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मीडिया और बीजेपी की जुगलबंदी से धराशाई होता लोकतंत्र

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यह बातें सिर्फ अब कहने के लिए रह गई है कि मीडिया लोकतंत्र (Democracy) का चौथा स्तंभ होता है. आज हर भारतीय, चाहे वह किसी भी विचारधारा का, किसी भी राजनीतिक पार्टी का समर्थक हो, यह जान चुका है कि भारतीय मीडिया मौजूदा सत्ता के इशारे पर खबरें दिखा रही है या फिर दबा रही है.
जो मौजूदा सत्ता के समर्थक हैं यानि बीजेपी के समर्थक हैं, वह लोग भी जानते हैं की मीडिया घरानों में जितने भी पत्रकार या न्यूजरीडर हैं, वह कहीं ना कहीं मौजूदा सकता को, मौजूदा सत्ता की विचारधारा को समर्थन करते हैं. विपक्ष में चाहे कोई भी विचारधारा हो, कोई भी राजनीतिक पार्टी हो, मीडिया का काम होता है जनता के मुद्दों पर विपक्ष की आवाज को मजबूत करना, उसे घर घर तक पहुंचाना.
लेकिन मौजूदा मीडिया विपक्ष की आवाज को दबाकर उसे बदनाम करके, सत्ता की चाटुकारिता करते हुए, सत्ता द्वारा सच बोला जा रहा है या झूठ बोला जा रहा है इसकी पड़ताल किए बिना सत्ता की बातों को जनता तक पहुंचा रही है. सत्ता के चरणों में नतमस्तक हो चुकी मौजूदा भारतीय मीडिया किस तरह सत्ता के इशारों पर खेल रही है यह अब स्पष्ट रूप से देश के सामने आ चुका है.
विपक्षी पार्टी का कोई पार्षद भी, कोई समर्थक भी, खास तौर पर कांग्रेस का अगर छींक दे तो उसपर मीडिया घंटों डिबेट करती है, कांग्रेस पार्टी का कोई नेता या विधायक या कोई राज्य स्तर का नेता अगर कोई छोटा मोटा बयान भी दे दे तो उसे मीडिया अंदरूनी कलह बताती है कांग्रेस की.
मीडिया द्वारा यह प्रचारित किया जाता है कि गांधी परिवार की बात नहीं सुनी जा रही है कांग्रेस के अंदर. मीडिया द्वारा यह प्रचारित किया जाता है कि राहुल गांधी में नेतृत्व क्षमता नहीं है. मीडिया द्वारा यह प्रचारित किया जाता है कि राहुल गांधी कांग्रेस को एकजुट नहीं रख पा रहे हैं. अगर कोई राज्य स्तर का नेता गांधी परिवार से मिलने चला जाता है तो उस राज्य में कांग्रेस के अंदर फुट बताई जाती है मीडिया द्वारा.
इसके ठीक उलट बीजेपी में बड़ी उठापटक चल रही है, बीजेपी के अंदर बड़ी घमासान मची हुई है. लेकिन मीडिया इन खबरों को नहीं दिखा रहा है. आखिर किसके इशारे पर? बीजेपी के लगातार मुख्यमंत्री बदले जा रहे हैं, लेकिन मीडिया द्वारा इसे प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह का मास्टरस्ट्रोक बताया जा रहा है. बीजेपी के मुख्यमंत्रियों की या फिर प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की नाकामी नहीं.
गुजरात बीजेपी में भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. मुख्यमंत्री बदलने के बाद भी शपथ ग्रहण और मंत्रिमंडल विस्तार कैंसिल करना पड़ा. नितिन पटेल से लेकर विजय रुपाणी तक नाराज बताए जा रहे है. लेकिन मीडिया इस पर कोई खबरें नहीं दिखा रही है. अगर यही कांग्रेस के अंदर हो रहा होता तो मीडिया की क्या प्रतिक्रिया होती, जनता सोच सकती है.
बढ़ती हुई पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर जनता की तकलीफ को समझते हुए, महिलाओं की परेशानी को समझते हुए, गैस की बढ़ती हुई कीमतों को लेकर मीडिया लगातार डिबेट करता हुआ दिखाई नहीं दिया है, प्रधानमंत्री मोदी से सवाल करता हुआ दिखाई नहीं दिया है. जब प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी जनता के गुस्से का सामना करती है, उस वक्त मीडिया पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, तालिबान और हिंदू मुसलमान को लेकर डिबेट करता है.
देश में ऐसा कोई मुद्दा नहीं है जिस पर मौजूदा सत्ता और मीडिया की मिलीभगत दिखाई ना दे. मौजूदा सत्ता ने मीडिया के साथ मिलकर लोकतंत्र को धराशाई कर दिया है. तमाम संवैधानिक संस्थाएं आज सत्ता के चरणों में नतमस्तक दिखाई दे रही हैं. अगर मीडिया अपनी रीढ़ सीधी कर दें तो तमाम संवैधानिक संस्थाओं को जवाब जवाबदेह होना ही पड़ेगा.
अगर मीडिया अपनी रीढ़ सीधी करके सत्ता से सवाल करने लगे, संवैधानिक संस्थाओं की गतिविधियों पर नजरें रखकर उस पर खबरें दिखाने लगे तो सब कुछ एक झटके में सही हो सकता है. लेकिन इसकी संभावनाएं फिलहाल दिखाई नहीं दे रही है.
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