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प्रदेश की इस रामलीला में गहलोत बने थे राम और पारीक सीता, आप भी जानिए रोचक इतिहास

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सचिन माथुर, सीकर.
रामलीला मैदान ( Ramleela Ground Sikar ) में सांस्कृतिक मंडल की रामलीला ( Sikar Ramleela ) रविवार से शुरू होगी। इस बार 67वीं रामलीला का मंचन होगा। 1953 से शुरू हुई यह रामलीला इतिहास ( Interesting Facts About Sikar Ramleela ) के कई रौचक व सुनहरे पन्ने समेटते जा रही है। उन्हीं में से एक अध्याय इसके आगाज से जुड़ा है। जिसकी इबारत शहर के माजी साब के कुएं से लिखी गई। यहां पहली रामलीला का मंचन कुएं के पास बने चबुतरे पर किया गया। जहां सुबह सब्जी बिकती थी और शाम को रामलीला का मंच सजता था। इस दौर की खास बात रामलीला का अलग अलग जगहों पर मंचन था। जिसमें राम जन्म से लंका चढ़ाई तक की रामलीला का मंचन माजी साब के कुएं पर, तो भरत मिलाप मौजूदा घंटाघर के पास संघ के पूर्व कार्यालय और भगवान राम का राज्यभिषेक गोपीनाथ मंदिर की छत पर किया जाता। वहीं, रावण दहन मौजूदा रामलीला मैदान में किया जाता। इस तरह यह रामलीला पूरे शहर में आस्था, उल्लास व आकर्षण का केंद्र रही।
गहलोत थे राम, पारीक थे सीतापहली रामलीला का मंचन 1953 में दशहरे के आयोजन के बाद 1954 में रावराजा कल्याण सिंह द्वारा उद्घाटन के बाद हुआ। इस रामलीला में राम व सीता का अभिनय हनुमान सिंह गहलोत व नंंद किशोर शर्मा ने किया। रावण की भूमिका कैलाश नारायण स्वामी व भगवान दास मास्टर ने दशरथ का रोल अदा किया।67 साल से पुरुष बन रहे महिला पात्रसांस्कृतिक मंडल की रामलीला की खासियत इसमें महिला पात्र का शामिल नहीं होना भी है। 67 साल के इतिहास में पुरुष ही महिला पात्र की भूमिका निभा रहे हैं। बकौल इंदोरिया महिला पात्र के लिए महिला कलाकारों के सहयोग के लिए कई बार सुझाव आए। लेकिन, मंडल ने उसे कभी नहीं स्वीकारा। हालांकि बाहरी महिला कलाकारों को मंच पर प्रस्तुती की छूट जरूर है।
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200 कलाकारों की टीम एक महीने करती है मेहनतसीकर में रामलीला की शुरुआत में जगदीश नारायण माथुर, भगवान दास वर्मा, जगदीश प्रसाद चौकड़ीका, सत्यनारायण पंसारी, हरिराम बहड़, मोतीलाल पारीक, परसराम मल्लाका, मनोहर मिश्र और देवकीनंदन पारीक सरीखे कलाकारों की अहम भूमिका रही है। जिन्होंने सीमित संसाधनों में रामलीला की शुरुआत की थी। लेकिन, आज करीब 200 कलाकार रामलीला मंचन से जुड़े हैं। जो करीब एक महीने पहले से ही निशुल्क और निस्वार्थ भाव से रामलीला के मंचन की तैयारियों में जुट जाते हैं। कभी एक पर्दे से शुरू हुई रामलीला में अब सात पर्दो का रंगमंच है। जिसमें लगातार 7 दृश्य अलग अलग पर्दो पर चलाये जा सकते हैं।राव राजा की बग्गी में राम, कपड़े का था रावणसांस्कृतिक मंडल के संयुक्त मंत्री जानकी प्रसाद इंदोरिया ने बताया कि सीकर में सबसे पहला रावण कपड़े का बनाया गया था। जो बिड़दी चंद वेदी ने करीब 12 फीट का बनाया था। वहीं, भगवान राम की शोभायात्रा के लिए राव राजा कल्याण सिंह ने अपनी सजी धजी बग्गी संचालकों को दी थी। जिसमें बैठकर राम ने रावण को मारने के लिए प्रस्थान किया था।
सुबह सब्जी मंडी, शाम को राम-रावण संवादरामलीला का मंचन 1961 तक पतासे की गली स्थित माजी साब के कुंए पर हुआ। इतिहासकार महावीर पुरोहित बताते हैं कि उस समय कुएं पर सब्जी मंडी लगती थी। ऐसे में रामलीला के समय सुबह सब्जी मंडी लगती और शाम को सफाई कर वहीं रामलीला का मंच तैयार होता था। रामलीला के आयोजन की वजह से यही क्षेत्र सबसे पहले रामलीला मैदान भी कहलाया। बाद में जगह कम पडऩे पर राव राजा कल्याण सिंह ने मौजूदा रामलीला मैदान की जगह रामलीला के आयोजन के लिए स्वीकृत की। इसके बाद श्रीकल्याण रंगमंच के साथ यहां रामलीला और रावण दहन शुरू हुई और यह क्षेत्र रामलीला मैदान कहलाने लगा। बकौल पुरोहित 1953 से पहले भी सीकर में रामलीला होती थी। जो बाहरी मंडली जाटिया बाजार या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर करती।

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