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ममता बनर्जी के लिए भवानीपुर में भी नजारा नंदीग्राम जैसा

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ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को भवानीपुर से चुनाव लड़ना पड़ रहा है क्योंकि नंदीग्राम (Nandigram) में वो बीजेपी उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी से करीब दो हजार वोटों से हार गयी थीं और अब वो मामला अदालत में है. वैसे शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी को कम से कम 50 हजार वोटों से हराने का दावा किया था, लेकिन बड़ी बात ये रही कि हराने में सफल रहे. चुनावी माहौल के बीच तालिबान को लेकर भी बहस हो रही है.
ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) बीजेपी नेतृत्व को निशाना बनाकर कह रही हैं कि वो भारत को किसी को तालिबान नहीं बनाने देंगी, जबकि बंगाल बीजेपी के नये नवेले अध्यक्ष सुकांता मजूमदार तृणमूल सरकार को ही तालिबान सरकार करार दे रहे हैं. न जाने क्यों भवानीपुर उपचुनाव में भी नंदीग्राम संग्राम का अक्स नजर आने लगा है. अव्वल तो भवानीपुर से ममता बनर्जी को बगैर चुनाव प्रचार किये ही जीत जाना चाहिये, लेकिन ऐसा नहीं लग रहा है. ऐसा इसलिए नहीं कि किसी सर्वे से मालूम हुआ है, बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान ममता बनर्जी की बातों से ही ऐसा आभास हो रहा है.
लग रहा है नंदीग्राम संग्राम पार्ट-2 है
पश्चिम बंगाल की भवानीपुर (Bhawanipur) विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव को ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) और बीजेपी दोनों ही बीते दिनों खत्म हुई बंगाल की लड़ाई जैसा बनाने लगे हैं. शायद यही वजह है कि भवानीपुर उपचुनाव में भी नंदीग्राम विधानसभा चुनाव का अक्स दिखायी देने लगा है. नंदीग्राम में विधानसभा चुनाव के लिए गयीं ममता बनर्जी को नामांकन के दिन ही पैर में चोट लग गयी थी और पूर चुनाव के दौरान वो पैरों में प्लास्टर लगे ही व्हीलचेयर पर चुनाव प्रचार करती रहीं. प्लास्टर कटा भी तो चुनावों के बाद ही.
अच्छी बात ये रही कि ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को तो विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल हो गया, बल्कि सीटें भी ज्यादा ही मिलीं, लेकिन खराब बात ये रही कि वो खुद चुनाव हार गयीं. वो भी नंदीग्राम में जहां से उनकी राजनीति को नयी ऊंचाई मिली थी और हारीं भी अपने ही करीबी नेता रहे शुभेंदु अधिकारी से जो बीजेपी के टिकट पर चुनाव मैदान में थे. ममता बनर्जी के चुनाव कैंपेन को देख कर तो ऐसा ही लगता है जैसे भवानीपुर उपचुनाव में बीजेपी के खिलाफ वही दांव आजमा रही हैं, जो बीजेपी उनके खिलाफ पूरे बंगाल चुनाव के दौरान इस्तेमाल करती रही. जैसे पहले मुस्लिम तुष्टीकरण के बहाने बात आतंकवाद और पाकिस्तान तक पहुंच जाती रहीं, अब तालिबान का जिक्र भी उसी जोर शोर से होने लगा है.
पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने नेतृत्व परिवर्तन किया है और अब सुकांता मजूमदार ने दिलीप घोष की जगह ले ली है. सुकांता मजूमदार पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस पर तालिबानी सरकार चलाने का आरोप लगा रहे हैं, तो ममता बनर्जी सीधे नाम लेकर बीजेपी नेतृत्व पर ही हमला बोल दे रही हैं. बंगाल बीजेपी की कमान सौंपे जाने के अगले ही दिन सुकांता मजूमदार ने बीजेपी के ही एक कार्यक्रम में सवाल उठाया, क्या कोई यकीन कर सकता है कि चुनाव के बाद एक व्यक्ति की खुली सड़क पर हत्या कर दी गई. क्योंकि वो दूसरी पार्टी का समर्थक है? क्या ये लोकतंत्र है? चार राज्यों में चुनाव हुए, लेकिन बंगाल के अलावा किसी और राज्य में किसी की मौत नहीं हुई. केवल इसी राज्य में इतने लोगों की जान चली गई!’ पश्चिम बंगाल चुनाव में हार की समीक्षा के बाद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और उनके साथी इस नतीजे पर पहुंचे थे कि मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के कारण पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा.
