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…रक्त से सनी पहाडिय़ां!

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नरेन्द्र शर्मा .सीकर.हर्ष…िचंता और चिंतन दोनों का विषय है!चिंता इसलिए कि यह प्रमुख पर्यटन स्थल अब रक्तरंजित होता जा रहा है…और चिंतन यह कि इस ऐतिहासिक धरोहर के प्रति लोगों का मोह अब कम हो गया। कहते हैं कि सूरज दिन का कातिल है! वैसे ही जिले का एकमात्र बड़ा पर्यटन स्थल हर्ष इंसानों का! पौराणिक और ऐतिहासिक काल के वैभव को अपने में समेटे हर्ष का वर्तमान स्वरूप भयावह होता जा रहा है। जिम्मेदारों की अनदेखी और सरकार की उपेक्षा के कारण हर्ष पर्यटन स्थल की स्थिति दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है। हर्ष….सैकड़ों बरस पुरानी ऐतिहासिक धरोहर! भव्य मंदिर! कला का अद्भुत नमूना! बहुत सारे भग्नावेश! पर्यटकों के लिए मुफीद जगह! …लेकिन अब यह तस्वीर बदलती जा रही है। इतिहास अपनी जगह है, लेकिन वर्तमान का स्वरूप बिगड़ा हुआ है। गहरे गड्ढ़े! सर्पीली सडक़ें! खाइ किनारे टूटी रेलिंग! टूटकर गिरने को आमादा शिलाएं!…और हरितिमाहीन पहाडिय़ां ही इसका स्वरूप बनकर रह गया है। पिछले कुछ सालों में ही हर्ष पर अव्यवस्था के कारण कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। अब हर्ष लुभाता नहीं बल्कि डराता है। डर यह कि….कहीं कोई अपना मीलों लंबी चढ़ाई के दौरान गड्ढ़ों में धंसी सडक़ से खाई में न गिर जाए। हर्ष के लिए सरकारी स्तर पर योजनाएं तो बहुत बनी, लेकिन कारगर एक भी नहीं हुई। बहुत ज्यादा हर्ष के लिए चाहिए भी नहीं, यहां जो इतिहास है, वह नायाब है, लेकिन जरूरत यहां के वर्तमान को सुधारने की है। करीब 16 किमी की चढ़ाई के बाद हर्ष के शीर्ष पर पहुंचा जाता है, लेकिन यह 16 किमी की चढ़ाई वाहन तो दूर पैदल भी चढ़ पाना लोगों के लिए खतरे से खाली नहीं है। सडक़ का नामोनिशान तक नहीं है। राह में गहरे गड्ढ़े कभी भी हादसे का सबब बन सकते हैं। हर्ष का इतिहास रोचक है। इतिहासकारों के अनुसार हर्ष पर हर्षनाथ मंदिर की स्थापना संवत् 1018 में चौहान राजा सिंहराज द्वारा की गई थी और मंदिर पूरा करने का कार्य संवत् 1030 में उनके उत्तराधिकारी राजा विग्रहराज द्वारा किया गया। इन मंदिरों के अवशेषों पर मिला एक शिलालेख बताता है कि यहां कभी कुल 84 मंदिर थे। अब हर्षनाथ व भैरवनाथ के मंदिर ही रहे हैं। शेष सभी खंडहर हो चुके। कहा जाता है कि 1679 इसवीं में मुगल बादशाह औरंगजेब के निर्देश पर सेनानायक खान जहान बहादुर द्वारा जानबूझकर इस क्षेत्र के मंदिरों को नष्ट व ध्वस्त किया गया था। बावजूद इसके हर्ष का वैभव आज भी बना है। हुक्मरानों की थोड़ी सी इच्छाशक्ति इस विरासत को फिर से जीवित कर सकती है। अब तो पर्यटन व देवस्थान मंत्री भी सीकर के ही हैं, यदि सभी मिलकर हर्ष का वैभव लौटाने का लक्ष्य तय करे, तो वह दिन दूर नहीं जब हर्ष की पहाडिय़ां रक्त से सनी होने के बजाय हरितिमा से खिलखिला उठे।

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