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सरकार लाचार, मोदी सरकार के लिए मुश्किल भरा समय

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प्रचार-प्रसार के भरोसे चल रही मोदी सरकार (Modi Government) पिछले 7 सालों में इस कदर लाचार कभी नजर नहीं आई, क्योंकि उससे पहले मीडिया बचा ले जाती थी. लेकिन अब मीडिया के लिए भी मुश्किल हो रही है.
पिछले 2 लोकसभा चुनाव आसानी से जीतने वाली बीजेपी के लिए इस वक्त हालात अनुकूल नहीं है. बस कुछ ही महीनों के बाद कई राज्यों के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. जिसमें बीजेपी और तमाम राजनीतिक दलों के लिए सबसे महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश का विधान सभा चुनाव है.
बीजेपी के लिए मुश्किल
अगर बीजेपी को लगातार तीसरी बार केंद्र में सरकार बनानी है तो उसे हर हाल में 2022 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जीतना होगा. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार विज्ञापनों में अपने आपको नंबर वन बता रही है हर मामले में. विज्ञापन के जरिए और मीडिया पर पैसा बहा कर जनता को भ्रमित करने का प्रयास हो रहा है.
लेकिन बीजेपी के लिए सबसे मुश्किल यह है कि इस बार मीडिया पर और विज्ञापनों में पैसा बहा कर खुद को नंबर वन बताकर भी वह जनता को बहला नहीं पा रही है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि, महामारी के दौर में जिस प्रकार से मौजूदा सत्ताधारी पार्टी निरंकुश होकर काम करने की जगह बयानबाजी करती रही उससे आम जनता के साथ-साथ बीजेपी के कार्यकर्ता भी निराश नजर आए.
महामारी के दौर में जिस वक्त जनता ऑक्सीजन के लिए और हॉस्पिटल में बेड अरेंज कराने के लिए सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक संघर्ष करती नजर आई उसमें बीजेपी के नेता बीजेपी के विधायक और सांसद जनता की मदद करने में अधिकतर जगह पर असहाय नजर आए.
जिन्होंने सरकार की नाकामियों के कारण अपनों को खोया है, क्या वह विज्ञापन देखकर, मीडिया प्रचार देख कर एक बार फिर से बीजेपी को चुनने की गलती करेंगे? यही सबसे बड़ा सवाल है और शायद इसका जवाब यही है कि अपनों की जान से बढ़कर कुछ भी नहीं. इस महामारी के दौर में कई बीजेपी के नेता भी अपनी जान गवा चुके हैं और कई बीजेपी नेताओं के अपने भी इस दुनिया को छोड़ कर चले गए हैं.
महामारी के दौर में यह सरकार पूरी तरीके से लाचार और फेल नजर आई और अब जब कोरोना के आंकड़े लगातार कम हो रहे हैं तो यह सरकार एक बार फिर से मीडिया पर पानी की तरह पैसा बहा कर, अपना और अपने नेताओं का प्रचार प्रसार कर के खुद को नंबर उनको बताने के लिए निकल चुकी है. लेकिन कहीं ना कहीं बीजेपी को भी अंदाजा है कि इस बार मुश्किल होगी.
उत्तर प्रदेश के तमाम सांसदों की बैठक दिल्ली में हुई और उन्हें निर्देश दिया गया कि वह अपने क्षेत्रों में जाकर जनता से संवाद स्थापित करें, जनता को सरकार की उपलब्धियां बताएं और उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत सुनिश्चित करें. उत्तर प्रदेश से जीतकर संसद तक पहुंचे बीजेपी के सांसदों को लक्ष्य तो दे दिया गया है. लेकिन यह लक्ष्य पूरा कर पाना कितना मुश्किल है, यह बीजेपी के सांसदों को भी पता है.
विकास और राष्ट्रवाद के नाम पर जनता से लूट
बीजेपी जब विपक्ष में थी तो पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कुछ पैसों की वृद्धि होती थी तो बीजेपी सड़कों पर उतर जाती थी. लेकिन खुद की सरकार के अंदर पेट्रोल और डीजल की कीमत पिछले 70 सालों का रिकॉर्ड तोड़ चुकी है, लगभग 110 रुपए पार कर चुकी है. ऐसे वक्त में भी बीजेपी नेताओं की इस मुद्दे पर चुप्पी चुनाव में बीजेपी को भारी पड़ सकती है.
जब बीजेपी विपक्ष में थी तब कहती थी कि पेट्रोल और डीजल की कीमतें सरकार के हाथ में है, लेकिन सरकार जनता को लूट रही है और अब खुद की सरकार में जब कीमतें सभी रिकॉर्ड तोड़ चुकी हैं. ऐसे वक्त में बीजेपी नेता हास्यप्रद बयान दे रहे हैं और कह रहे हैं कि पेट्रोल और डीजल की कीमतें हमारे हाथ में नहीं है. कुल मिलाकर जनता की परेशानियों से बीजेपी की सरकार ने एक तरह से मुंह मोड़ रखा है.
विकास के नाम पर जनता की कमर तोड़ी जा रही है और वह पैसा खुद की पार्टी के प्रचार में बहाया जा रहा है. पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि उस वक्त रुक जाती है जब किसी राज्य में चुनाव हो रहा होता है. लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म होते हैं प्रतिदिन पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि शुरू हो जाती है और यह सब कुछ होता है विकास और राष्ट्रवाद की आड़ में.
सोशल मीडिया पर बीजेपी के समर्थक तर्क देते हैं कि विकास के लिए कुछ तो कुर्बानी देनी ही होगी. राष्ट्रवाद के नाम पर है इतनी महंगाई तो सहन की ही जा सकती है. लेकिन आखिर कब तक जनता अपनी गाढ़ी कमाई विकास और राष्ट्रवाद नामक जुमलो के नाम पर लुटाती रहेगी. जिस तरीके से महंगाई और बेरोजगारी बढ़ रही है इससे तो अब बीजेपी के समर्थक भी परेशान होने लगे हैं. उनके पास भी अब कुतर्क के अलावा कुछ बचा नहीं है.
कुल मिलाकर देखा जाए तो महंगाई, बेरोजगारी, इसके अलावा महामारी के दौर में सरकार की निरंकुशता आने वाले चुनाव में बीजेपी पर भारी पड़ सकती है. इसके अलावा किसान आंदोलन बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकता है. क्योंकि किसानों ने उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में बीजेपी को अपनी ताकत दिखा दी है. ग्राम सरपंच के चुनाव में बीजेपी को धूल चटा दी है.
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