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पर्यावरण दिवस विशेष: बंदियों ने बदल दी जेल की ‘आबोहवा’, उगा दिए आम व अंजीर

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सचिन माथुरसीकर. जेल शब्द सुनते ही जेहन में सलाखें, घुटन व खौफ का मंजर उभर आता है। लेकिन, आप सीकर की शिवसिंहपुरा जेल देख लें, तो यह तस्वीर आपकी सोच बिल्कुल बदल देगी। जहां बंदियों ने ही जेल की आबोहवा पूरी तरह बदल कर रख दी है। उन्होंने जेल को हरियाली से ऐसा सराबोर कर दिया है कि अब यह कैद कम सैर-सुकून की जगह ज्यादा लगती है। इसके लिए बंदी भी न केवल पेड़-पौधे लगा रहे हैं, बल्कि खुद भी नई पौध तैयार कर रहे हैं। काम इतनी शिद्दत से किया जा रहा है कि जेल में फू्रट से लेकर अंजीर जैसे ड्राई फू्रट तक उगने लगे हंै। मनसुख रणवां स्मृति संस्थान व जेल प्रशासन ने राजस्थान पत्रिका के हरयाळो राजस्थान अभियान से प्रेरित होकर यह पहल शुरू की है।
फ्रूट से लेकर ड्राई फ्रूट तक उगाए
जेल में बंदियों ने अमरूद, अनार, बील, करुंदा, मौसमी, किन्नू, जामुन, बील, आम, चीकू व सीताफल तक के फलों के पेड़-पौधे लगाए हैं। जो सब फल दे रहे हैं। ड्राइफू्रट के रूप में अंजीर के चार पेड़ लगे हैं। जिनमें भी अब अंजीर लगने लगे हैं।
खुद तैयार की 500 पौध
लॉकडाउन में जेल में बाहर से पौधे नहीं आने पर बंदियों ने खुद ही पौध तैयार की है। इसके लिए उन्होंने बकायदा प्रशिक्षण भी लिया। जिसके बाद चंपा, नागदून, पत्थर चट्टा, लीली, मेघ प्लांट, सहजन, मेहंदी व गुलाब के करीब 500 पौधे तैयार किए गए।
 
कीचन गार्डन सहित चार बगीचे
बंदियों के सहयोग से ही जेल में चार अलग-अलग बगीचे तैयार किए जा चुके हैं। जिनमें एक कीचन गार्डन भी है। जिसमें मौसम के हिसाब से सब्जियां उगाई जा रही हैं। फिलहाल यहां बैंगन, मिर्ची, टमाटर व भिंडी सहित कई सब्जियां उगा रखी है।
चोरी-डकैती व ज्यादती के आरोप में बंद बंदी बोले, यहां सुकून मिलता है…शिवसिंहपुरा जेल में फिलहाल 241 बंदी है। जिनमें से करीब 15 बंदी जेल में पर्यावरण संरक्षण का जिम्मा संभाल रहे हैं। बाकी को अन्य जिम्मेदारियां सौंपी गई है। पर्यावरण प्रेमी ये बंदी चोरी-डकैती से लेकर ज्यादती जैसे जुर्म में आरोपी हैं। लेकिन, अब प्रकृति की गोद में सुकून ढूंढ रहे हैं। पत्रिका टीम ने जब बंदियों से बात की तो उनका कहना था कि अब से पहले उन्होंने कभी बागवानी नहीं की थी। लेकिन, अब जेल में ये काम करने पर उन्हें प्रकृति के सौंदर्य से सुकून का अहसास हुआ है। कहा, कि लोगों के जीवन व सुकून से जुड़ा ये काम जेल से बाहर आने पर नई जिंदगी की शुरुआत के साथ वे आगे भी जारी रखेंगे।
मनसुख रणवां संस्थान की अनूठी पहल
बंदियों को प्रकृति से जोडऩे की पहल मनसुख रणवां मनु स्मृति संस्थान द्वारा की गई है। पिछले साल संस्थान ने लाखों रुपए के पेड़-पौधे उपलब्ध करवाकर जेल में बाग विकसित करने का अभियान शुरू किया था। जिसके तहत संस्था अध्यक्ष दुर्गा देवी रणवां व सचिव अभिलाषा रणवां ने बंदियों को भी पौध तैयार करने व लगाने का प्रशिक्षण दिया। पत्रिका अंडर 40 अभियान में चयनित अभिलाषा का कहना है कि प्रकृति के प्रेम से बंदियों में सकारात्मक भाव व उर्जा पैदा करने व रोजगार का एक विकल्प उपलब्ध करवाने के लिहाज से संस्थान ने ये अभियान जेल में शुरू किया। थाई एप्पल सहित फल-फूल व सब्जियों के अन्य बाग भी जेल में तैयार किए जाएंगे।
सकारात्मक परिणामबंदी खुद पौध तैयार कर रहे हैं। उनकी सार-संभाल भी कर रहे हैं। हजारों पेड़-पौधों से जेल की तस्वीर बदल गई है। इसका बंदियों पर भी सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहा है।
सौरभ स्वामी, जेलर, शिवसिंहपुरा जेल

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