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सरकारी स्कूलों में बढ़ा 10 लाख से ज्यादा नामांकन, अब बैठने के लिए जगह पड़ेगी कम

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सीकर. कोरोनाकाल में प्रदेश की कई सरकारी स्कूलों में नामांकन कई गुणा बढ़ गया है। यदि मंत्रिमण्डलीय समिति की ओर से स्कूलों को अनलॉक करने के प्रस्ताव को हरी झंडी दी जाती है तो कई स्कूलों में विद्यार्थियों को बैठने की जगह मिलना भी मुश्किल है। कोरोना गाइडलाइन की वजह से सोशल डिस्टेंस रखते हुए दूर-दूर बैठाना पड़ेगा। कई स्कूलों में नामांकन के अनुपात में भवन सहित अन्य संसाधनों का टोटा पडऩा तय है। इसको लेकर अभी से संस्था प्रधान योजना बनाने में जुट गए हैं। प्रदेश की सरकारी स्कूलों में पिछले दो साल में औसत दस लाख से अधिक नामांकन बढ़ा है। जबकि अभी तक प्रवेश प्रक्रिया जारी है। इस साल सरकारी स्कूलों में नामांकन का आंकड़ा 90 लाख पार होने की संभावना है।
अंग्रेजी माध्यम: एक सीट के लिए 22 विद्यार्थी तक रहे दौड़ मेंअंग्रेजी माध्यम स्कूलों में प्रवेश को लेकर विद्यार्थियों में क्रेज लगातार बढ़ रहा है। जयपुर, अलवर, कोटा, बीकानेर, जोधपुर व सीकर सहित कई जिलों में पहली कक्षा में एक सीट के लिए 22 विद्यार्थियों में दाखिले की दौड़ देखने को मिली।
इन 4 वजहों से बढ़ा नामांकन1. आर्थिक संकट व फीस कोरोना की वजह से विद्यार्थी लम्बे समय से स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। कई परिवार ऐसे हैं जिन्होंने फीस को मुद्दा बनाते हुए निजी स्कूलों से टीसी कटवाकर सरकारी स्कूलों में प्रवेश दिला दिया। साथ में ऑनलाइन कोचिंग जॉइन करवा दी।2. लौटे प्रवासी कामगार कोरोनाकाल में काफी प्रवासी कामगार दूसरे राज्यों से लौटे। कुछ मजदूर वापस गए लेकिन कइयों ने अपने गांव व कस्बे में ही रोजगार तलाश लिया। दुबारा जाने वाले कई कामगार कोरोना की वजह से परिवारों को साथ लेकर नहीं गए।3. सरकारी स्कूल नजदीक अच्छी पढ़ाई और शैक्षिक माहौल की वजह से हजारों विद्यार्थियों ने अपने गांव-ढाणियों से दूर नामी स्कूलों में दाखिला ले रखा था। कोरोना की वजह से स्थितियां बदली। सैकड़ों विद्यार्थियों ने गांव के नजदीकी सरकारी स्कूलों में दाखिला ले लिया।4. सरकारी स्कूलों की बदली सूरत सरकारी स्कूलों के प्रति धारणा भी थोड़ी बदली है। कुछ सरकारी स्कूलों ने शैक्षिक गुणवत्ता के दम पर अपनी पहचान भी बनाई है। महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों का नवाचार भी अभिभावकों को काफी रास आया।
इन 3 मामलों से समझें कैसे बढ़ा सरकारी स्कूलों में नामांकनकेस एक: फतेहपुर स्कूल में दो साल में 300 से ज्यादा नए विद्यार्थीराजकीय माध्यमिक विद्यालय नेवटिया फतेहपुर में दो साल में 300 नए विद्यार्थियों ने दाखिला लिया है। अभी भी दाखिले जारी है। यहां कई विद्यार्थी निजी स्कूलों को छोड़कर भी आए हैं। इससे पहले कई साल तक तो इस स्कूल में नामांकन रोक पाना भी चुनौती बना हुआ था। केस दो: एसके स्कूल सीकर में 900 से ज्यादा बढ़े बच्चेसीकर के एसके स्कूल में भी दो साल में 900 से अधिक का नामांकन बढ़ा है। अब इस स्कूल में कुल नामांकन 1300 को पार कर गया है। यहां भी पहले नामांकन को रोकना स्टाफ की सबसे बड़ी परीक्षा थी। इस साल के नामांकन का अंतिम आंकड़ा अभी बाकी है।केस तीन: दो साल में 400 तक बढ़ा नामांकनराजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय सिंगरावट में भी दो साल में लगभग 400 का नामांकन बढ़ गया है। इस साल भी शिक्षकों की ओर से काफी नवाचार किए जा रहे हैं।
तलाशी नई राहें : कबाड़ के निस्तारण से खाली हुए 15 हजार कमरेलगातार नामांकन बढऩे पर कई स्कूलों ने नई राहें भी तलाश ली। शिक्षा विभाग की ओर से स्कूलों में कई वर्षों से जमा कबाड़ के निस्तारण के लिए नीति बनाकर छूट दी गई। इसका कई स्कूलों ने फायदा उठाया। प्रदेशभर में 15 हजार से अधिक कमरे भी खाली हो गए। कई स्कूलों की ओर से जन सहभागिता योजना में नए कक्षा कक्ष बनवाए गए। लेकिन कई स्कूलों में कम कक्षा-कक्ष अभी भी चुनौती है।
शैक्षिक गुणवत्ता, रैंकिंग भी बेहतरपिछले दो साल में सरकारी स्कूलों में काफी नामांकन बढ़ा है। शैक्षिक गुणवत्ता के मामले में राजस्थान के सरकारी स्कूलों की स्थिति काफी बेहतर हुई है। हमारी रैंकिंग भी ऊपर आई है। ऑनलाइन पढ़ाई कराने में भी सरकारी स्कूल पीछे नहीं रहे।सौरभ स्वामी, शिक्षा निदेशक
अब संसाधन बढ़ाने पर करें फोकससरकारी स्कूलों में नामांकन काफी बढ़ा है। सरकार को अब संसाधन बढ़ाने पर फोकस करना चाहिए। सरकारी स्कूलों के प्रति समाज में नजरिया बदला है। कोरोना की वजह से भी नामांकन बढ़ा है।उपेन्द्र शर्मा, शिक्षक नेता

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