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पंजाब के गुरुद्वारों से ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ की अपील

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दिल्ली के सिंघु, टिकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर चल रहे किसानों के आंदोलन के 50 दिन पूरे हो चुके हैं. इतने दिनों में ये साफ हो गया है कि किसान अपनी मांगों के पूरा होने से पहले घर जाने वाले नहीं हैं. इस दौरान किसानों ने भूख हड़ताल से लेकर टोल प्लाजा फ्री कराने, रिलायंस के स्टोर्स और पेट्रोल पंप के आगे धरना देने से लेकर कई कार्यक्रम किए और अब वे 26 जनवरी को होने वाली ट्रैक्टर परेड की तैयारियों में जोर-शोर से जुटे हुए हैं.
किसानों ने 7 जनवरी को ट्रैक्टर रैली निकालकर केंद्र सरकार को अपनी ताक़त और एकजुटता का अहसास कराया था. तब किसानों ने कहा था कि यह रैली 26 जनवरी को होने वाली किसान ट्रैक्टर परेड की रिहर्सल के तौर पर निकाली गई है. पंजाब में किसान ट्रैक्टर परेड की तैयारियां जोर-शोर से की जा रही हैं. पंजाब के सभी जिलों से ट्रैक्टर्स का जत्था दिल्ली के लिए कूच करने को तैयार है. अमृतसर से ऐसा एक जत्था निकल भी चुका है. पंजाब के किसान संगठनों का कहना है कि वे 20 जनवरी से ही ट्रैक्टर्स और आम लोगों को दिल्ली के लिए रवाना कर देंगे. एनडीटीवी के मुताबिक़, पंजाब में गुरुद्वारों से की जा रही अपील में कहा जा रहा है, अगर हम अभी नहीं जाते हैं तो हमें फिर कभी यह मौक़ा नहीं मिलेगा. यह हमारे हक़ की लड़ाई है.
गांवों में जोरदार तैयारियां 
किसान ट्रैक्टर परेड के लिए पंजाब के गांवों में जोरदार तैयारियां हैं. हर गांव से ज़्यादा से ज़्यादा ट्रैक्टर और लोगों को दिल्ली भेजने की कोशिश की जा रही है और इसके लिए गली-गली में अभियान चलाया जा रहा है. किसान संगठनों ने फ़ैसला किया है कि जो लोग इस परेड में शामिल नहीं होंगे, उन पर 2100 रुपये का जुर्माना लगेगा. अगर वे यह जुर्माना नहीं देते हैं तो उन्हें सामाजिक बहिष्कार का सामना करना होगा. 13 जनवरी को लोहड़ी वाले दिन पंजाब के कई जिलों में कृषि क़ानूनों की कॉपियों को जलाया गया. इस दौरान भी लोगों से दिल्ली की किसान ट्रैक्टर परेड में चलने की अपील की गई.
हरियाणा से भी होगी भागीदारी
पड़ोसी राज्य हरियाणा में भी यही स्थिति है. यहां भी किसान नेताओं की पूरी कोशिश है कि हर गांव से लोगों की इस परेड में भागीदारी हो. महिलाओं को ट्रैक्टर चलाना सिखाया जा रहा है ताकि वे इस परेड में हिस्सा ले सकें. टिकरी बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन में हरियाणा के किसानों की बड़ी भागीदारी है. एक ओर किसानों की ट्रैक्टर परेड की तैयारी है तो दूसरी ओर दिल्ली पुलिस ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. पुलिस ने अदालत में दायर याचिका में कहा है कि वह इसके ख़िलाफ़ आदेश जारी करे. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस मामले में किसान यूनियनों को नोटिस जारी किया है.
बीते 50 दिनों के दौरान सरकार से कई दौर की बातचीत हुई और यह बेनतीजा रही. अब 15 जनवरी को एक बार फिर किसान और सरकार आमने-सामने बैठेंगे और कृषि क़ानूनों को लेकर बातचीत करेंगे. हालांकि किसान नेताओं ने कहा है कि उन्हें इस बैठक से कोई हल निकलने की उम्मीद नहीं है. इस बीच, सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाई गई कमेटी को लेकर किसानों में जबरदस्त रोष है. किसानों का कहना है कि कमेटी में शामिल चारों लोग पहले ही कृषि क़ानूनों का समर्थन कर चुके हैं, ऐसे में आख़िर वे इन कमेटियों के सामने क्यों पेश होंगे. इससे इस मसले का हल निकलना और मुश्किल हो गया है.
SC की कमेटी से अलग हुए भूपिंदर सिंह मान
नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन का आज (गुरुवार) 50वां दिन है. आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान समाधान के लिए एक समिति का गठन किया था. कमेटी के सदस्‍यों में भारतीय किसान यूनियन के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष भूपिंदर सिंह मान भी थे. अब उन्होंने समिति से अपना नाम वापस ले लिया है. दरअसल कमेटी में भूपिंदर मान के नाम पर शुरुआत से ही बवाल हो रहा था. किसान नेताओं का कहना था कि मान पहले ही तीनों नए कृषि कानूनों का समर्थन कर चुके हैं.
भूपिंदर सिंह मान ने पत्र लिखकर इसकी जानकारी दी. मान ने इस कमेटी में उन्हें शामिल करने के लिए शीर्ष अदालत का आभार जताया. पत्र में उन्होंने लिखा है कि वे हमेशा पंजाब और किसानों के साथ खड़े हैं. एक किसान और संगठन का नेता होने के नाते वह किसानों की भावना जानते हैं. वह किसानों और पंजाब के प्रति वफादार हैं. किसानों के हितों से कभी कोई समझौता नहीं कर सकता. वह इसके लिए कितने भी बड़े पद या सम्मान की बलि दे सकते हैं. मान ने पत्र में लिखा कि वह कोर्ट की ओर से दी गई जिम्मेदारी नहीं निभा सकते, अतः वह खुद को इस कमेटी से अलग करते हैं.
किसान नेताओं ने समिति में शामिल अन्य नामों पर भी ऐतराज जताया था. शीर्ष अदालत की तरफ से बनाई गई चार सदस्यों की समिति में BKU के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान, शेतकारी संगठन (महाराष्ट्र) के अध्यक्ष अनिल घनवत, अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान दक्षिण एशिया के निदेशक प्रमोद कुमार जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी शामिल हैं. अनिल घनवत ने मीडिया में लिखे अपने लेखों में किसान कानूनों के पक्ष में राय दी थी.
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