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आखिर क्यों बदनाम करना चाहते है किसान आंदोलन को भजपा के नेता

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न जाने क्यों बीजेपी के नेता किसानों के आंदोलन के पीछे पड़ चुके हैं. अध्यादेश आने के बाद से ही किसान केंद्र सरकार तक संदेश पहुंचाते रहे कि अगर ये अध्यादेश क़ानून में तब्दील हुए तो वे तबाह हो जाएंगे. लेकिन केंद्र सरकार अपनी मर्जी पर अड़ी रही और बिना किसी एक किसान संगठन, बिना किसी संसदीय समिति से बात किए क़ानून बना दिए.
अब जब किसानों ने अपनी हिम्मत से तमाम जुल्मों को झेलने के बाद दिल्ली के बॉर्डर्स पर डेरा डाल दिया है तो बीजेपी के नेता उन्हें खालिस्तानी, देशद्रोही बताने पर तुले हुए हैं. उनके इन बयानों के कारण देश में खासा विवाद भी हो चुका है, लेकिन शायद वे मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं. बीजेपी में किसानों के आंदोलन को खालिस्तान से जोड़ने की शुरुआत हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने की और इसे कांग्रेस प्रायोजित भी बताया. उनके बयान का सोशल मीडिया पर जबरदस्त विरोध हुआ.
कभी गृह मंत्रालय से जेड सिक्योरिटी हासिल करने वालीं कंगना रनौत किसान आंदोलन में शामिल होने आ रहीं बुजुर्ग दादी को बताती हैं कि ये सौ रुपये लेकर आ रही हैं. तो कभी दक्षिणपंथी ट्रोल आर्मी वाले किसी दूसरे देश के पुराने वीडियो को एडिट कर उसे किसान आंदोलन का बताते हैं. और कहते हैं कि आंदोलन में शामिल किसान खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा रहे हैं.
इस तरह के वीडियोज को बीजेपी की सोशल मीडिया टीम में ऊंचे पदों पर बैठे लोग ट्वीट करते हैं और बुरी तरह बेइज्जत होने के बाद डिलीट भी कर देते हैं. लेकिन लगता नहीं कि ये बीजेपी नेता यहां रुकेंगे. किसानों को बदनाम करने के लिए अब ताज़ा क्या कुछ कहा गया है, वो पढ़िए.
भजपा नेता मनोज तिवारी का बयान
दिल्ली बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और सांसद मनोज तिवारी ने कहा है कि किसानों के आंदोलन में ऐसे कुछ लोगों और संगठनों की मौजूदगी, जिन्होंने शाहीन बाग़ में सीएए और एनआरसी का विरोध किया था, से पता चलता है कि टुकड़े-टुकड़े गैंग किसानों के आंदोलन में शाहीन बाग़ को दोहराने की कोशिश कर रहा है. तिवारी का कहना है कि ऐसा करके माहौल को ख़राब करने की कोशिश की जा रही है
मनोज तिवारी के बाद बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी का बयान पढ़िए. सुशील मोदी कहते हैं कि दिल्ली के किसान आंदोलन को टुकड़े-टुकड़े गैंग और सीएए विरोधी ताकतों ने हाईजैक कर लिया है. हरियाणा सरकार के कृषि मंत्री जेपी दलाल कहते हैं, किसान का नाम आगे करके विदेशी ताकतें जैसे- चीन और पाकिस्तान या दुश्मन देश, हमारे देश को अस्थिर करना चाहते हैं. दलाल कहते हैं कि विदेशी ताक़तें किसान को मोहरा बना रही हैं.
इसी तरह बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत कुमार गौतम ने भी कहा था कि किसान आंदोलन में खालिस्तान और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए जा रहे हैं और कट्टरपंथियों ने इस आंदोलन को हाईजैक कर लिया है. इस तरह के बयानों का क्या कोई सिर-पैर हो सकता है? कहीं से इन्हें जायज ठहराया जा सकता है? शाहीन बाग़ को देश विरोधी आंदोलन बताने का बीजेपी के नेताओं का एक सूत्रीय सिद्धांत रहा है.
जितना कर सकते थे और कर सकते हैं, शाहीन बाग़ को बीजेपी ने बदनाम किया है. अब जब मोदी सरकार के फ़ैसलों के ख़िलाफ़ किसान आवाज़ उठा रहे हैं और उन्हें समर्थन मिल रहा है तो उनके आंदोलन को शाहीन बाग़ बताया जा रहा है. बार-बार इस तरह के बयान देने का क्या मक़सद हो सकता है. वैसे, यह पिछले छह साल से हो रहा है कि मोदी सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों को देशद्रोही, पाकिस्तान परस्त बता दिया जाए.
ये आसान काम था. इससे विरोधियों को देश के लोगों की नज़रों में गद्दार साबित करने में मदद मिल रही थी. लेकिन इस बार पाला उन किसानों से पड़ा था जो खेती के दौरान सैकड़ों मुश्किलों को झेलने के बाद भी करोड़ों लोगों के लिए अन्न उपजाते हैं. इसलिए लाखों लोग सोशल मीडिया पर किसानों के पक्ष में उतर आए और ट्रोल आर्मी को धोकर रख दिया. किसानों को खालिस्तानी बताए जाने को लेकर पंजाब में बेहद ख़राब प्रतिक्रिया हुई है.
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह दिल्ली में आकर गृह मंत्री अमित शाह को तक बता चुके हैं कि आंदोलन से देश की राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर पड़ रहा है. सोशल मीडिया में सक्रिय ट्रोल आर्मी के अलावा कुछ न्यूज़ चैनलों ने भी किसानों को खालिस्तानी बताने की कोशिश की. इससे दुनिया भर में फैले पंजाबियों मे बहुत नाराज़गी है. यह नाराज़गी सोशल मीडिया पर साफ दिख रही है.
बीजेपी कार्रवाई करेगी?
आख़िर बीजेपी इस बात को कब तय करेगी कि उसके इतने सीनियर नेता इस तरह के भड़काऊ बयान क्यों दे रहे हैं. भड़काऊ इसलिए कि आप अगर किसानों के लिए यह कहेंगे कि वे विदेशी ताक़तों के मोहरे हैं या खालिस्तानी हैं, तो निश्चित तौर पर वे इसका जवाब देंगे. आख़िर उनकी ग़लती क्या है? किसानों का कहना है कि ये नए कृषि क़ानून उनके लिए डेथ वारंट हैं. सरकार इन्हें वापस ले ले और एमएसपी की गारंटी दे दे. इसके लिए किसानों से बातचीत भी की जा रही है. लेकिन बीजेपी अपने नेताओं को कब रोकेगी जो किसानों के आंदोलन को बदनाम करने पर तुले हुए हैं.
ना वो इन पर किसी तरह की कार्रवाई करती है, ना इन्हें सार्वजनिक रूप से डांटती है, ऐसे में तो जिस तरह की बकवास सोशल मीडिया पर किसानों के आंदोलन के ख़िलाफ़ चल रही है, वो चलती रहेगी. इससे नुक़सान बहुत ज़्यादा होगा, शायद बीजेपी इस बात को समझ नहीं रही है. उसे वक़्त रहते अपने ऐसे नेताओं की जुबान पर लगाम लगानी ही होगी.
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