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भारत की GDP में आई 23.9 फीसदी की गिरावट तो चेतन भगत ने किया ट्वीट

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चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भारत की जीडीपी में करीब 23.9 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई है. इस बात को लेकर मशहूर लेखक चेतन भगत ने ट्वीट किया है, जो सबका खूब ध्यान खींच रहा है.
अपने ट्वीट में चेतन भगत ने जीडीपी की गिरावट को लेकर कहा कि इसे वापस सामान्य करने के लिए ध्यान देने की आवश्यकता है. चेतन भगत का भारत के सकल घरेलू उत्पाद को लेकर किया गया यह ट्वीट खूब वायरल हो रहा है, साथ ही लोग इसपर जमकर कमेंट भी कर रहे हैं.

GDP growth: -24% for last quarter.
Requires immediate attention to bring this back to normal. Will affect everyone, eventually.
— Chetan Bhagat (@chetan_bhagat) August 31, 2020

चेतन भगत ने अपने ट्वीट में लिखा, जीडीपी वृद्धि (GDP Growth): अंतिम तिमाही के लिए -24%. इसे वापस सामान्य करने के लिए तत्काल रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है. यह अंतत: सभी को प्रभावित करेगा. बता दें कि इस साल की तुलना में पिछली तिमाही में जीडीपी में 3.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी. 2019-20 की अप्रैल-जून तिमाही में 5.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी.
सोमवार को सरकार की ओर से जीडीपी के आंकड़े जारी किए गए. 21 लाख करोड़ रुपये के वित्तीय सहायता के बावजूद कोरोना वायरस महामारी की वजह से कारोबार और आम इंसान पर भारी असर पड़ा. कोरोना संकट के दौरान अप्रैल-मई महीनों में कई हफ़्तों तक बंद रही इन फैक्टरियों की वजह से करोड़ों मज़दूर बेरोज़गार हुए. अब सांख्यिकी मंत्रालय ने अपने ताज़ा आंकलन रिपोर्ट में कहा है की लॉकडाऊन की वजह से आर्थिक गतिविधियां ठप्प पड़ गयीं.
जिस वजह से इस साल अप्रैल से जून की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था अप्रत्याशित 23.9% सिकुड़ गयी. 2019-20 की पहली तिमाही में जीडीपी विकास दर 5.2% थी. वहीं, चेतन भगत की बात करें तो वह अपने बेबाक विचारों के लिए खूब जाने जाते हैं. समसामयिक मुद्दों पर चेतन भगत अपनी राय भी बखूबी पेश करते हैं.
आपको बता दे कि लेखा महानियंत्रक द्वारा जारी अलग आंकड़ों से पता चला है कि भारत का राजकोषीय घाटा अप्रैल-जुलाई की अवधि में पूरे साल के बजट अनुमानों के 103 प्रतिशत तक पहुंच गया है, जो अर्थव्यवस्था पर महामारी के नकारात्मक प्रभाव को दर्शाता है और परिणामस्वरूप राजस्व संग्रह भी कम हुआ है. बाजार में कुल 4 लाख करोड़ रुपये उधार लेने की सरकार की कथित मंशा के बावजूद, कुल उधार 12 लाख करोड़ रुपये लेने के लिए, अप्रैल-जुलाई की अवधि में 8.2 लाख करोड़ रुपये का राजकोषीय घाटा अभी भी 68 प्रतिशत पर है.
यह मुख्य रूप से कर राजस्व में तेज गिरावट के कारण हुआ. अप्रैल-जुलाई की अवधि में पिछले साल के इसी अवधि की तुलना में कर राजस्व में 42 प्रतिशत की कमी आई है. मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम ने ऑडियो बयान में कहा कि अप्रैल-जून के बीच भारत में लगे कड़े लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियां काफी प्रभावित हुई थीं. उन्होंने कहा,अन्य देशों के मुकाबले भारत में कड़ाई से लगे लॉकडाउन के कारण ये गिरावट अनुमान के मुताबिक है. भारत के पास वी-शेप्ड रिकवरी का अनुभव है और हम आगामी तिमाही में अच्छे आंकड़ों की उम्मीद कर रहे हैं.