पूरे बंगाल की हार के बावजूद बीजेपी नंदीग्राम जैसी महत्वपूर्ण सीट जीतने में कामयाब रही और वहां से विधायक शुभेंदु अधिकारी फिलहाल विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं. बीजेपी को विधानसभा चुनाव में 77 सीटें मिली थीं जिनमें तीन-चार विधायक पाला बदल कर सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं. ऐसे विधायकों में से एक मुकुल रॉय भी हैं. नंदीग्राम में मुस्लिम वोटर 12 फीसदी हैं, लेकिन भवानीपुर में ये संख्या 20 फीसदी है. बीजेपी के आकलन के हिसाब से भी देखें तो पलड़ा तो ममता बनर्जी का ही भारी लगता है. लेकिन ममता बनर्जी की बातों से नहीं लगता कि वो किसी भी स्थिति में वोटों का ध्रुवीकरण चाहती हैं. बीजेपी उम्मीदवार प्रियंका टिबरेवाल मारवाड़ी समुदाय से आती हैं.
ममता बनर्जी बीजेपी को भारतीय जुमला पार्टी बताती हैं और कहती हैं, ‘वे झूठ बोलते हैं कि हम राज्य में दुर्गा पूजा, लक्ष्मी पूजा की अनुमति नहीं देते हैं.’ इससे तो यही लगता है कि ममता बनर्जी को हिंदू वोटों कि कितनी फिक्र है. और फिर बंगाल बीजेपी अध्यक्ष सुकांता मजूमदार के बयान पर जो पलटवार करती हैं, वो सीधे बीजेपी नेतृत्व को ही टारगेट कर रहा है, नरेंद्र मोदी जी… अमित शाह जी… हम आपको भारत को तालिबान के जैसा नहीं बनाने देंगे… भारत एक रहेगा… गांधीजी, नेताजी, विवेकानंद, सरदार वल्लभभाई पटेल, गुरुनानक जी, गौतम बुद्ध, महावीर सभी के अनुयायी इस देश में साथ रहेंगे. हम किसी को भी भारत का बंटवारा नहीं करने देंगे.
ममता बनर्जी की बातें सुन कर तो ऐसा ही लगता है जैसे वो भवानीपुर के मैदान से ही सीधे दिल्ली पर निशाना साध रही हों. क्योंकि उनका अगला टारगेट तो 2024 में दिल्ली पर फतह ही है. विधानसभा चुनावों में ही ममता बनर्जी ने कहा था कि एक पैर से बंगाल जीत गये और दो पैरों से दिल्ली जीतेंगे. भवानीपुर उपचुनाव ममता बनर्जी के लिए कितना महत्वपूर्ण ये सबको मालूम है और ममता बनर्जी अपने चुनाव प्रचार के दौरान जोर देकर इसे बार बार याद भी दिला रही हैं, लेकिन जिस तरह की बातें ममता बनर्जी कर रही हैं उससे तो भ्रम पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है.
तरीका तो भ्रम पैदा करने वाला है
विधानसभा चुनावों के दौरान जिस तरीके से ममता बनर्जी चुनाव आयोग पर इल्जाम लगाती रहीं, शायद ही उनको या उनके साथी नेताओं को उम्मीद रही होगी कि भवानीपुर में उपचुनाव उनके मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के छह महीने के भीतर हो पाएंगे. दरअसल, ममता बनर्जी के लिए शपथग्रहण के छह महीने के भीतर विधानसभा का सदस्य बन जाना जरूरी है, तभी वो आगे भी मुख्यमंत्री बनी रह सकती हैं और भवानीपुर उपचुनाव के लिए प्रचार के दौरान भी ममता बनर्जी ये चीज बार बार दोहरा रही हैं, लेकिन जिस तरीके से ममता बनर्जी भवानीपुर के लोगों से वोट मांग रही हैं उससे भ्रम की स्थिति भी पैदा हो सकती है.
