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तीनों कृषि कानून वापस, क्या यह मोदी सरकार की रणनीति है या फिर हार?

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मोदी सरकार (Modi government) द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों (agricultural law) का विरोध लंबे समय से किसान सड़कों पर कर रहे थे. किसानों को मोदी समर्थक मीडिया द्वारा और बीजेपी के नेताओं द्वारा तथा समर्थकों द्वारा कभी खालिस्तानी बताया गया तो कभी आतंकवादी तो कभी देशद्रोही तो कभी पाकिस्तान समर्थक. मोदी मीडिया और समर्थक यह मानकर चल रहे थे कि तीनों कृषि कानून वापस नहीं होंगे और जैसे भी हो किसानों को बदनाम करते रहा जाए.
लेकिन आखिरकार इस सरकार ने लगभग 700 किसानों के शहीद होने के बाद खुद के द्वारा लाए गए कानून को वापस ले लिया है. अब मोदी समर्थक मीडिया द्वारा बीजेपी के नेताओं द्वारा और समर्थकों द्वारा यह प्रचारित किया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों को बड़ी राहत दी है, किसानों को तोहफा दिया है. तो क्या सच में ऐसा किया है प्रधानमंत्री मोदी ने? किसान मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों को डेथ वारंट बता रहे थे और लगभग 700 से अधिक किसान शहीद हुए.
यह कानून मोदी सरकार खुद लेकर आई थी और बिना किसी बहस के हंगामे के बीच संसद के अंदर पास किया था. जिस तरह से पास हुआ था उसका वीडियो सोशल मीडिया पर सभी ने देखा. तमाम आवाजों को नजरअंदाज करके मोदी सरकार ने इन कानूनों को पास कराया था. जब यह कानून मोदी सरकार खुद लेकर आई थी और अब किसानों और विपक्ष के आगे घुटने टेकते हुए वापस ले रही है तो फिर यह मोदी सरकार का किसानों को बड़ा तोहफा कैसे है? प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से किसानों को राहत कैसे है? हेडलाइन तो यह होनी चाहिए कि मोदी सरकार ने किसानों और विपक्ष के आगे टेके घुटने. लेकिन है क्यों नहीं?
एजेंडा गिर चुका है
किसानों का कहना था कि मोदी सरकार द्वारा लाए गए कानूनों से देश के चंद उद्योगपतियों को फायदा होगा. लेकिन मोदी सरकार के बचाव में मोदी सरकार का हर हाल में समर्थन करने के लिए कुख्यात मीडिया किसानों के बारे में लगातार असभ्य भाषा का इस्तेमाल करके उनके खिलाफ एक एजेंडा चला रही थी. अब कृषि कानून मोदी सरकार ने किसानों के आगे घुटने टेकते हुए वापस ले लिए हैं, इसके बाद वह एजेंडा धारी पत्रकार और एंकर कहां है?
कुछ मीडिया चैनल तो मोदी सरकार की चाटुकारिता में इस हद तक आगे निकल चुके थे कि उनका कहना था कि किसान आंदोलन की फंडिंग विदेशों से हो रही है. किसान अगर कुछ खा रहे थे तो उन्हें नकली किसान बताया जा रहा था और कहा जा रहा था कि किसान पिज्जा कैसे खा सकता है? एसी में कैसे सो सकता है? दरअसल मोदी सरकार का किसानों को दबाने का हर हथकंडा फेल हो चुका था. किसान झुकने के लिए तैयार नहीं थे और कुछ ही वक्त बाद पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने है. मोदी सरकार बैकफुट पर आकर फैसला लेने पर मजबूर हुई.
सच्चाई यह है कि किसानों ने मोदी सरकार से लड़कर जीत हासिल की है. यह कोई प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से या फिर केंद्र की मोदी सरकार की तरफ से या फिर किसी बीजेपी के नेता की तरफ से किसानों को दिया गया तोहफा या फिर राहत नहीं है. किसानों के आगे मोदी सरकार का हर एजेंडा धराशाई हो गया है. किसानों को राहत ही देनी है तो कानून वापस हो ही चुके हैं. अब संसद के अंदर एमएसपी पर फसल खरीदने का कानून बनाकर दिखाएं मोदी सरकार.
आज माफी मांगने का दिन है
मोदी सरकार की तरफ से आज स्वीकार किया गया कि उन्होंने किसानों के लिए गलत कानून लाया था और सर्वसम्मति से पास किया गया कानून नहीं था.(तभी तो वापस लिया गया) आज सरकार द्वारा वह कानून वापस लिया गया है जिससे किसान अपने लिए डेथ वारंट मान रहे थे. अब सरकार ने यह कानून वापस ले ही लिया है तो उन तमाम न्यूज़ चैनलों को और बीजेपी समर्थक पत्रकारों को एंकरो को सार्वजनिक तौर पर किसानों से माफी मांगनी चाहिए.
इन्हें माफी इसलिए मांगी चाहिए. क्योंकि इन्होंने किसानों के संघर्ष का मजाक उड़ाया, किसानों के बलिदान का मजाक उड़ाया, किसानों के खाने का मजाक उड़ाया, किसानों के सोने का मजाक उड़ाया, किसानों द्वारा दिखाई जा रही एकजुटता का मजाक उड़ाया. इन्होंने मोदी सरकार का समर्थन करने की आड़ में देश की एकता का मजाक उड़ाया. आज सार्वजनिक तौर पर किसान विरोधी तत्वों को किसानों से माफी मांगनी चाहिए.
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