोषण कैसे करें।
कर्ज चुकाऊं या परिवार चलाऊंखाटूश्यामजी.कुछ साल पहले बीमारी के चलते पति की मौत के बाद परिवार पर खाटूश्यामजी पालिका क्षेत्र के वार्ड 12 में रहने वाली लक्ष्मी नायक पर मानों दुखों का पहाड़ टूट गया। परिवार को चलाने के लिए अब लक्ष्मी को मजदूरी करनी पड़ रही है। मगर कोरोनाकाल के चलते काम नहीं मिलने से मजबूरी में घर पर ही रहना पड़ रहा है। लक्ष्मी ने बताया कि तीन साल पहले पति प्रकाश की बीमारी से मौत हो गई। बचा पैसा और उसके बाद कर्ज लेकर पति की बीमारी के ईलाज में लगा दिया। उनके मरने के बाद भूखों मरने की नौबत आ गई। इसलिए घर की दहलीज पार कर दो बच्ची व एक बच्चे का पेट पालने के लिए मजदूरी करने लग गई। मगर कोरोना के चलते कुछ महिनों से मजदूरी भी नहीं मिल रही। इस संकट में घर में खाने के लाले पड़ गए है। ऐसे में कर्ज चुकाऊं या परिवार का पेट भरूं। एक तरफ कुआ है तो दूसरी ओर खाई। इस संकट की घड़ी में सरकार और प्रशासन मदद करें तो संकट से उबर सकते है।

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