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राजस्थान ऐसा गांव जहां रावण जलता नहीं, बल्कि युद्ध में मारा जाता है,

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 Khatushyam Aajkal Rajasthan News
रामलीला ( Ramleela ) में चुनिंदा पात्रोंऔर रावण दहन ( Ravana Dahan ) के दृश्य तो दशहरे ( Dussehra 2019 ) पर आम है। लेकिन, सीकर जिले में एक रामलीला ऐसी भी है, जिसमें पूरा गांव रामलीला का पात्र होता है। यहां रावण को भी जलाया नहीं, बल्कि मारा जाता है। जिसके लिए बकायदा गांव के लोग राम और रावण की सेना के रूप में आमने- सामने होकर घोर युद्ध करते हैं। जी, हां दक्षिण भारत शैली का प्रदेश का ऐसा अनूठा महोत्सव दांतारामगढ़ तहसील के छोटे से गांव बाय ( Dussehra Festival in Baya Village ) में होता है। जहां रावण के वध के बाद भी रातभर भगवान राम की जीत का जश्न 24 अवतारों और लोक देवताओं की अलौकिक झांकियों के साथ मनाया जाता है।
रामलीला के इस मंचन के लिए पूरा गांव एक महीने पहले ही शहर में तब्दील हो जाता है। प्रदेश तो दूर देश और विदेश में रहने वाले लोग भी अपना काम-काज छोडकऱ पहुंचते हैं। खास बात यह भी है कि हर साल इतिहास की नई इबारत लिख रहे इस महोत्सव का हर पात्र अपने मुखौटे और साज सज्जा की सामग्री अपने खर्च पर खुद तैयार करता है। जिस पर पांच से दस हजार रुपए तक का खर्च आता है।श्री दशहरा मेला समिति देखरेख में मेले को महोत्सव का रूप दिया जाता है। वर्षों से लगातार चल रही इस परंपरा को यहां के ग्रामीण आज तक संजोकर रखे हुए है। पूर्व काल में जयपुर रियासत द्वारा लगान वसूली के रूप में बाय के लोगों से कर लगाया। उस समय बाय गांव ( Battles of Ram Ravan in Baya Village Sikar ) ब्राह्मण बाहुल्य था। सबने मिलकर जयपुर के राजा विरुद्ध लगान न देने के पक्ष में एक संर्घष श्री लक्ष्मीनाथ भगवान के मंदिर से प्रारंभ किया। दांता ठाकुर की मध्यस्थता के बाद खालसा लागू किया गया। जिसमें ब्राह्मणों की जीत लक्ष्मीनाथ भगवान के कारण हुई। संयोग से उस दिन विजयादशमी का पर्व था। तब से यहां के लोग इस पर्व को महोत्सव के रूप में मनाते आ रहे है।
बाय में दशहरा मनातेे बीते 165 वर्षबाय में दशहरा महोत्सव मनाते हुए करीब 165 वर्ष हो गए। इसके पीछे भी एक कथा जुड़ी हुई है। मुगल बादशाह औरंगजेब जब मंदिरों की मूर्तियों को खंडित करना प्रारंभ किया तो सभी पुजारी चिंतित हो उठे। श्री लक्ष्मीनाथ भगवान की प्रतिमा जो बाय गांव के बीच में विराजित है। जो संवत 1604 में पाराशर पुजारियों द्वारा रथ में लाई गई थी। उस वक्त संध्या का समय था और रथ आगे नहीं बढ रहा था। पुजारी को आकाशवाणी द्वारा भगवान का निर्देश हुआ कि प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा यही की जाए।बसा दिया गांवउस वक्त मंदिर के स्थान पर एक तालाब था। जहां तालाब के किनारे मंदिर बना। वहीं एक विधवा की झोपड़ी थी जो लक्ष्मीनाथ भगवान की परम भक्त थी। वह परसराम शेखावतों की बाई थी। जिसने मंदिर के साथ बाय गांव बसाया।
तीन पीढिय़ों से बन रहे राम,रावण और मेघनाथ

बाय के दशहरे पर कई ऐसे परिवार है जिनकी तीन पीढिय़ा अपनी कला का प्रदर्शन कर दर्शकों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी है। दशहरे में दक्षिणी शैली पर आधारित युद्ध में राम का किरदार रामगोपाल शर्मा बाय निवासी है और अहमदाबाद में निजि नौकरी करते है। इनसे पहले इनके दादा जीवणराम राम बनते थे। राम बनने के लिए विशेष तौर पर अहमदाबाद से अपने गांव बाय आते है।दशानन का किरदार सुरेश मिश्रा करते है। मिश्रा बताते है कि गत 20 वर्षो से तीन पीढिय़ां रावण बनती आ रही है। जिनमें पहली पीढ़ी में भूरमल और दूसरी में फूलचंद मिश्रा है। मेघनाथ का अभिनय रमेश कुमावत करते है। कुमावत बताते है कि पहले मेरे दादा रामदयाल और फिर पिता बजरंगलाल यह रोल करते थेे। वहीं नृसिंह भगवान का किरदार सांवरमल उपाध्याय तकरीबन 20 वर्षो से करते आ रहे है। बाय गांव के 12 साल के रोहित शर्मा इस दशहरे में बाय के तकरीबन ढ़ाई सौ से भी अधिक बच्चा युवा और बुजुर्ग बाय दशहरे में मुखौटा लगाकर नाचते है।50 वर्षों से बना रहे हैं महोत्सव के लिए मुखौटाबाय में श्री दशहरा मेला समिति के तत्वावधान में विजयीदशमी महोत्सव 8 अक्टूबर को धूमधाम से मनाया जाएगा। समिति के अध्यक्ष प्रहलाद सहाय मिश्रा, उपाध्यक्ष मंत्री सुभाष कुशलाका, कोषाध्यक्ष सुरेन्द्र दाधीच ने बताया कि मेले को चार चांद लगाने के लिए गांव के ही छिगनलाल चेजारा मालाराम कीर, मोहनलाल जांगिड़, सोहनलाल डबोलिया, केसरमल रैगर पिछले पचास वर्षो से भी अधिक समय से मेले में दिखाई जाने वाली शेषावतार, गरूड़ वाहन, विष्णु, सरस्वती, सिंहवाहिनी दुर्गा, जय काली माँ, वराह अवतार, नृसिंह अवतार सहित अनेक झांकियों एवं मुखौटो को तैयार करने में अपना सहयोग देते आ रहे है। वहीं अनेक युवा भी इसमें सहयोग दे रहे है। यह तैयारी जानकीनाथ मंदिर में चल रही है।दशहरा ही मुख्य त्योहारबाय का ग्रामीणों और प्रवासियों के लिए बाय दशहरा ही मुख्य त्यौहार है। बाय के तीन सौ ऐसे परिवार है जो नौकरी और व्यापार के लिए मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, गुजरात, दिल्ली, पंजाब आदि राज्यों में रहते हैं। इनमें एक दर्जन से भी अधिक परिवार हैं जो विदेशों में भी रहते हैं, जो होली दिवाली को नहीं दशहरे पर एकत्र होकर इस पर्व को स्नेह मिलन की तरह मनाते है। दशहरे में हिन्दुओं के साथ मुस्लिम समुदाय के लोग भी चाव से शरीक होते है। वहीं शुभराती व बुंदू खां एण्ड पार्टी द्वारा निशुल्क गाजे बाजे की व्यवस्था की जाती है।

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