सीकर.
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ( Board of Secondary Education ) के परीक्षक की छोटी सी लापरवाही ने एक छात्रा को बड़ा जख्म दे दिया है। कॉपी जांच में लापरवाही से मिले कम अंकों के कारण छात्रों को साइंस की जगह आट्र्स लेना पड़ा। हालांकि बोर्ड ने लापरवाह परीक्षक पर तीन साल तक कॉपी जांच के लिए प्रतिबंध लगा दिया है। इधर, पुनर्मूल्यांकन में छात्रा के अंक तो बढ़ गए, लेकिन अब स्कूलों में साइंस का 60 प्रतिशत से अधिक कोर्स हो चुका। ऐसे में वह अब सब्जैक्ट भी नहीं बदल सकती। मामला सीकर जिले के फतेहपुर से जुड़ा है। फतेहपुर के नगरदास गांव की दसवीं कक्षा की छात्रा कविता कुमारी के विज्ञान विषय में 43 अंक आए। ग्यारहवीं कक्षा में विज्ञान विषय लेकर अपना कॅरियर बनाने की इच्छुक इस छात्रा को विज्ञान विषय में कम अंक की वजह से कला वर्ग में प्रवेश मिला। संवीक्षा के बाद इस छात्रा के विज्ञान विषय में 43 से अंक बढकऱ 94 हो गए। संवीक्षा का परिणाम आने में तीन माह लग जाने के कारण अब इस छात्रा को अपने पसंदीदा विषय के साथ उच्च शिक्षा से वंचित रहना होगा। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड परीक्षाओं की विश्वसनीयता का दावा करने के बावजूद उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन कराने के मामले में लाचार नजर आ रहा है। परीक्षकों के खिलाफ पुख्ता कार्रवाई नहीं होने के कारण विद्यार्थियों की साल भर की मेहनत का उचित मूल्यांकन नहीं हो पाता। महज अंकों के जोड़ में ही प्रति वर्ष हजारों विद्यार्थियों की उत्तरपुस्तिकाओं में एक से 45 अंक तक की गलती रह जाती है।
60 प्रतिशत कोर्स पूर्ण अब कैसे हो कवरअब कॉपी में त्रुटि सामने आने के बावजूद स्कूल में छात्रा कविता विषय परिवर्तन करने की स्थिति में नहीं है। क्योंकि विज्ञान विषय में अभी तक 60 प्रतिशत कोर्स पूर्ण हो चुका हैं। अगर अब छात्रा विषय परिवर्तन करती है, तो वह पीछे का 60 प्रतिशत कोर्स कवर नहीं कर पाएंगी। हालांकि विज्ञान संकाय नहीं मिलने से छात्रा के चेहरे पर मायूसी हैं। छात्रा का यह भी कहना है कि उसकी रूचि विज्ञान विषय में हैं, लेकिन मुझे इस बार विज्ञान संकाय नहीं मिलने से मेरा विषय का ज्ञान हमेशा अधूरा ही रहेगा। भले ही अब 12 वीं में विज्ञान संकाय लेकर आगे की पढ़ाई पूर्ण कर लूं। इस मामले में खास बात यह है कि गलती की शिकायत करने तक का प्रावधान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में नही है। बोर्ड इन मामलों में लिखित और मौखिक किसी भी तरह की शिकायत को बोर्ड नहीं मानता हैं। बोर्ड अपनी मर्जी से शिक्षक पर कार्रवाई करता है।
यह है पूरा मामला: बोर्ड परीक्षा में विज्ञान में मिले 43 नंबर, जब कॉपी मंगवाई तो खुशी के साथ हुआ गमदेरी से आता है परिणामशिक्षा बोर्ड की बारहवीं और दसवीं परीक्षा के परिणाम के बाद प्रति वर्ष लगभग डेढ़ लाख विद्यार्थी अपनी उत्तरपुस्तिकाओं की संवीक्षा कराते हैं। इसके तहत उनकी उत्तरपुस्तिकाओं में परीक्षकों द्वारा दिए अंको की री टोटलिंग की जाती है। संवीक्षा की बदौलत प्रति वर्ष 15 से 20 हजार विद्यार्थियों के अंक बढ़ जाते हैं। लेकिन संवीक्षा कार्य की गति इतनी धीमी होती है कि विद्यार्थियों को संवीक्षा परिणाम तीन से चार माह बाद मिल पाता है। तब तक उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश प्रक्रिया सहित पंसदीदा विषय चुनने का समय समाप्त हो चुका होता है।
सिर्फ डिबार से नहीं असरउत्तरपुस्तिकाओं को जांचने में लापरवाही बरतने वाले परीक्षकों को शिक्षा बोर्ड महज बोर्ड कार्य से डिबार कर देता है। उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई नहीं होने से परीक्षक भी निडर बने हुए हैं। दरअसल शिक्षा बोर्ड अपनी उत्तरपुस्तिकाएं जंचवाने के लिए प्रदेश के 27 हजार सरकारी व्याख्याताओं की सेवाएं लेता है। यह व्याख्याता शिक्षा विभाग के अधीन होते है लिहाजा शिक्षा बोर्ड उनके खिलाफ सीधी कार्रवाई नहीं कर पाता।
कॉपी जांच के बाद शिक्षक से जो अंकों की सूची प्राप्त हुई, उसी सूची को कम्प्यूटर में स्केन कर अंकतालिका तैयार की जाती है। शिक्षक ने उसी अंकों की सूची में त्रुटि की है। इसके चलते शिक्षक को तीन साल के लिए प्रतिबंधित किया गया हैं। शिक्षक की यह मानवीय त्रुटि मानकर शिक्षक के खिलाफ कार्रवाई का यह कदम उठाया गया है। -राजेंद्र गुप्ता, पीआरओ, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान ( Rajendra Gupta, PRO, Board of Secondary Education Rajasthan )
शिक्षा बोर्ड उच्च शिक्षा प्राप्त सरकारी व्याख्याताओं से कॉपियां जंचवाता है। लापरवाही सामने आने के बाद संबंधित परीक्षक को बोर्ड कार्य से डिबार किया जाता है । शिक्षा विभाग को उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा भी की जाती है। शिक्षा विभाग ने परीक्षकों की गलतियां पकडऩे के लिए ही संवीक्षा व्यवस्था प्रारंभ की है। -मेघना चौधरी, सचिव, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान ( Meghna Chaudhary, Secretary, Board of Secondary Education Rajasthan )