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किसान आंदोलन और उत्तर प्रदेश का विधान सभा चुनाव

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उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव कई मायनों में अहम है. अगर उत्तर प्रदेश की मौजूदा सत्ताधारी पार्टी बीजेपी आने वाला विधानसभा चुनाव हार जाती है तो कहीं ना कहीं यह 2024 में तीसरी बार केंद्र की सत्ता पाने की उम्मीद लगाए बीजेपी और आरएसएस के नेतृत्व के लिए बहुत बड़ा झटका होगा.
तीनों कृषि बिलों के विरोध में जारी किसान आंदोलन (Kisan Aandolan) को भले ही बीजेपी यह दिखाने की कोशिश करें कि वह हल्के में ले रही है, भले ही किसान आंदोलन को यह कहकर बदनाम किया जाए कि यह आंदोलन बिचौलियों का है, असली किसान तीनों कृषि बिल के समर्थन में हैं. लेकिन अंदर से बीजेपी जानती है कि किसान बीजेपी को कितना बड़ा झटका दे सकते हैं उत्तर प्रदेश में.
Kisan Aandolan और ममता बनर्जी की जीत
पश्चिम बंगाल में लगभग 2 से 3 साल तक बीजेपी ने मेहनत की ताकि वह पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव जीतकर इतिहास बना सके. लेकिन ममता बनर्जी के सामने बीजेपी की एक भी न चली. लेकिन ममता बनर्जी की जीत में किसान आंदोलन की भी बड़ी भूमिका है. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राकेश टिकैत समेत कई बड़े किसान नेता पश्चिम बंगाल किसान पंचायत करने के लिए गए थे और वहां की जनता को बीजेपी की नीतियों के खिलाफ समझाया, जिसका बड़े स्तर पर बीजेपी को नुकसान भी हुआ.
किसानों के बारे में गोदी मीडिया द्वारा बीजेपी यह प्रचार करवा रही है कि किसान राजनीतिक एजेंडा चला रहे हैं. आंदोलनकारी किसान विपक्ष की राजनीतिक पार्टियों के इशारे पर बीजेपी को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं, यह असली किसान नहीं है बल्कि एक राजनीतिक एजेंडे के तहत बीजेपी का विरोध कर रहे हैं. बीजेपी और मीडिया की मिलीभगत भी पश्चिम बंगाल में बीजेपी और आरएसएस के मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया. इसमें बहुत बड़ा रोल किसानों का भी है यह बीजेपी अंदर से जानती है.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव और Kisan Aandolan
किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा था कि जिस तरह से दिल्ली को घेरा है उसी तरीके से अगर मांगे पूरी नहीं हुई और तीनों कृषि बिल सरकार ने वापस नहीं लिया तो लखनऊ को भी घेरेंगे. जिसके जवाब में बीजेपी सोशल मीडिया द्वारा एक कार्टून पोस्ट किया गया. जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राकेश टिकैत के बाल पकड़कर घसीटते हुए ले जा रहे हैं.
जल्दबाजी में बीजेपी की सोशल मीडिया टीम ने यह कार्टून तो पोस्ट कर दिया. लेकिन इसका बड़े स्तर पर विरोध हुआ और बीजेपी को आलोचना भी झेलनी पड़ी. दरअसल योगी आदित्यनाथ की टीम सिर्फ और सिर्फ मुख्यमंत्री के प्रचार प्रसार में जुटी हुई है. मुख्यमंत्री भी यही काम कर रहे हैं, काम हुआ हो या ना हुआ हो बढ़ा चढ़ा कर दिखाना और अपने आप को सर्वश्रेष्ठ दिखाना.
किसान आंदोलन उत्तर प्रदेश बीजेपी को पहले ही बड़ा झटका दे चुका है. ग्राम पंचायत के चुनाव में पश्चिमी यूपी में बीजेपी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी की ग्राम पंचायत के चुनाव में बड़ी हार के पीछे किसानों की नाराजगी को बड़ा कारण बताया जा रहा है. लेकिन इसके बाद भी बीजेपी और उससे जुड़ी हुई अलग-अलग टीमें, किसान आंदोलन कितना बड़ा नुकसान उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कर सकता है मालूम होते हुए भी जाहिर नहीं कर रही हैं.
लेकिन बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को और आरएसएस को इस बात की खबर है और आशंका भी है कि किसान आंदोलन अगर यूं ही चलता रहा और विधानसभा चुनाव के दौरान और उससे पहले किसान लगातार पंचायत करते रहे उत्तर प्रदेश में तो इसका खामियाजा विधानसभा चुनाव में बड़ी हार झेल कर भी भुगतना पड़ सकता है. इसीलिए बीजेपी की तरफ से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर लगातार बैठकें हो रही हैं जिसमें आरएसएस के पदाधिकारी भी भाग ले रहे हैं.
किसान आंदोलन और किसान पंचायत का जवाब बीजेपी उत्तर प्रदेश में चौपाल लगाकर देने की बात कर रही है. हालांकि इसका कितना लाभ होगा और कितने नुकसान से बीजेपी बच सकती है, यह तो विधानसभा चुनाव परिणाम ही तय करेंगे. लेकिन इतना जरूर है कि किसान आंदोलन बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में एक बड़ी चुनौती साबित होगा. आरएलडी और सपा का गठबंधन जिसे पश्चिमी यूपी में किसानों का समर्थन हासिल है, बीजेपी के लिए आने वाले विधानसभा चुनाव में बड़ी चुनौती दे सकते है.
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