मध्यप्रदेश की राजनीति में मार्च में उठे ज़लज़ले ने पूरा का पूरा फ्रेम ही उल्टा कर दिया है. कार्यकर्ताओं के हुजूमों के हाथों से रातों रात झंडे बदल दिए गए.
ज़ुबान पर चढ़े नारे उतारकर नए नारे चढ़ाए गए. कुर्सी का वर्ल्ड कप वही है, बस खिलाड़ियों ने टीमें बदल ली हैं. राजनैतिक आईपीएल की तरह ही इस कुर्सी प्रीमियर लीग में कोई भी खिलाड़ी किसी भी टीम से खेल रहा है. लेकिन कांटे का मुकाबला सुरखी में है जहां पाला बदलकर राजनीति के दो दिग्गज आमने सामने हैं.
मध्यप्रदेश में उपचुनावों के बीच सबसे ज़्यादा चर्चाओं में रहने वाली सीट सागर जिले की सुरखी विधानसभा बन गयी है. कमलनाथ ने 2013 में सुरखी में गोविंद सिंह को अपने पहले ही चुनाव में मात देने वाली पारुल साहू केसरी को तुरुप का इक्का बनाया है. पारुल साहू के अचानक बीजेपी से कांग्रेस में आने के बाद समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं.
7 साल पहले भी दोनों एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़े थे लेकिन तब गोविंद सिंह पंजे के साथ थे तो पारुल साहू फूल के साथ. जगह वही है, वोटर भी वही हैं और नेता भी वही, लेकिन पार्टियां बदल गयीं हैं. इससे पहले आसान जीत की तरफ बढ़ रहे सिंधिया समर्थक मंत्री गोविंद सिंह राजपूत को अब कड़ी चुनौती मिलती दिखाई दे रही है.
ऐसे में कांग्रेस के इस वाइल्ड कार्ड ने भाजपा को प्लान बी की तरफ मुड़ने को मजबूर जरूर किया है. अब देखना होगा कि पारुल साहू के खिलाफ मैनेजमेंट गुरु मंत्री भूपेंद्र सिंह, जिन पर सुरखी में जीत दिलाने का दारोमदार है, क्या तिकड़म बिठाते हैं. वहीं पारुल अपने पांच साल के कार्यकाल में सुरखी में हुए कामों का प्रचार करेंगी.
बांध, सड़कें, तहसीलों और नगर पंचायतों का दर्जा दिलाने जैसे कामों से पारुल एक विकासवादी नेत्री के रूप में सामने आईं थीं. कहा जा रहा है कि 2018 के चुनावों में बीजेपी ने उनको टिकट नहीं दिया और इसी का बदला लेने वे कांग्रेस में आई हैं. खबर यह भी है कि राजपूत की उम्मीदवारी से नाराज पारुल साहू को बीजेपी के जमीनी नेताओं का समर्थन भी मिल सकता है. ऐसे में बीजेपी के थिंक टैंक में लहरें उठने लगीं हैं.
मध्य प्रदेश में होने वाले उपचुनावों में सागर जिले की सुरखी विधानसभा सबसे हॉट सीट बन गई है. पारुल साहू की कांग्रेस में एंट्री के बाद बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं. उपचुनाव के दोनों प्रमुख उम्मीदवार दल बदलकर वोटर्स का दिल जीतने की कवायद कर रहे हैं. कुर्सी की इस लड़ाई में जीत उसी की होगी जो जंग में बाजी मारेगा.
इसके अलावा आपको बता दे कि मोदी सरकार द्वारा लाए गए बिल पर कमलनाथ ने निशाना साधा है उन्होंने कहा है कि मोदी सरकार के अध्यादेश पूरी तरह से किसान विरोधी व खेतिहर मज़दूर विरोधी है. यह दिन इतिहास में काले दिवस के रूप में दर्ज होगा. इसको लेकर ना किसानो की सहमति ली गयी ना अन्य राजनैतिक दलो से चर्चा की गयी. मोदी सरकार तानाशाही तरीक़े से देश को चलाना चाहती है.
कमलनाथ ने आगे कहा है कि पुरानी ज़मींदारी प्रथा वापस लाना चाहती है. वादा किसानो की आय दोगुनी का किया था लेकिन भाजपा सरकार किसानो की रोज़ी- रोटी छिनना चाहती है. देश भर के किसानो की इस लड़ाई को कांग्रेस लड़ेगी. सदन से लेकर सड़क तक कांग्रेस किसानो के हित में इस काले क़ानून के विरोध में संघर्ष करेगी.
कमलनाथ ने शिवराज पर निशाना साधते हुए कहा है कि शिवराज सरकार स्पष्ट करे कि वो किसानो के साथ है या इन किसान विरोधी काले क़ानून के साथ? प्रदेश का किसान इस सच्चाई को जानता चाहता है कि कौन उसके साथ है और कौन किसान विरोधी काले क़ानून के साथ?
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कांग्रेस के वाइल्ड कार्ड ने बदली मुुकाबले की तस्वीर, बीजेपी को भीतरघात का खतरा
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