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घरों और पेड़ों से गायब हुई फुदकती चिडिय़ा रानी

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सीकर. घरों के आंगन में फुदक-फुदक कर चलने वाली नन्हीं-सी चिडिय़ा गौरैया का अस्तिव बचाने के लिए भले ही हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता हो लेकिन हकीकत यह है कि आधुनिकता की दौड में पिछले एक दशक में घरों से लेकर पेड़ों पर दिखने वाली नन्हीं चिडिय़ा गौरैया लुप्तप्राय हो गई है। पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभाने वाली गौरैया की संख्या तेजी से कम हो रही है और चिंताजनक बात है कि इस नन्हीं चिडिय़ा को वन्य जीव गणना में शामिल तक नहीं किया गया है। ऐसे में समय रहते गौरैया को बचाने के लिए पहल नहीं की गई तो वह सिर्फ कहानी किस्सों की बात ही नजर आएगी। गौरतलब है कि गौरिया 11 हजार साल पहले मध्य एशिया से भारत में आई है।यह है गौरैयागौरैया का वैज्ञानिक नाम पासर डोमेस्टिकस है। शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह की प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें हाउस स्पैरो, स्पेनिस स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसैट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो शामिल हैं। इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है। शोध के अनुसार पृथ्वी से गौरैया के पसंदीदा भोजन में कमी आई है। केवल उत्तर अमेरिका में 1966 से अब तक गौरैया की संख्या में 84 प्रतिशत तक कमी आई है।पेड़ों की अंधाधुंध कटाई बना कारणगांवों अब इनके लिए न तो कच्चे घर है और ना ही टीन टप्पर। पक्के मकान भी बन चुके हैं लेकिन वहां भी खिड़कियां और रोशनदानों पर जाली लगाए जाने के कारण इनकी पहुंच घरों के भीतर नहीं हो पा रही है और ये घौंसलें नहीं बना पा रही है। पेड़ों व झाडिय़ों की बेतहाशा कटाई के कारण इन चिडिय़ा को प्रजनन के लिए उपयुक्त स्थान नहीं मिल पा रहा है। फसलों में कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से इनके मुख्य भोजन कीट-पतंगों की कमी हो गई। मोबाइल टावरों के रेडिएशन के कारण भी गौरिया की प्रजनन क्षमता में कमी आ रही है।किसानों की मित्र है नन्हीं गौरैयागोरैया अपना घोसला पेड़ों, चट्टानों, घरों या इमारतों के बनाना पसंद करती है। इसके प्रजनन का समय अप्रेल से अगस्त तक है। गोरैया कीटभक्षी है और यह हज़ारों वर्षों से खेतों और हमारे घर-आंगन में कीट-पतंगों, मक्खी, मच्छर, मकडिय़ां, इल्लियां आदि को खाकर पर्यावरण को संतुलित करती है गौरिया अपने चूजों को भी वो इल्लियां खिलाती है जो फसल को नुकसान पहुंचाती हैं। इस मायने में गोरैया स्वस्थ पर्यावरण की जैव-सूचक है।विश्व गौरैया दिवस आजपेड़ों की संख्या कम होने, कीटनाशकों के प्रयोग ओर रेडिएशन के कारण गौरिया की संख्या में तेजी से कमी आई है। समय रहते इस और ध्यान नहीं दिया गया तो किसानो की मददगार गौरिया का अस्तित्व ही लुप्त हो जाएगा। -डा. दाऊलाल बोहरा, प्रोफेसर प्राणीशास्त्र, पोद्धार कॉलेज, नवलगढ़

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