भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री मोदी यह जो कुछ भी कर रहे हैं,वह महात्मा गांधी की विरासत पर कब्जा करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.
प्रधानमंत्री मोदी जनता को महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलने की सीख दे रहे हैं,बिल्कुल देनी चाहिए यह अच्छी बात है,लेकिन क्या खुद प्रधानमंत्री मोदी महात्मा गांधी के आदर्शों पर चल रहे हैं या चलेंगे?
देश के अंदर विभाजनकारी नारों के द्वारा देश को तोड़ने की कोशिश हो रही है,चुनावी रैलियों में और राजनीतिक पार्टियों द्वारा नारे पहले भी लगाए जाते थे,लेकिन यह राजनीतिक पार्टियां अपने कैडर के अंदर जोश उत्पन्न करने के लिए और एकता बनाए रखने के लिए लगाती थी, लेकिन आज के परिवेश में भारतीय जनता पार्टी द्वारा,प्रधानमंत्री मोदी द्वारा,भारतीय जनता पार्टी के नेताओं द्वारा जो नारे लगाए जा रहे हैं,वह विपक्षियों को चिढ़ाने के लिए लगाए जा रहे हैं, देश को बांटने के लिए लगाए जा रहे हैं, धार्मिक नफरत फैलाने के लिए लगाया जा रहे है आज अगर महात्मा गांधी होते तो क्या वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थन में खड़े होते?
भारत की राजनीतिक डिक्शनरी में बहुत से नारे दर्ज हैं, लेकिन जिस तरीके से धर्म का उपयोग आज राजनीति में हो रहा है,धार्मिक नारों का उपयोग आज राजनीति में हो रहा है, भगवान के नाम पर नारों का उपयोग जो राजनीति में हो रहा है, वह सिर्फ और सिर्फ देश की एकता को कमजोर करने के प्रयास के लिए हो रहा है और यह नारे भारत के राजनीतिक डिक्शनरी में नकली शब्दों के रूप में जुड़ते जा रहे हैं.
महात्मा गांधी के नाम पर देश और दुनिया को गुमराह कर रही भाजपा भगवान सियाराम को अपनी राजनीतिक जायदाद समझने लगी है. महात्मा गांधी भी राम को पूजते थे, लेकिन महात्मा गांधी के राम से किसी को डर नहीं लगता था.
मौजूदा परिवेश में जय श्री राम का नारा धार्मिक उन्माद का प्रतीक बनता जा रहा है.जय श्री राम का नारा लगाकर मासूम लोगों को मार दिया जा रहा है,जय श्री राम का नारा लगाकर भीड़ इकट्ठी की जा रही है और देश में नफरत फैलाने की कोशिश की जा रही है.
महात्मा गांधी के राम राजनीतिक नहीं थे,महात्मा गांधी के राम के पीछे आस्था थी और प्रधानमंत्री मोदी और पूरी भाजपा के राम के पीछे राजनीति है.प्रधानमंत्री मोदी बंगाल जाते हैं तो चुनावी रैलियों से जय श्रीराम के नारे लगाते हैं और पूछते हैं कि जय श्री राम का नारा भारत में नहीं लगाया जाएगा तो कहां लगाया जाएगा? क्या प्रधानमंत्री पद पर बैठे हुए व्यक्ति को यह बातें शोभा देती हैं?
भारत एक लोकतांत्रिक देश है, धर्मनिरपेक्ष देश है जहां सभी धर्मों का आदर और सम्मान होता है. लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में धर्म का उपयोग राजनीति के लिए होने लगा है,एक धर्म का उपयोग दूसरे धर्म को नीचा दिखाने के लिए होने लगा है.अपनी तमाम नाकामियों को छुपाने के लिए धर्म नामक बाण को चलाने का लगातार प्रयास करती रही है भाजपा. आज अगर महात्मा गांधी होते तो क्या इन बातों पर प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के साथ खड़े होते ?
पिछले कुछ सालों में देश के अंदर ध्रुवीकरण करने वाले नारों को राष्ट्रवादी युद्धोन्माद में तब्दील कर दिया है भाजपा ने. अपनी तमाम नाकामियों पर प्रधानमंत्री मोदी चुप्पी साध लेते हैं, सरकार के कामकाज पर चुनावी रैलियों में चर्चा करने की बजाय प्रधानमंत्री मोदी का फोकस राष्ट्रवाद के नाम पर वोट लेने पर होता है.
देश की एकता को तोड़ने वाले नारे भाजपा की जीत के पासवर्ड बन चुके हैं. आज महात्मा गांधी होते हैं तो क्या प्रधानमंत्री मोदी की इस राजनीति का समर्थन करते ?
राष्ट्रवादी नारों के अलावा प्रधानमंत्री मोदी जनता को भावनात्मक रूप से भी गुमराह करते रहे हैं.अपनी निजी जिंदगी की व्यक्तिगत बातें चुनावी रैलियों से बता कर, खुद को गरीब बता कर,खुद की जातियां बता कर जनता से वोट मांगते हैं.अगर आज महात्मा गांधी होते तो क्या प्रधानमंत्री मोदी की इन बातों से सहमत होते ? इस तरीके से वोट मांगने पर सहमत होते?
महात्मा गांधी हमेशा अहिंसा के मार्ग पर अडिग रहे थे . गांधी अपनी आलोचनाओं से निराश और विचलित नहीं होते थे. अपनी अहिंसा की नीति को उन्होंने लगातार जारी रखा था. महात्मा गांधी ने कहा था कि अगर हिंदुस्तान बर्बाद होगा तो हिंदुस्तान के हिंदुओं के कारण ही बर्बाद होगा और इसी तरह अगर पाकिस्तान बर्बाद होगा तो पाकिस्तान के मुसलमानों के कारण ही बर्बाद होगा.
प्रधानमंत्री मोदी लगातार हिंसा को बढ़ावा देने वाले लोगों का समर्थन करते रहते हैं,देश के अंदर जो धर्म के नाम पर हिंसा कर रहे हैं,धर्म के नाम पर लोगों को मार दे रहे हैं उनके लिए प्रधानमंत्री मोदी अपने मुंह से एक शब्द नहीं निकालते,दिखावे के लिए कहीं कुछ बोल देते हैं, इसके अलावा इन सब चीजों के लिए कोई कड़ा कानून लेकर नहीं आ रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी, देश के अंदर कभी गाय के नाम पर, कभी नारे लगाकर मासूमों को मार दिया जा रहा है. लगातार हिंसा बढ़ रही है इस देश में, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी महात्मा गांधी से सीख लेकर देश को संदेश देने की बजाय,राजनीति से ऊपर उठकर शांति कायम करने की बजाय इन चीजों का राजनीतिक लाभ लेते रहते हैं,तो क्या महात्मा गांधी आज होते तो प्रधानमंत्री मोदी का समर्थन करते?
आरएसएस 1925 में ही पैदा हो गई थी और महात्मा गांधी की हत्या 1948 में हुई थी, इन 23 वर्षों में महात्मा गांधी ने आरएसएस का कभी समर्थन नहीं किया, आरएसएस की विचारधारा का कभी समर्थन नहीं किया, आर एस एस के नेताओं का कभी समर्थन नहीं किया, आरएसएस की नीतियों का कभी समर्थन नहीं किया तो फिर आज प्रधानमंत्री मोदी का समर्थन कैसे करते हैं ? प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों का समर्थन कैसे करते ? प्रधानमंत्री मोदी भी तो आरएसएस की विचारधारा को ही आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.
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