लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) की घटना ने किसान आंदोलन की वजह से पहले से ही हलकान बीजेपी को और मुसीबत में डाल दिया है. पार्टी को इस बात का डर सता रहा है कि इस घटना से भड़का आक्रोश इस इलाक़े में उसे उसके पुराने प्रदर्शन को दोहराने से रोक सकता है और अगर ऐसा हुआ तो यह निश्चित रूप से सत्ता से उसकी विदाई का रास्ता तैयार कर सकता है.
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को लखीमपुर खीरी जिले की सभी 8 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी. यह उसके 2012 के विधानसभा चुनाव में किए गए प्रदर्शन से ठीक उलट था, जब इस जिले में सिर्फ़ एक सीट उसकी झोली में गई थी. उत्तर प्रदेश के इस तराई वाले इलाक़े में सिखों की अच्छी संख्या है. इनमें अधिकतर किसान हैं और कृषि क़ानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर बीते कई महीनों से सड़क पर हैं.
यहां खेती करने वाले सिखों की माली हालत काफी बेहतर है. यहां बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती होती है. लेकिन बीजेपी का डर सिर्फ़ लखीमपुर खीरी जिले तक ही सीमित नहीं है. उसकी चिंता यह है कि इस जिले में भड़का किसानों का ग़ुस्सा इसके पड़ोसी जिलों- पीलीभीत, शाहजहांपुर, हरदोई, सीतापुर और बहराइच में भी उसे राजनीतिक नुक़सान पहुंचा सकता है. 2017 के विधानसभा चुनाव में इन सभी जिलों में बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहा था.
लखीमपुर खीरी को मिलाकर इन छह जिलों की 42 विधानसभा सीटों में से पार्टी ने 37 सीटों पर फतह हासिल की थी. लेकिन चुनाव से ठीक पहले किसानों की मौत की घटना के बाद ऐसा प्रदर्शन दोहरा पाना मुमकिन नहीं दिखता. इसके अलावा समूचे विपक्ष ने जिस जोरदार ढंग से लखीमपुर खीरी की घटना को मुद्दा बनाया है, उससे भी बीजेपी नेताओं की पेशानी पर बल आ गए हैं.
विपक्षी नेताओं को भी लगता है कि यह घटना बीजेपी को भारी पड़ सकती है. कांग्रेस की लखीमपुर इकाई के अध्यक्ष सिद्धार्थ त्रिवेदी ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा, इस घटना के बाद बीजेपी को वोटों का नुक़सान होगा. देखना होगा कि बीजेपी को जितने वोटों का नुक़सान होगा, उसमें से अधिकतर वोट किसे मिलते हैं. बीजेपी के एक स्थानीय नेता भी इस बात को स्वीकारते हैं कि इस घटना को लेकर पार्टी में बेचैनी वाले हालात हैं.
बीजेपी नेता अब तक इस बात का दावा करते नहीं थकते थे कि किसानों का आंदोलन पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आगे नहीं बढ़ सका है. लेकिन लखीमपुर खीरी की घटना के बाद राज्य में कई जगहों पर किसान सड़क पर उतरे हैं. सोशल मीडिया पर भी पार्टी का जबरदस्त विरोध हो रहा है. विपक्ष को तो इस घटना के बाद राजनीतिक संजीवनी मिली ही है, वे किसान जो विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबक सिखाने की बात कह रहे थे, वे भी भरपूर जोश के साथ मैदान में डट गए हैं.
वीडियो ने बिगाड़ा खेल
योगी सरकार ने किसानों के साथ समझौता कर इस मुद्दे को दबाने की कोशिश की थी लेकिन एक नये आए वीडियो ने उसे बैकफ़ुट पर ला दिया है. इस वीडियो में एक गाड़ी किसानों को कुचलते हुए दिख रही है और एक शख़्स गाड़ी से भागता हुआ भी दिखाई दिया है. कहा जा रहा है कि यह शख़्स केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी का पुत्र आशीष मिश्रा है. अगर यह बात जांच में साबित हो गई कि यह शख़्स वास्तव में आशीष मिश्रा है तो किसान उत्तर प्रदेश में बीजेपी का बोरिया-बिस्तर बांधने के लिए और ज़्यादा कमर कसकर मैदान में उतर सकते हैं.
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