उपचुनाव में भाजपा की राह में उसके अपने कांटा न बन जाएं. खासकर मंत्रियों वाली सीटों पर ऐसे हालात दिख रहे हैं. पार्टी इस आशंका के साथ डैमेज कंट्रोल में जुट गई है.
इनमें से कुछ नेताओं को भाजपा फौरी तौर पर साध चुकी है, तो कुछ अब भी रूठे हुए हैं. नए प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने इसीलिए हर सीट का हर दिन का अपडेट लेने के लिए महामंत्री भगवानदास सबनानी को प्रदेश मुख्यालय में बैठा दिया है. उनके फीडबैक के आधार पर आगे की रणनीति बनाई जाएगी.
पढि़ए कुछ खास चेहरों की नाराजगी की वजह…
जयभान सिंह पवैया- पूर्व मंत्री पवैया ग्वालियर सीट पर 2018 में मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर से हारे हैं. अब उनका टिकट प्रद्युम्न को मिल सकता है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के घोर विरोधी रहे पवैया फिलहाल कोप भवन में माने जा रहे हैं. तोमर उनकी नाराजगी को भांपकर दो बार मिलने जा चुके हैं. वहीं, सिंधिया ने भी पवैया की नाराजगी दूर करने की कोशिश की. भाजपा ने भी पवैया को साधने की हरसंभव कोशिश की है.
दीपक जोशी- पूर्व मंत्री जोशी 2018 में हाटपिपल्या से चुनाव हारे हैं. यहां जोशी का टिकट कांग्रेस से भाजपा में आए मनोज चौधरी को दिया जा सकता है. इसके चलते बार-बार उनकी पीड़ा झलकती है. वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की तारीफ भी कर चुके हैं, जिसके बाद सीएम शिवराज सिंह चौहान ने उनको साधने के लिए उनके पिता व पूर्व सीएम कैलाश जोशी की प्रतिमा अनावरण का बड़ा कार्यक्रम किया था.
गौरीशंकर शेजवार- पूर्व मंत्री गौरीशंकर के पुत्र मुदित शेजवार 2018 में रायसेन में कांग्रेस प्रत्याशी प्रभुराम चौधरी से हारे थे. गौरीशंकर ने अपने पुत्र को राजनीति में सैट करने के लिए खुद टिकट छोड़ा था. प्रभुराम के भाजपा में आकर मंत्री बनना शेजवार परिवार के लिए सियासी संकट खड़ा कर देगा. शेजवार खेमा खुलकर सोशल मीडिया पर प्रभुराम का विरोध कर चुका है. भाजपा हर डैमेज कंट्रोल के हर दांव चल रही है.
लाल सिंह आर्य- पूर्व मंत्री लाल सिंह 2018 में गोहद से कांग्रेस प्रत्याशी रणवीर जाटव से हारे थे. तब से ही लाल सिंह लगातार रणवीर के खिलाफ काम करते रहे, लेकिन अचानक समीकरण बदले और रणवीर ने ही दल बदल लिया. अब लाल सिंह के सामने समझाइशों का बोझ है, लेकिन उतना ही विधानसभा में अस्तित्व का सवाल है. लाल सिंह खेमा खुश नहीं है. बाकी नतीजों के आधार पर तय होगा.
रुस्तम सिंह- पूर्व मंत्री रुस्तम को मुरैना सीट पर इस बार रघुराज सिंह कंसाना के सामने टिकट से समझौता करना होगा. रुस्तम पिछली बार कंसाना से हार गए थे. वैसे, भाजपा में रुस्तम उतना कद नहीं रखते, जितने दूसरे बड़े नेता रखते हैं. इस कारण भाजपा के लिए समझाइश का मोर्चा मजबूत है. उस पर भाजपा रुस्तम को निगम-मंडल में एडजेस्ट करने का विकल्प दे चुकी है.
ललिता यादव- पूर्व मंत्री 2018 में बड़ा मलहेरा सीट पर चुनाव हार गई थीं. अब सत्ता परिवर्तन के बाद उपचुनाव में उनका टिकट कांग्रेस से आए प्रद्युम्न सिंह लोधी को जाना है. इस लिहाज से उनके लिए क्षेत्र में राजनीतिक अस्तित्व का सवाल है. ललिता का प्रभाव भी यहां सीमित इलाकों में है. उस पर भाजपा की समझाइश के हिसाब से चलने के अलावा ललिता के पास ज्यादा विकल्प नहीं है, इसलिए फिलहाल यहां चुप्पी है.
