गणतंत्र दिवस पर किसान परेड के दौरान हुई हिंसा को लेकर योगेंद्र यादव समेत कई किसान नेताओं के खिलाफ केस दर्ज किए गए हैं. पुलिस ने सरवन सिंह पंढेर, सतनाम सिंह पन्नू के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की है. बता दें कि मामले में किसान नेता भी उन लोगों की पहचान कर रहे हैं जो कि हिंसा में शामिल थे.
पुलिस ने मामले में साजिश रचे जाने का भी केस दर्ज किया है. बता दें कि एक फरवरी को किसानों ने संसद मार्च की भी योजना बनाई है. कल की हिंसा में डीटीसी की 6 बसों और 5 पुलिस वाहनों को नुकसान पहुंचा है. एफआईआर से ये जानकारी मिली है. कई पुलिसकर्मी घायल हुए हैं और 70 के आस-पास बैरिकेड टूटे हैं. पुलिस ने मामले में 22 एफआईआर दर्ज की हैं. कुल 300 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं.
किसानों एक बड़े तबके ने दीप सिद्धू को हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया है. जिसने की लाल किले की प्राचीर पर सिख धर्म का झंडा लगाया. किसानों का आरोप है कि दीर सिद्धू सरकार का आदमी है. हमको इस साजिश को समझने की जरूरत है. कैसे ये लोग लाल किले पहुंचे और पुलिस ने उन्हें जाने दिया? किसानों का कहना है कि जिन्होंने लाल किले पर हुड़दंग मचाया है वे किसान नहीं हैं गद्दार हैं.
किसान आज सिंघू बॉर्डर पर बैठक कर रहे हैं. जिससे कि आगे की रणनीति तय की जा सके. गृह मंत्री अमित शाह ने कल एक उच्च स्तरीय मीटिंग बुलाई थी. जिसमें फैसला लिया गया था कि दिल्ली में अतिरिक्त संख्या में सुरक्षा बल तैनात किए जाएंगे. पंजाब और हरियाणा सरकार ने भी हाई अलर्ट जारी कर दिया है. सरकार को दिल्ली एनसीआर में कुछ जगह पर इंटरनेट पर रोक भी लगानी पड़ी है.
26 जनवरी के दिन किसानों को दिल्ली में एक तय रूट पर रैली करने की इजाजत दी गई थी. हालांकि तय समय से पहले ही किसान बॉर्डर से दिल्ली के भीतर घुसने लगे. इसके बाद दिल्ली में कई जगह किसानों और पुलिस की झड़प हुई. इसके चलते मेट्रो स्टेशन भी बंद करने पड़ गए थे. संयुक्त किसान मोर्चे ने बाद में धरना स्थल पर लौटने को कहा था. मोर्चे ने बताया कि कुछ असामाजिक लोग किसानों के मार्च में शामिल हो गए थे.
‘संसद मार्च’ को रद्द कर सकते हैं किसान
गणतंत्र दिवस के दिन ट्रैक्टर रैली में हिंसा के बाद अब एक फ़रवरी को बजट के दिन प्रस्तावित ‘संसद मार्च’ रद्द किया जा सकता है. सूत्रों के अनुसार किसान संगठनों ने इसके संकेत दिए हैं. किसान नेताओं ने आज प्रदर्शन कर रहे किसानों से शांति बनाए रखने की अपील की और कहा कि केंद्र के कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ उनका आंदोलन लंबा है. किसान नेताओं ने मंगलवार की हिंसा से ख़ुद को अलग भी किया और कहा कि आंदोलन को बदनाम करने की साज़िश रची गई.
इन्हीं आरोपों के बीच किसान आज बैठक कर रहे हैं. माना जा रहा है कि मंगलवार की हिंसा के बाद किसान नेताओं पर काफ़ी दबाव है कि इस किसान आंदोलन को बदनाम होने से बचाएँ. अभी तक इस आंदोलन की दुनिया भर में इसके लिए तारीफ़ होती रही है कि दो महीने आंदोलन चलने के बावजूद यह पूरी तरह शांतिपूर्ण रहा है. पानी की बौछारें, लाठी चार्ज और आँसू गैस के गोले छोड़े जाने जैसी पुलिस की सख़्ती के बावजूद किसान हिंसा पर नहीं उतरे.
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