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खींवसर और मंडावा विधानसभा सीट से ग्राउंड रिपोर्ट
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नागाैर की खींवसर व झुंझुनूं जिले की मंडावा विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए प्रचार का शाेर शनिवार शाम 6 बजे थम गया। अब साेमवार सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक मतदान हाेगा। दोनों विधानसभा सीटों के बीच की दूरी करीब 300 किमी है। सीटों के बीच दूरी जितनी है, उतना ही फासला यहां के चुनावी मिजाज में भी है।
मंडावा की बात करें तो यहां चुनावी माहौल बिलकुल फीका है, लेकिन खींवसर सीट पर चुनावी माहौल एकदम उलट है। समर्थकों की गाड़ियों के लंबे काफिले, शाेर-शराबा, नारेबाजी ने यहां चुनाव को हाईप्रोफाइल बना दिया है। चुनावी जीत-हार की बात करें तो नतीजे बेशक 24 अक्टूबर को आएंगे, लेकिन मौजूदा माहौल इस बात की तरफ इशारा कर रहा है कि मंडावा में कांग्रेस का पलड़ा थोड़ा भारी है, वहीं खींवसर सीट आरएलपी के पक्ष में जाती दिख रही है। मंडावा में कांग्रेस की रीटा चौधरी के सामने भाजपा की सुशीला सीगड़ा है तो खींवसर में कांग्रेस के हरेंद्र मिर्धा के सामने भाजपा समर्थित पार्टी आरएलपी के नारायण बेनीवाल चुनाव लड़ रहे हैं।
मंडावा : अब तक सिर्फ एक बार जीती भाजपा
मंडावा में 1952 से लेकर अब तक हुए चुनावों में भाजपा मोदी लहर के बीच सिर्फ एक बार 2018 में ही विधानसभा चुनाव जीती है। लोकसभा चुनावों में भी जीत दर्ज कराई थी।
सुशीला (भाजपा)
मजबूती : तीन बार से प्रधान, इसलिए ग्राउंड कनेक्ट अच्छा। भाजपा आक्रामक प्रचार कर रही है।
कमजोरी : पार्टी में पैराशूटर की इमेज। पहले कांग्रेस में थीं लेकिन टिकट मिलने से पहले भाजपा में आईं। रीटा की तरह इन्हें भी भितरघात से निपटना होगा।
रीटा (कांग्रेस)
मजबूती : प्रदेश में कांग्रेस की सरकार। डोर टू डोर कैंपेनिंग। तीन बार से चुनाव लड़ रही हैं। एक बार जीतीं, 2 बार हारी। थोड़ी सहानुभूति है।
कमजोरी :भितरघात का संकट। प्रचार में अकेली पड़ी। पार्टी के विधायक बृजेंद्र ओला व राजकुमार से उनकी अदावत किसी से छिपी नहीं है।
खींवसर : 40 साल पुरानी सियासी लड़ाई
40 साल पुरानी मूंडवा की लड़ाई अब खींवसर आ पहुंची है। मूंडवा व नागौर के कुछ हिस्से से ही 2008 में यह सीट बनी। इससे पहले 1980 में बेनीवाल के पिता रामदेव को हरेंद्र मिर्धा ने हराया था।
नारायण बेनीवाल (आरएलपी)
मजबूती : इलाके में अपने भाई हनुमान का सारा काम वही संभालते हैं इसलिए पब्लिक कनेक्ट पहले से है। भाई के उलट सॉफ्ट इमेज है।
कमजोरी : परिवारवाद का ठप्पा। भाजपा के नेता तो इनके साथ जुटे हैं लेकिन इनके काेर वोटरों में कुछ नाराजगी है।
हरेंद्र मिर्धा (कांग्रेस)
मजबूती : प्रदेश में कांग्रेस की सरकार। विरोधी खेमे में भी इमेज पॉजिटिव। साइलेंट कैंपेन। आखिरी चुनाव, सहानुभूति भी मिल सकती है।
कमजोरी : उम्र आड़े आ रही। उनके सामने आधी उम्र के प्रत्याशी, जो प्रचार कर रहे हैं कि जो आपके लिए भागदौड़ न कर सके, उसे वोट क्यों दें।