भवानीपुर के लोगों से ममता बनर्जी कह रही हैं कि अगर वो चुनावों में जीत हासिल नहीं कर पायीं तो पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कोई और बैठ जाएगा. ऐसा हो सकता है, लेकिन उससे फर्क क्या पड़ेगा? साउथ कोलकाता के इकबालपुर में अपनी पहली चुनावी सभा में ममता कहती हैं, अगर मैं नहीं जीत पाती हूं तो कोई और मुख्यमंत्री बन जाएगा. ममता बनर्जी जो कह रही हैं वो सौ फीसदी सच है, लेकिन ऐसा बोल कर वो लोगों को क्या समझाना चाहती हैं? ये ठीक है कि ममता बनर्जी के चुनाव नहीं जीत पाने की सूरत में वो मुख्यमंत्री नहीं रह पाएंगी, लेकिन इतने भर से तृणमूल कांग्रेस सत्ता से बेदखल तो नहीं होने वाली है.
ममता बनर्जी न सही तृममूल कांग्रेस का कोई और नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठेगा, लेकिन सरकार तो तृणमूल कांग्रेस की ही रहेगी जिसकी वो नेता हैं. नीतियां भी वही रहेंगी जो ममता बनर्जी या तृणमूल कांग्रेस ने बनायी है या जो पार्टी के चुनावी वादे हैं. जिस तरीके से टीएमसी महासचिव अभिषेक बनर्जी को ममता बनर्जी के उत्तराधिकारी के तौर पर प्रोजेक्ट किया जा रहा है, हो सकता है परिस्थितियां बदलने पर उनको ही विधायक दल का नेता चुन लिया जाये. भला अभिषेक बनर्जी के पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री बनाये जाने पर ममता बनर्जी या उनकी पार्टी को कोई दिक्कत है क्या. आखिर बंगाल के लोगों ने जब ममता बनर्जी के फेस वैल्यू पर वोट दिया है और कमान उनके पास ही है तो कुर्सी पर किसी और के बैठ जाने से क्या फर्क पड़ने वाला है.
वैसे भी ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस के संसदीय बोर्ड का चेयरमैन बन कर अपने इरादे तो साफ कर ही दिये हैं. दिल्ली में पांच दिन गुजारने के बाद जिस तरह ममता बनर्जी को शरद पवार से होने वाली मुलाकात के बगैर ही लौटना पड़ा वो परेशान तो किया ही होगा, लेकिन जब वो सोनिया गांधी की बुलायी मीटिंग में शामिल हुईं तो जी भर सुनाया भी. अगर ममता बनर्जी के किसी और के मुख्यमंत्री बन जाने का डर लोगों को गुमराह करने वाला लगा तो क्या होगा? भवानीपुर की डेमोग्राफी को देखते हुए ममता बनर्जी लोगों से बंगाली और हिंदी मिलाकर बात करती हैं और कहती हैं, मैंने नंदीग्राम से चुनाव लड़ा था लेकिन मुझे वहां पर हराने की साजिश रची गई. ये मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है.
भारत के संविधान के मुताबिक मुझे मुख्‍यमंत्री बने रहना है तो भवानीपुर विधानसभा सीट से मुझे जीत हासिल करनी होगी. ममता बनर्जी आगे समझाती हैं, मेरे लिए एक-एक वोट जरूरी है… अगर आप ये सोचकर वोट नहीं करेंगे कि दीदी तो पक्का जीतेंगी तो ये बड़ी भूल होगी.. बारिश हो या तूफान आ जाये.. घर पर मत बैठे रहना, वोट डालने जरूर आना वरना मैं मुख्यमंत्री नहीं बनी रह सकूंगी.. आपको नया मुख्यमंत्री मिलेगा. भवानीपुर सहित पश्चिम बंगाल की तीन सीटों पर 30 सितंबर को उपचुनाव के लिए वोटिंग होनी है और नतीजे 3 अक्टूबर को घोषित किये जाएंगे.
The post ममता बनर्जी के लिए भवानीपुर में भी नजारा नंदीग्राम जैसा appeared first on THOUGHT OF NATION.

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