आपको बता दे कि हमारी इकनॉमी इतनी ज्यादा गिर गई है कि इसे रिकवर करने में दो-चार क्वॉर्टर नहीं बल्कि दो से तीन साल तक लगेंगे. अगर प्री कोरोना दौर में हमारी इकनॉमी ढ़ाई ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी थी, तो वहां लौटकर आने का वक्त दो से तीन साल तक का हो सकता है. तो अगर ग्रीन शूट्स को लेकर जरा भी शोर था तो वो लोग जमीन पर खड़े होकर नहीं देख रहे थे. कुंएं के अंदर गिर जाने के बाद वहां उन्हें ग्रीन शूट नजर आ रहा था. ये कहानी अब बेमतलब की निकली है.
अब ये पता लगा है कि क्रेडिट ग्रोथ और लिक्विडिटी उपलब्ध करा देने में जो इलाज ढूंढ़ रहे थे, वो इलाज था ही नहीं. इसे एक आंकड़े से समझ लीजिए. इस पूरे लॉकडाउन में क्रेडिट ग्रोथ 4% है और जो क्रेडिट गारंटी वाला फंड था, उसमें 40% कर्ज ही उठा है, बाकी पैसा उठा ही नहीं. यानी पैसे हैं तो उसका करें क्या? इसका मतलब है कि मूल बीमारी लेबर, सप्लाई चेन, डिमांड न होने और लॉजिस्टिक्स के तहस-नहस हो जाने में थी. इस बीमारी का इलाज अभी भी नजर नहीं आ रहा है.
कोरोना के आंकड़ों के चलते अब लॉकडाउन और अनलॉक का प्रोसेस चलता रहेगा, लेकिन जब तक इन चीजों को फिक्स नहीं किया जाएगा, तब तक इकनॉमी वापस पटरी पर लौटे ये सफर काफी लंबा और दर्दनाक होने वाला है. जीडीपी के आंकड़े तो हमारे सामने हैं, लेकिन कुछ और आंकड़ों को समझना जरूरी है, जैसे अभी आपको क्रेडिट ग्रोथ का आंकड़ा बताया. दूसरा आंकड़ा है कि चार शहरों में जो ट्रैफिक कंजेशन जो आमतौर पर 90 फीसदी तक रहता था वो लॉकडाउन के वक्त 50 फीसदी हुआ और गिरने के बाद अब वो 37 फीसदी पर है.
वहीं जो बिजली की मांग को लेकर कहा जा रहा था कि वापस बढ़ने लग गई है, वो पहले प्रतिदिन 3700 मेगावॉट की बिजली खपत हो रही थी, वहीं अब वो गिरकर 3400 मेगवॉट प्रतिदिन तक पहुंच चुकी है. इसी तरह से फिस्कल डेफिसिट पहले से ही 100 फीसदी के ऊपर जा चुका है, यानी सरकार के पास खर्च करने के लिए न गुंजाइश है और न ही पैसे हैं.
एक जो आंकड़ा आपको दिया जा रहा है कि खेती में 3.4% की ग्रोथ हाई है, सिर्फ यही एक पॉजिटिव समाचार है. तो अब समझ लीजिए कि खेती की ग्रोथ और जो पब्लिक एक्सपेंडिचर है, उसके बल पर जो जीडीपी का कंपोजिशन बदलने वाला है, उसमें खजाने पर क्या खतरा आएगा. खतरा ये होगा कि उनके पास टैक्स का कलेक्शन कम होगा, यानी फिस्कल डेफिसिट बढ़ेगा. वहीं दूसरी तरफ एक आंकड़े पर नजर डालना जरूरी है.
टोटल मनी सप्लाई जिसे कहते हैं, वो बढ़कर 11-12 फीसदी तक हो चुका है. यानी इंफ्लेशन और ज्यादा बढ़ सकता है. हम और आप देख रहे हैं कि इनकम गिर गई है और महंगाई कितनी बढ़ गई है. कृषि उत्पादन के आंकड़े में एक और बात समझना जरूरी है. जीडीपी का ये आंकड़ा प्राइज से आधार पर है, वॉल्यूम के आधार पर नहीं. तो जो ये नंबर बढ़ा हुआ नजर आ रहा है, इसे पुश करने में जो कीमतें बढ़ी हैं उसका बड़ा रोल है. इसका मतलब ये हुआ कि खेती की अगली तिमाही में जो डेटा आए हो सकता है वो गिरा हुआ आए.
यानी ये नंबर हमारी दर्दनाक हाल का पूरा चित्रण सही-सही नहीं बताते हैं. अब इसके बाद इस साल के दूसरे क्वॉर्टर का इंतजार लोगों को रहेगा. वहां के लिए थोड़ी रिकवरी दिखेगी. इसके बाद त्योहार खत्म हो चुके होंगे तो क्यू-3 कैसा रहेगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है. रिकवरी के लेवल तक लौटने के लिए क्यू-4 का इंतजार करना होगा. लेकिन अभी रास्ते की मुश्किलें बड़ी और काफी गहरी हैं.
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