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CAB तो झांकी है, डेटा प्रोटेक्शन बिल बाकी है

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बस इतना समझ लीजिए कि इस ड्राफ्ट में तो हर हिंदू का डेटा भी खतरे में हैं.

जब नागरिकता संशोधन बिल पर आप गरम बहस में व्यस्त हैं, उसी वक्त इससे भी खतरनाक डेटा प्रोटेक्शन बिल संसद में पेश हो चुका है. संसद में भी इस पर खूब बहस हुई. लेकिन जानने वाली बात ये है कि जब लोग हिंदू-मुसलमान कर रहे हैं, तो बस इतना समझ लीजिए कि इस ड्राफ्ट में तो हर हिंदू का डेटा भी खतरे में हैं.

अगर ये कानून बन गया तो सरकार इस कानून से किसी भी सरकारी एजेंसी को बाहर रख सकती है. ये छूट सरकार समय समय पर तय करेगी.संसद का उसमें कोई रोल नहीं होगा. संसद और जनता के लिए कोई जवाबदेही नहीं होगी.

इसका सीधा मतलब ये हुआ कि सरकार की जांच और जासूसी एजेंसी किसी भी कंपनी से आपका डेटा मांग सकती है. ये डेटा अपराध रोकने के नाम पर, व्हिसल ब्लोइंग के लिए, मर्जर एक्विजिशन के लिए, नेटवर्क सुरक्षा के लिए क्रेडिट स्कोरिंग और कर्ज वसूली के लिए मांगा जा सकता है. सरकार पब्लिक में मौजूद प्राइवेट डेटा प्रॉसेस करने के लिए और सर्च इंजन के ऑपरेशन से भी डेटा मांग सकती है. ये अधिकार सरकार खुल्लमखुल्ला अपने हाथ में ले लेगी.

डेटा कानून बनाने के लिए रिटायर्ड जस्टिस श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में एक कमेटी बनायी गई थी. उनका सुझाव था कि सरकार अदालत की प्रक्रिया के तहत ही किसीडेटा में ताक झांक कर सकती है. ऐसी ही स्थिति में जब वो बताए की ये क्यों जरूरी है और किस अनुपात में उसको जानकारी चाहिए. ये नहीं होना चाहिए कि कोई भी अनाप शनाप जानकारी उठा ली जाए.

सरकार ने जो बदलाव किए हैं उस पर लोगों से सलाह नहीं ली गई. लोगों की प्राइवेसी का सवाल भी अहम है. सुप्रीम कोर्ट ने प्राइवेसी के जो टेस्ट बताए हैं, उस पर इन एजेंसी के अधिकारों को खरा उतरना होगा. लोकसभा में बिल स्टैंडिंग कमेटी के बजाय एक नई ज्वाइंट कमेटी को दिया गया है. स्टैंडिंग कमेटी के अध्यक्ष कांग्रेस के शशि थरूर थे. लोगों के पर्सनल डेटा के स्टोरेज के मामले में सरकार इस बिल के जरिए प्राइवेट कंपनियों पर तो लगाम लगा रही है. लेकिन खुद बेलगाम है.

एक बड़ा मुद्दा- पर्सनल डेटा का और दूसरा सेंसिटिव डेटा का. सेंसेटिव डेटा भारत में स्टोर करना होगा. स्टोरेज एक बेहद पेचीदा और महंगा काम है. उसकी तैयारी के बारे में अभी खास जानकारी नहीं है.

बुनियादी सवाल है कि आपके डेटा पर आपका अधिकार असल में है, या दिखावा है? इसका पॉलिटिकल रूप से गलत इस्तेमाल ना हो, इसकी गारंटी है या नहीं? इसका इस्तेमाल निगरानी और मुनाफे के लिए तो नहीं होगा? इसकी गारंटी नहीं.

ये बिल विवादित क्यों है?

1. डेटा लोकेलाइजेशन : नागरिकों के सभी डेटा की एक कॉपी को सर्वर में स्टोर करने की जरूरत चिंताजनक है. इससे सर्विलांस का खतरा बढ़ता है और ये ब्लॉकचेन और AI टेक्नोलॉजी में इनोवेशन को नुकसान पहुंच सकता है.

2. डेटा की सरकारी प्रोसेसिंग : ड्राफ्ट बिल के मुताबिक, निजी डेटा की प्रोसेसिंग के लिए सहमति जरूरी होगी, हालांकि इसमें सरकार को छूट दी गई है. इससे “राज्य के कामकाजों” के लिए बिना सहमति के भी संवेदनशील निजी डेटा की प्रोसेसिंग की जा सकेगी. इस पावर के मिसयूज होने का खतरा हो सकता है.

3. सर्विलांस रिफॉर्म : भारत का सर्विलांस फ्रेमवर्क, न्यायपालिका की निगरानी और स्क्रूटनी के बाहर है. ऐसे समय में, जब हमारा स्मार्टफोन हमारी पहचान का एक हिस्सा बन चुका है, पेगासस स्पायवेयर जैसे विवाद से साबित होता है कि हमारी जासूसी के लिए कितनी आसानी से हमारे फोन को हाईजैक किया जा सकता है.

यह भी पढ़े : राजनीति जब इतिहास की गलियों में उतरती है तो बहुत कीचड़ पैदा करती है

Thought of Nation राष्ट्र के विचार
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