सोनकर एंड इंदौर टीम- सांवेर सीट पर मंत्री तुलसी सिलावट के लिए पिछली बार के हारे प्रत्याशी राजेश सोनकर सहित इंदौर भाजपा टीम के नेताओं को साधने की है. यहां भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय कांग्रेस से आए सिलावट के लिए राह में कांटे बिछा सकते हैं. भाजपा के लगभग सभी खेमे यहां सिलावट को नापसंद करते रहे हैं, लेकिन आलाकमान की समझाईश पर फिलहाल चुप है.
कुछ और चेहरे भी अहम- भाजपा के कुछ अपने नेता ऐसे भी हैं, जो मुश्किल बन सकते हैं. इनमें पार्टी उपाध्यक्ष प्रभात झा अहम हैं. प्रभात हमेशा सिंधिया विरोधी रहे हैं, इसलिए काफी समय तक चुनावी मूवमेंट से दूर रहे. ग्वालियर-चंबल में सदस्यता अभियान के बाद सक्रिय हुए हैं. प्रभात को चुनाव नतीजों तक साधना भाजपा के लिए बेहद अहम है. वहीं, कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं के कारण लगभग सभी 27 सीटों पर स्थानीय नेता नाराज है.
इसके अलावा आपको बता दे कि उपचुनाव की तैयारियों के बीच भाजपा नेता पारुल साहू शुक्रवार को कांग्रेस में शामिल हो गईं. पूर्व सीएम और मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की मौजूदगी ने उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली. इस दौरान कमलनाथ ने कहा- पारुल साहू की घर वापसी है, इनका पूरा परिवार कांग्रेस में था आज वो भी कांग्रेस में शामिल हो गईं है. कमलनाथ ने कहा पारुल साहू के पिता हमारे पुराने सहयोगी हैं.
शिवराज पर हमला
कमलनाथ ने कहा- शिवराज जेब मे नारियल लेकर चलते हैं जहां मौका मिलेगा फोड़ देंगे. उन्होंने कहा कि भाजपा ने प्रदेश को कलंकित किया है, मुझे दिल्ली जाने में शर्म आती है वहां लोग कहते हैं उसी प्रदेश से हो जहां सब बिकने तैयार हैं. हमारे प्रजातंत्र के साथ जो खिलवाड़ हुआ है उसका फैसला चुनाव में होगा. नौजवान और किसान पीड़ित हैं, जो पैसा शिवराज बांट रहे वो प्रीमियम हमने दिया.
ज्योतिरादित्य सिंधिया की भाजपा में एंट्री के बाद पार्टी के कई सीनियर नेता नाराज हैं और उपचुनाव में सिंधिया समर्थक नेताओं टिकट दावेदारी को देखते हुए कई नेता अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर दुविधा में हैं. ऐसे में पूर्व विधायक पारुल साहू भी नाराज थीं. 2013 में विधायक बनी पारुल साहू को 2018 में टिकट नहीं दिया गया था.
पारुल को लोकसभा चुनाव लड़ना चाहती थीं इसलिए समझौता हुआ था लेकिन उन्हें लोकसभा का भी टिकट नहीं दिया गया था. वहीं, दूसरी तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद उनके करीबी गोविंद सिंह राजपूत भी अब भाजपा में हैं. 2013 के विधानसभा चुनाव में पारुल साहू भाजपा की उम्मीदवार थीं और गोविंद सिंह राजपूत कांग्रेस के टिकट से मैदान पर थे. इस चुनाव में पारुल साहू ने गोविंद सिंह राजपूत को चुनाव में हराया था.
हालांकि हार का अंतर बहुत कम था. 2013 में पारुल साहू को 59,513 वोट मिले थे जबकि गोविंद सिंह राजपूत को 59,372 वोट मिले थे. लेकिन अब होने वाले उपचुनाव में गोविंद सिंह राजपूत भाजपा में हैं और माना जा रहा है कि सुरखी विधानसभा सीट से वहीं उम्मीदवार हो सकते हैं. वहीं, पारुल साहू के कांग्रेस में शामिल होने के बाद माना जा रहा है कि उन्हें सुरखी से टिकट दिया जाएगा.
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