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चार बेटियों सहित पांच मासूमों को मरने के लिए छोड़ा, तीन कांटों व एक नाली में मिली नवजात

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देवेन्द्र शर्मा ‘शास्त्री’सीकर. मासूम सी आंखे। कभी पलके झपकाती तो कभी छत को निहारती। इनके पास दुध, दवा से लेकर ध्यान रखने वाली आया तक सब कुछ है। यह वंचित है तो केवल मां के आंचल से। वह किसी से यह सवाल भी नहीं पूछ सकती की जन्म देने वालों ने उसके साथ ऐसा क्यों किया। क्यों उसे कांटों में, नाली में और पेड़ की टहनियों के पास बेसहारा छोड़ा। जबकि उनको गोद लेकर दुलार करने वालों की यहां कोई कमी नहीं है। बात चल रही है अपनों से बिसराई गई नन्हीं कन्या साक्षी, संभागी और आज ही सीकर आई सुनंदा की। यह कन्याएं यहां पालवास रोड स्थित राजकीय संप्रेक्षण एवं किशोर ग्रह स्थित शिशु ग्रह में पल रही है। किशोर ग्रह में वर्तमान में तीन कन्याएं है, जबकि इनको गोद लेकर पालने के लिए 25 लोग आवेदन कर चुके हैं। इस संस्थान से पिछले वर्ष नौ कन्याओं को लोगों ने गोद लिया है।
सीकर जिले में इस वर्ष में अब तक पांच बच्चे लावारिश हालत में मिले हैं। खास बात यह है कि इनमें से चार कन्याएं हैं। पिछले डेढ़ माह में ही तीन कन्याओं को बेरहम मां ने आंचल से दूर किया है। इनमें से एक को करीब डेढ़ माह पालने के बाद दादिया टोल नाके के पास गमले में पेड़ की टहनियों में छोड़ दिया गया। फतेहपुर के कल्याणपुरा और पाटन क्षेत्र में जन्म के तत्काल बाद कांटे और नाली की गंदगी में छोड़ दिया। भगवान ने इन बालिकाओं के उम्र की रेखा लम्बी खींची। ऐसे में खतरे के बीच इन मासूमों का जीवन बच गया।
सरकारी पालने से दूर क्रूर आंचलजन्म के बाद बच्चों को बिसराने वालों के लिए भले ही सरकार ने व्यवस्था दे रखी हो, लेकिन ऐसे परिवारों को इन पर विश्वास नहीं है। सीकर जिले की स्थिति देखे तो शिशु ग्रह और सरकारी जनाना अस्पताल में ऐसे लोगों के लिए पालने लगा रखे हैं। लेकिन इस वर्ष किसी ने भी पालने में बच्चा नहीं रखा, जबकि पालने में बच्चा छोडऩे वाले की ना तो कोई जांच की जाती है और ना ही पूछताछ। इसके बाद भी लोग पालने में बच्चा क्यों नहीं छोड़ते यह जिम्मेदार अधिकारियों को भी समझ में नहीं आ रहा है। हालांकि पिछले वर्ष चार बच्चों को पालने में छोड़ा गया था।
छह आया संभालती है बच्चों कोशिशु ग्रह में बच्चों को संभालने के लिए छह आया नियुक्त है। तीन शिफ्टों में आया वहां मासूम बच्चों की देखरेख करती है। इसके अलावा उनके स्वास्थ्य का चेकअप करने के लिए एक नर्स नियुक्त है। बच्चों के स्वास्थ्य के साथ उनके दूध और खाने का ध्यान रखने के साथ उनके लिए खिलौनों की भी यहां व्यवस्था की गई है।
कोई बिसरा रहा है…तो कोई तरस रहा है बेटी कोजन्म के बाद जहां लोग बेटी को बिसराने वालों की बजाय चाहने वालों की संख्या ज्यादा है। संस्थान में बच्चा गोद लेने के लिए आवेदन करने वालों पर नजर डाली जाए तो 25 में से 18 लोग बेटी को गोद लेना चाहते हैं। इनमें से अधिकतर लोग ऐसे हैं, जिनको भगवान ने बेटा तो दिया है, लेकिन उनके घर में बेटी की किलकारी नहीं गूंजी।
पुलिस नहीं खपाती माथा
मासूम बच्चों को लावारिस छोडऩे के मामले में पुलिस भी माथा नहीं खपाती है। पुलिस की भूमिका केवल मामला दर्ज कर एफआर लगाने तक की होती है। सीकर जिले में पिछले वर्षों में मिले मासूम लावारिश बच्चों की जांच की स्थिति को देखा जाए तो ऐसा ही सामने आता है। एक भी मामले में पुलिस ऐसे परिवार तक नहीं पहुंच पाई है, जिसने जन्म के बाद बच्चे को मरने के लिए लावारिश छोड़ दिया गया हो।
अपील…नहीं पाल सकते तो सुपुर्द कर दो बच्चाराजकीय संप्रेक्षण एवं किशोर ग्रह की अधीक्षक डॉ. गार्गी शर्मा का कहना है कि बच्चे अनमौल होते हैं। कोई परिवार जन्म के बाद उन्हें नहीं पाल सकता तो सरकार को सुपुर्द कर सकता है। इसके लिए पालने लगाए हुए हैं। इन पालनों में बच्चा रखकर जाने पर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं होती। बच्चे को नाली, कांटे या गंदे स्थान पर रखने पर उनमें संक्रमण हो सकता है। पिछले वर्ष मिले एक बच्चे की ऐसे ही संक्रमण से जयपुर में उपचार के दौरान मौत हो गई थी। डॉ. गार्गी ने ऐसे लोगों से आग्रह किया है कि वे बच्चे को लावारिश छोडऩे की बजाय पालने में छोड़कर जाए। उन्हें पालने की जिम्मेदारी संस्थान की होगी।

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