बीस साल बाद तालिबान (Taliban) ने अफ़ग़ानिस्तान की कमान तो सम्भाल ली है लेकिन पहाड़ जैसी मुश्किल चुनौतियां नेतृत्व के लिए मुँह बाये खड़ी हैं. अलग अलग महक़मों में काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों को महीनों से तनखा नहीं मिली है. काबुल से लेकर देश के दूर दराज़ इलाक़ों में बैंको के पास नक़दी ख़त्म हो गयी है.
बेरोज़गारी का आलम ये है की सिर्फ़ राजधानी काबुल में लाखों लोग सड़कों पर आ गये हैं जिनके पास कोई काम नहीं हैं. मध्य पूर्व एशिया के न्यूज़ चैनल अल जज़ीरा के मुताबिक तालिबानी लड़ाकों और सरकारी बलों के बीच महीनों तक चली घातक लड़ाई के कारण पांच लाख से अधिक अफगान आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं.
कुछ विस्थापित तो देश छोड़कर चले गए लेकिन अधिकाँश अफगानिस्तान में ही ठोकरें खाने को मज़बूर हैं. संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने मंगलवार को एक ‘मानवीय तबाही’ की चेतावनी देते हुए कहा कि अग़निस्तान में बुनियादी सेवाओं के ‘पूरी तरह से’ ध्वस्त होने का खतरा है. अल जज़ीरा का मानना है कि अफगानिस्तान में नई सरकार के गठन और देश की चरमराई अर्थव्यवस्था से निपटने के इरादे से अब तालिबान (Taliban) नेतृत्व की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं.
जरूरी सेवाओं को कैसे फिर से शुरू किया जायेगा और आवश्यक वस्तुएं का वितरण कैसे होगा इसके लिए सरकारी ढांचे को फिर से खड़ा करने की चुनौती है. तालिबान (Taliban) से हमदर्दी रखने वाले आर्थिक विशेषज्ञों का कहना सबसे पहले अमेरिकी सरकार इस दिशा में अफ़ग़ानिस्तान की मदद करे. मसलन जिस तरह वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने सहायता वितरण पर रोक लगा रखी है उसे जल्द से जल्द से बहाल किया जाये.
अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक बोर्ड के सदस्य ने भी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन और आईएमएफ से देश के लिए धन जारी करने का आग्रह किया हैं. अमेरिका ने पिछले महीने अफगान केंद्रीय बैंक से संबंधित लगभग 9.5 बिलियन डॉलर की संपत्ति को फ्रीज कर दिया था. फ्रीज़ लगने से जो पैसा काबुल आना था उस पाबंदी लग गयी.
बता दें, तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है, लेकिन पंजशीर में उसे रेसिस्टेंस फ़ोर्स की ओर से कड़ा मुकाबला मिला है, यह घाटी तालिबान विरोधियों का गढ़ है. अफगानिस्तान में अमेरिका की रणनीतिक हार से केवल तालिबानी और उसके पाकिस्तानी स्पॉन्सर्स ही खुश नहीं हैं. बल्कि रूस और चीन भी इसमें शामिल हैं. ये सब अमेरिका के ताजे घावों पर नमक छिड़कने जैसा है.
पाकिस्तानी लड़ाकू जेट तालिबान की मदद कर रहे हैं.
इसके अलावा आपको बता दे कि सोशल मीडिया पर एक वीडियो सामने आया है जिसमें कथित तौर पर पाकिस्तान वायु सेना के जेट विमानों को पंजशीर घाटी के ऊपर मंडराते हुए देखा गया है. जो तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे में पाकिस्तान की भागीदारी की पुष्टि करता है. रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान पंजशीर में तालिबान की मदद करता रहा है. वहीं, पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने कथित तौर पर अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को गिराने में पाकिस्तान की भूमिका की पुष्टि की.
मालूम हो कि पंजशीर में स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. क्योंकि तालिबान ने दावा किया है कि उसने विरोधी गुट को हरा दिया है और घाटी पर कब्जा कर लिया है, जबकि विरोधी गुट का कहना है कि उसकी लड़ाई जारी है. अफगानिस्तान के नेता अहमद मसूद के मोर्चे ने भी पुष्टि की है कि पाकिस्तानी लड़ाकू जेट पंजशीर में बम गिरा रहे हैं और तालिबान की मदद कर रहे हैं. अहमद मसूद ने 19 मिनट के वीडियो में पंजशीर में पाकिस्तान और तालिबान द्वारा बमबारी की पुष्टि की.
मसूद ने कहा कि पाकिस्तान ने पंजशीर में सीधे अफगानों पर हमला किया और अंतरराष्ट्रीय समुदाय चुपचाप देखता रहा. उन्होंने कहा कि वह अपने खून की आखिरी बूंद तक हार नहीं मानेंगे और पुष्टि की कि तालिबान “जंगली” पाकिस्तान की मदद से हमला कर रहा है. उन्होंने वीडियो में कहा, तालिबान ने साबित कर दिया कि वे नहीं बदले हैं. तालिब अफगान नहीं हैं, वे बाहरी हैं और बाहरी लोगों के लिए काम करते हैं, और अफगानिस्तान को बाकी दुनिया से अलग रखना चाहते हैं. सभी अफगानों को किसी भी रूप या संभव तरीके से तालिबान का विरोध करना चाहिए.
ईरान ने की निंदा
ईरान ने सोमवार को अफगानिस्तान की पंजशीर घाटी में विरोधियों के खिलाफ तालिबान के सैन्य हमले की “कड़ी निंदा” की. ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद खतीबजादेह ने संवाददाताओं से कहा, पंजशीर से आ रही खबर वास्तव में चिंताजनक है. हमले की कड़ी निंदा की जाती है. पाकिस्तान की ओर इशारा करते हुए सईद खतीबजादेह ने कहा कि ईरान अफगान मामलों में “सभी विदेशी हस्तक्षेप” की निंदा करता है.
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, हम अपने दोस्तों और उन लोगों को सूचित करना चाहते हैं जो अलग-अलग इरादों से अफगानिस्तान में प्रवेश करने की रणनीतिक गलती कर सकते हैं, कि अफगानिस्तान एक ऐसा देश नहीं है जो अपनी धरती पर दुश्मन या हमलावर को स्वीकार करता है.
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