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देश का बहुत बड़ा तबका गरीबी रेखा के नीचे जा रहा है, दूसरी ओर सरकार कॉरपोरे…

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देश का बहुत बड़ा तबका गरीबी रेखा के नीचे जा रहा है दूसरी ओर सरकार कॉरपोरेट का टैक्स लोन माफ करके सरकारी संपतिया उनके हवाले कर रही है. देश को घनघोर पूंजीवाद की ओर धकेल दिया गया है अमीरों को और अमीर बनाने के फार्मूले पर चल रही सरकार की सारी नीतियों कारपोरेट को लाभ पहुंचा रही हैं.
जिसके कारण अमीरी-गरीबी के बीच का फासला बड़ी और अंधेरी खाई का रूप ले चुका है, दुर्भाग्य की बात यह है कि अपनी पूंजीवादी नीतियों का प्रचार भाजपा सरकार उपलब्धि के रुप में कर रही है. देश में धर्म आधारित उन्माद और दिखावटी देशभक्ति के अंधे रास्ते में भटक रहा आवाम तालियां पीट रहा है, देश का बहुत बड़ा तबका गरीबी रेखा के नीचे जा रहा है सरकार उस मजबूर तबके को फोटो लगे थैलों में पांच किलो अनाज बांटकर एहसास जता रही है कि वह उसे जिंदा रखे हुए है.
दूसरी ओर कारपोरेट का टेक्स, लोन माफ करके देश की सरकारी संपतिया एक के बाद एक उनके हवाले की जा रही है. यह व्यवस्था में बड़ा बदलाव ला रही है जिसमें दो वर्ग ही शेष रहेंगे एक मालिक होगा और दूसरा मजदूर. भाजपा के अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा ने अगस्त में उतर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कहा कि राज्य ने भाजपा के पांच वर्षीय कार्यकाल में राज्य का जबरदस्त विकास किया है और राज्य की आर्थिक स्थिति बेहतर बनाई है राज्य में पांच साल पूर्व प्रतिव्यक्ति आय अड़तालिस हजार रुपये थी जो अब बढ़कर चौरानवे हजार रुपए हो गई है.
उनके आंकड़ों को सही मानते हुए विश्लेषण किया जाए तो यह देश के सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य के लिए बहुत दुर्भाग्यजनक है जो इस राज्य को गरीबी के अंधे कुएं में धकेल रहा है. उत्तर प्रदेश की लगभग चौबीस करोड़ की आबादी में सत्तर प्रतिशत आबादी लगभग सोलह करोड़ अस्सी लाख लोगों को सरकार बीस किलो क्षमता वाले मोदी योगी के फोटो लगे थैलों में पांच किलो अनाज प्रतिमाह मुफ्त बांट रही है मतलब सरकार मानती है कि यह सत्तर प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे है और जिसकी प्रतिव्यक्ति आय सरकारी मापदंडों के अनुसार साढ़े नौ हजार रुपए से कम है.
इस हिसाब से राज्य में मुफ्त अनाज प्राप्त कर रही जनता की कुल आबादी की प्रतिव्यक्ति आय एक लाख उनसठ हजार छै सौ करोड़ रुपए प्रतिमाह होती है. जबकि जगतप्रकाश नड्डा ने जो आंकड़ा बताया है उसके अनुसार राज्य की कुल प्रतिव्यक्ति आय दो करोड़ तीस लाख करोड़ रुपए प्रतिमाह बनती है. इस राशि में गरीबी रेखा के नीचे रहने वालोें की आय घटा दी जाए तो यह राशि दो करोड़ चौदह लाख करोड़ रुपए बचती है मतलब यह कि इतनी राशि वो तीस प्रतिशत लोगों की आय है.
मतलब राज्य की तीस प्रतिशत आबादी यानि लगभग सात करोड़ लोग की आय बहुत ज्यादा है. इसे प्रतिव्यक्ति आय के मान से समझें तो उत्तर प्रदेश में सत्तर प्रतिशत जनता की प्रतिव्यक्ति आय साढ़े नौ हजार रुपए है जबकि दूसरी ओर तीस प्रतिशत आबादी वर्ग ऐसा है जो प्रतिमाह लगभग उनतीस लाख रुपए मासिक कमाई कर रहा है. तब जाकर जगतप्रकाश नड्डा का चौरानबे हजार रुपए का दावा सही बैठता है.
यह असामनता ही चिंता का बड़ा कारण है एक ओर गरीब जनता है जिसकी स्थिति इतनी दयनीय है कि उसे पेट भरने के लिए भी सरकार का मोहताज होना पड़ रहा है जो थोड़ी बहुत कमाई है वह मंहगी गैस, महंगे पेट्रोल और परिवहन के साधन, मंहगे खाद्य तेल, व अन्य खाद्य सामग्री, में निकल जा रही है बचत के नाम पर आंसू, आंहे, मंदिर और राष्ट्रवाद है.
दूसरी ओर राज्य के प्रतिव्यक्ति आय के आंकड़ों को मजबूत कर रहा पूंजीपति वर्ग है जो इतना कमा रहा है कि सत्तर प्रतिशत आबादी की साढ़े नौ हजार रूपये की प्रतिव्यक्ति आय को चौरानवे हजार रुपए तक खींच देता है. कितना बड़ा फर्क हर महिने दर महिने बढ़ रहा है एक तरफ अति गरीबी की ओर बढ़ रही बहुसंख्यक जनता है और दूसरी ओर अति पूंजी की ओर बढ़ रहा कारपोरेट है.
आंकड़े बताने वाले दोनों ही स्थितियों को उपलब्धियां बताकर वोटों की फसल काट रहे हैं गरीबों को मुफ्त अनाज का बंटना भी उपलब्धि है और प्रतिव्यक्ति आय का बढ़ना भी उपलब्धि है लेकिन इसके पीछे छिपे घटाघोप अंधेरे और दुर्भाग्य को जनता भुगत रही है.
(प्रमोद अग्रवाल- पत्रकार)
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