केस एक: दांतारामगढ़ के किसान जीवण सिंह ने कैटल शेड के लिए आवेदन किया। आवेदन को पूरी तरह भर कर पशुपालन विभाग को दे दिया। लेकिन आवेदन की स्वीकृति के लिए अब तक कुछ नहीं हुआ। ऐसे में पशुपालक को इस आवेदन की स्थिति तक का पता नहीं लगा पा रहा है। ऐसे में वह विभागों के बीच चक्कर काटने को मजबूर है।सीकर. मनरेगा के तहत प्रत्येक गांव में कैटल शेड बनाए जाने की सरकार की मंशा पर प्रश्र चिन्ह लग रहे हैं। जिले की सभी ग्राम पंचायतों से आवेदन लेने व नोडल अधिकारी बनाए जाने के बाद सरकार ने इस विषय पर सोचना तक बंद कर दिया है।धूल फांक रहे आवेदनगौरतलब है कि प्रत्येक गांव में चयनित 12 पशुपालकों के लिए कैटल शेड के आवेदन कराने के बाद पशुपालन विभाग ने सभी आवेदन को जिला परिषद में भेज दिया। इसके बाद इन आवेदनों को मुख्यालय भेजा गया, जहां ये आवेदन धूल फांक रहे हैं। गौरतलब है कि जिला परिषद की ओर से इस पर अनुदान की अधिकतम राशि तीन लाख रुपए की थी। इसके लिए जिले की विभिन्न पंचायत समितियों से पांच हजार 379 पशुपालकों ने आवेदन किए थे।यह थी पात्रताकैटल शेड के लिए प्रत्येक ग्राम पंचायत से तीन- तीन अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व गरीबी रेखा से नीचे जीवन गुजारने वाले लघु सीमांत किसान व पशुपालक चयनित होने थे। चयनित पशुपालक के पास दो बड़े मवेशी एक गाय या भैंस और लघु व सीमांत किसानों के प्रत्येक परिवार के पास अधिकतम दो बीघा भूमि जरूरी थी। चयनित किसान को आवेदन अपने संबंधित क्षेत्र के पशु चिकित्सक से सत्यापित करवा कर आवेदन भेजने थे।जिम्मा दूसरे परयह सही है कि किसी भी योजना के आवेदन करना एक मुश्किल भरी प्रक्रिया होती है। कैटल शेड के लिए आवेदन पशुपालन विभाग के जरिए भरवाए गए थे। विभाग ने सभी आवेदन को भरवा कर पंचायती राज विभाग को भेज दिया है। आवेदन की स्वीकृति या अस्वीकृति का जिम्मा अब पंचायती राज विभाग के पास है।डा. बी.एल. झूरिया, संयुक्त निदेशक, पशुपालन विभाग
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