सीकर टीम. धोरों की धरती शेखावाटी में होली के कई रंग है। खाटू नगरी में जहां बाबा श्याम के खजाने का प्रसाद लेने के लिए भक्त पहुंचते है वहीं झुंझुनूं जिले के मंडावा कस्बे में सात समंदर पार से विदेशी गुलाल की होली खेलने पहुंचे गए है। मंडावा कस्बे की होली सांप्रदायिक सौहार्द के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण की एक अनूठी मिसाल है। यहां की होली हिंदू और मुस्लिम न केवल साथ खेलते हैं बल्कि, यहां धुलंडी के दिन सूखी होली यानी सिर्फ गुलाल से होली खेली जाती है। जिसके साथ ही कस्बेभर में गैर जुलूस भी निकाला जाता है। जिसमें शामिल होने के लिए विदेशी सैलानी भी पहुंचे हैं। होली खेलने की इस अनूठी परंपरा की नींव 107 साल पहले वैध लक्ष्मीधर शुक्ल ने शुरू की थी। दरअसल, यहां जुलूस के दौरान सांप्रदायिक तनाव हुआ, तो वैध शुक्ल ने अखाड़ा श्री सर्व हितेषी व्यायामशाला संस्था का गठन कर होली पर एक शख्स को चारपाई पर लिटाकर धुलंडी का जुलूस शुरू किया। जिसके लिए चारपाई मुस्लिम समाज ने दी। जुलूस कस्बे में निकलता, तो सभी समुदाय के लोग इसमें शालीनता से शामिल हुए। यही प्रयास आगे परंपरा और सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बन गया। आज भी यहां फुहड़ता से परे महज गुलाल की होली खेली जाती है। जिसे खेलने विदेशी पर्यटक भी काफी संख्या में पहुंचते हैं।————————फतेहपुर में युवा रचाते है स्वांग
फतेहपुर. क्षेत्र में होली के त्योहार के रंग निराले ही हैं। बसंत पंचमी से ही फाल्गुनी बयार शुरू हो जाती हैं। लोग चंग व डफ पर थिरकने लग जाते हैं। रासियो की टोली रात भर चंग की थाप पर थिरकती हैं। युवाओं की टोली गींदड़ खेलती हैं। वर्षों से चली आ रही परम्परा आज भी चल रही हैं। हालांकि कुछ परिवर्तन जरूर हुआ है। गींदड़ में युवक मैरी बनकर यानी लडक़ी के कपड़े पहनकर आते हैं। इसके अलावा अलग अलग स्वांग रचकर नृत्य करते रहे हैं।
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लक्ष्मणगढ़: ठंडाई का प्रसाद और फिर रातभर होली रे रसिया…
कस्बे में होली की आम परंपराओं के अलावा घूघरी की अनूठी रवायत होली की रंगत को ही अलग कर देती है। गिंदड़ नृत्य के प्रसिद्ध कलाकार विजय चक्कीवाला बताते हैं कि करीब आठ दशकों से चली आ रही इस परंपरा में होली के दिन कस्बे में सदाबहार मौहल्ले में चौकान स्थित गीन्दड़ स्थल से चंग व गीन्दड़ की चलती-फिरती टोलियां (मोबाइल टीम) नाचते-गाते पूरे कस्बे मेंं घूमती हैं और कस्बे के प्रमुख सार्वजनिक चौराहों पर गिंदड़ नृत्य की प्रस्तुति देती हैं। चौकान पर ‘ठण्डाई’ का प्रसाद लेकर कलाकार गिंदड़ नृत्य प्रारम्भ करते हैं तथा पूरे कस्बे में घूमते हैं। पहले जहां इसमें भाग लेने वाले कलाकार स्त्री- पुरुष के स्वांग में आते हैं, वहीं बाद में शिव-पार्वती, राम-लक्ष्मण, गोटा-किनारी, राक्षस, बन्दर जैसे स्वांग भी धरे जाने लगे हैं।
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