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राजस्थान में शहीद वीरांगना का दर्द भी नहीं सुन रही सरकार

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सीकर.जम्मू में तीन साल पहले शहीद हुए शेखावाटी के लाल महेश निठारवाल का परिवार पहले कई महीनों तक शहीद स्मारक की जमीन के लिए जंग लड़ता रहा। अब शहीद वीरांगना सुमन व परिवार को शहीद स्मारक के निर्माण व जगह की चारदीवारी के बजट के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। कोरोनाकाल में शहीद परिवार जनप्रतिनिधियों से लेकर अफसरों तक खूब चक्कर काट चुके है। लेकिन कोई मदद नहीं मिली है। वीरांगना ने अब शहीद परिवारों के दर्द को लेकर मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखा है। वीरांगना है कि राजस्थान की धरती वीरों की धरती है। हर साल यहां के लाल बॉर्डर पर शहीद होते है। सरकार को शहीद स्मारक, स्कूल नामकरण व चारदीवारी, बिजली कनेक्शन, नौकरी आदि के लिए स्थायी नीति बनानी चाहिए। जिससे परिजनों को परेशानी का सामना नहीं करना पड़े। गौरतलब है कि श्रीमाधोपुर इलाके के हासपुर गांव निवासी महेश निठारवाल ने जम्मू में 22 मार्च 2018 को 23 साल की उम्र में शहीद हो गए थे। वह सेना में लगभग 21 साल की आयु में ही भर्ती हो गए थे। शहीद के पिता गिरधारीलाल व भाई राजेश का कहना है कि शहीद होना देश के लिए गर्व की बात है। लेकिन जंग लगे सरकारी सिस्टम से अपने हक के लिए कितना लडऩा पड़ता है यह अब पता लग रहा है।
यह है शहीद परिवार का दद…र्शहीद वीरांगना सुमन का कहना है कि जमीन आवंटन पत्र में सरकार ने साफ लिखा कि शहीद स्मारक का निर्माण जनता के दान के पैसे या विधायक कोटे के पैसे ही हो सकेगा। लेकिन अभी तक श्रीमाधोपुर विधायक ने चार लाख रुपए की स्वीकृति जारी नहीं की है। इस कारण स्मारक का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पा रहा है। इसके लिए कई बार परिवार के सदस्य विधायक से भी मिल चुके है।
सांसद पैसे देने को तैयार, लेकिन नियम नहींसीकर सांसद सुमेधानंद सरस्वती शहीद स्मारक के लिए चार लाख रुपए देने को तैयार है। लेकिन सांसद निधि के नियमों के हिसाब से पैसा खर्च इस मद में नहीं हो सकता है। इसके लिए विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सिर्फ विधायक कोटे का ही पैसा इसमें खर्च हो सकता है।
विधायक कोटा, कोरोना में उलझाशहीद परिवार का आरोप है कि विधायक को कई बार पीड़ा बताने के बाद भी हर बार कोरोना का तर्क दिया जा रहा है। विधायक का कहना है कि कोरोना की वजह से बजट अटका हुआ है। अब शहीद परिवार का कहना है कि यदि जल्द मदद नहीं मिलती है तो वह खुद पाई-पाई जोड़कर खुद स्मारक बनवाएंगी।
पत्रिका ने उठाया मुद्दा तो मिली जमीनशहीद वीरांगना के सिस्टम जंग लडऩे की कहानी को पत्रिका ने प्रकाशित किया। इसके बाद जिम्मेदार जागे। इस पर जिला प्रशासन ने आठ अक्टूबर 2020 को शहीद स्मारक के लिए जमीन आवंटन कर दी। शहीद परिवार का कहना है कि पत्रिका का संघर्ष में साथ नहीं मिलता तो शायद अब तक जमीन नहीं मिलती।
नहीं मिली मदद तो जमीन आवंटन की शर्तो का होगा उल्लघंनजिला कलक्टर की ओर से जारी जमीन आवंटन पत्र में नौ शर्त दी गई थी। इसमें पहली शर्त यही थी शहीद परिवार को जमीन पर छह महीने के भीतर कब्जा लेकर दो साल के भीतर स्मारक का काम पूरा करना होगा। लेकिन जमीन आवंटन को लगभग एक साल का समय हो गया लेकिन अभी तक काम शुरू नहीं हो पा रहा है।
वीरांगना को अभी तक नहीं मिली नौकरीवीरांगना सुमन ने आश्रित कोटे में अभी तक नौकरी नहीं मिली है। वीरांगना का कहना है कि लगभग डेढ़ साल पहले श्रीमाधोपुर उपखंड कार्यालय में लिपिक के पद पर नौकरी के लिए प्रार्थना पत्र दिया था। लेकिन सरकार ने अभी तक नौकरी नहीं दी है।

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