सीकर. होली के त्योहार (holi fastival) को देशभर में हर्ष व उल्लास से मनाया जाता है। लेकिन, राजस्थान के सीकर (sikar in rajasthan)जिले का एक गांव ऐसा भी है, जहां होली पर लोग रंग व गुलाल से दूर रहते हैं। यह गांव नीमकाथाना (Neemkathana)का नजदीकी गांव गणेश्वर है। जहां करीब 500 वर्ष से चली आ रही परम्परा आज भी बरकरार हैं धुलंडी पर्व के दिन ग्रामीण रंगों की होली नही खेलते। बल्कि, नए कपड़े पहनकर व सजधज कर रायसल मंदिर जाते हैं। जहां डूडू महोत्सव (dudu mahotsav in sikar) मनाया जाता है। जिसमें कुश्ती दंगल जैसी कई प्रतियोगिताएं होती है। गांव के अमरसिंह बताते हैं कि बाबा रायसल सिंह का जन्म विक्रम संवत 1444 में हुआ था। जिनका धुलंडी के दिन ही राजतिलक हुआ। उन्हीं रायसल का गांव में मंदिर है। जहां इस दिन गांव के लोग सजधज कर नए कपड़े पहनकर अपने अस्त्र शस्त्र लेकर जाते हैं। यहां बाबा रायसल की पूजा अर्चना कर लोग जात जडूले उतारते हैं। खुशहाली की मन्नत मांगते हैं। इस दिन मंदिर में विशाल मेला लगता हैं। पांच सौ साल पहले राजतिलक समारोह हुआ था। इस कारण लोग नए कपड़ों पर रंग नहीं लगाते।
शीतलाअष्टमी को लगाते हैं एक-दूसरे को रंग
होली की बजाय गणेश्वरमें शीतला अष्टमी (sheetla ashtami)को उमंग, मस्ती उत्साह के साथ लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। यहां के रंगोत्सव को देखने भी बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं। पहाड़ी पर स्थित बाबा रायसल महाराज के दर्शनों के लिए कतार लगती है। शाम को पवित्र गर्म पानी के झरने में स्नान करने के बाद होली का पर्व समाप्त होता है।
बसंत पंचमी से शुरू हो जाती है फाल्गुनी बयार
फतेहपुर. क्षेत्र में होली के त्योहार के रंग निराले ही हैं। बसंत पंचमी से ही फाल्गुनी बयार शुरू हो जाती हैं। लोग चंग व डफ पर थिरकने लग जाते हैं। रासियो की टोली रात भर चंग की थाप पर थिरकती हैं। युवाओं की टोली गींदड़ खेलती हैं। वर्षों से चली आ रही परम्परा आज भी चल रही हैं। हालांकि कुछ परिवर्तन जरूर हुआ है। गींदड़ में युवक मैरी बनकर यानी लड़की के कपड़े पहनकर आते हैं। इसके अलावा अलग अलग स्वाग रचकर नृत्य करते रहे हैं। आधुनिक युग में युवाओं की रुचि अब कम होने लग गई हैं। कस्बे में जगह जगह गींदड़ नृत्य का आयोजन होता हैं। होली के तीन दिन पहले शुरू होकर गींदड़ होली की रात तक चलते हैं। धुलंडी के मौके पर पर भी युवा चंग के साथ ही होली खेलते हैं।
देश का एक ऐसा गांव जहां होली पर रंग गुलाल से दूर रहते हैं लोग, हथियार लेकर जाते हैं राजा के पास
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