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दिव्यांग भी हुए ‘समर्थÓ: ब्रेल में वर्कशीट, साइन में समझ रहे दुनिया का भूगोल

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सीकर.कोरोनाकाल में शिक्षा विभाग की सामान्य विद्यार्थियों के साथ विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों को ‘समर्थÓ बनाने की मुहिम अब अनलॉक हो गई है। समर्थ अभियान के जरिए प्रदेश में इस साल प्राथमिक कक्षाओं में नामांकन 40 हजार तक बढऩे की संभावना है। देश में सबसे पहले राजस्थान ने दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए ऑडियो-वीडियो कटेंट बनाकर रेकार्ड कायम कर दिया है। खास बात यह है कि नेत्रहीन विद्यार्थियों को वर्कशीट भी ब्रेल लिपि में ही मिल रही है। जबकि मूक बधिर विद्यार्थी पहली बार साइन भाषा में ऑनलाइन पढ़ाई शुरू हो गई है। इस अभियान की शिक्षा मंत्री गोविन्द सिंह डोटासरा, शिक्षा निदेशक सौरभ स्वामी व राज्य परियोजना निदेशक डॉ. भंवरलाल की ओर से ऑनलाइन नियमित रुप से मॉनिटरिंग की जा रही है। प्रदेशभर के दिव्यांग विद्यार्थियों को कक्षावार वाट्सएप गु्रपों से जोड़ा गया है। विद्यार्थियों को एक जुलाई से कटेंट मिलना भी शुरू हो गया है।
स्कूल से लेकर जिले तक जिम्मेदारी तयअभियान के तहत हर दिव्यांग विद्यार्थी को रोजाना कटेंट पहुंचाने के लिए स्कूल से लेकर जिला व प्रदेशस्तर तक अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की गई है। राज्य कोर टीम की ओर से जिलास्तरीय गु्रप में कटेंट भेजा जाएगा। यहां से ब्लॉक के सभी पीईईओ के पास यह कटेंट पहुंचेगा।
ऐसे समझें अभियान के फायदे का गणित1. बेरोजगार:रीट के जरिए प्रदेश में तृतीय श्रेणी शिक्षकों के 31 हजार हजार पदों पर भर्ती होनी है। इस भर्ती के जरिए विशेष शिक्षक लेवल प्रथम व द्वितीय के पदों पर भी भर्ती होनी है। यदि इस अभियान के जरिए नामांकन बढ़ता है तो विशेष शिक्षकों के पदों में इजाफा हो सकता है। क्योंकि अब तक हुई भर्तियों का गणित देखें तो यही सामने आता है कि दिव्यांगों के नामांकन के आधार पर पद स्वीकृत हुए है।2. नामांकन:प्रदेश में हर साल दिव्यांग विद्यार्थियों के नामांकन को लेकर अभियान चलाया जाता है। लेकिन इस बार विभाग ने नवाचार करते हुए सामान्य शिक्षकों को भी इस अभियान से जोड़ा। इस वजह से इस साल नामांकन 40 हजार से अधिक बढऩे की संभावना है।3. शैक्षिक गुणवत्ता:कोरोना की वजह से प्रदेश में पिछले एक साल से स्कूल बंद है। ऐसे में दिव्यांग विद्यार्थियों को अब उनकी आवश्यकता के हिसाब से कटेंट मिलने से शैक्षिक गुणवत्ता और मजबूत हो सकेगी। अभियान की वजह से ड्रॉप आऊट व निजी स्कूलों के दिव्यांग विद्यार्थियों को भी यह कटेंट मिल रहा है।
बच्चों के पास मोबाइल नहीं, सीकर से लेकर डूंगरपुर तक शिक्षकों ने समझा दर्द
डूंगरपुर: विशेष शिक्षिका घर-घर पहुंच, बांट रही आखर ज्ञानडूंगरपुर जिले के दोवड़ा ब्लॉक में कार्यरत विशेष शिक्षिका वैशाीली शर्मा रोल मॉडल के तौर पर सामने आई है। इलाके में ज्यादातर बच्चों के पास मोबाइल फोन नहीं है। ऐसे में वह रोजाना तीन बच्चों के घर पहुंच रही है। दिव्यांग बच्चों को शिक्षा से जोडऩे के लिए वह बच्चों में प्रश्नोतरी भी कराती है। इसके बाद खुद के खर्चे पर बच्चों को उपहार भी बांटती है। ब्लॉक की सीबीईओ अर्चना भट्ट व कार्यवाहक सीडब्लूएसएन प्रभारी महेश व्यास ने बताया कि अन्य शिक्षकों की ओर से घर-घर जाकर बच्चों को गृह कार्य दिया जा रहा है।
सीकर: कोई ले रहा तकनीक का सहारा तो कोई पहुंच रहासीकर सहित प्रदेश के अन्य जिलों के शिक्षकों ने नई राहें तलाशी है। इसके तहत सीकर में बच्चों को शिक्षा से जोडऩे के लिए वाट्सएप ग्रु्रपों की मदद ली जा रही है। इसके अलावा जिन विद्यार्थियों के परिवार में मोबाइल नहीं है या नेट की दिक्कत है वहां शिक्षक घरों तक भी पहुंच रहे हैं। पिछले दिनों शिक्षा विभाग के अधिकारी भी इसका निरीक्षण कर चुके है। समग्र शिक्षा के एडीपीसी रिछपाल सिंह व कार्यक्रम अधिकारी राजेश कुमार ने बताया कि अभियान की वजह से कई निजी स्कूलों के बच्चे भी नए नामांकित हो रहे हैं।
इनका कहना हैशिक्षकों व विभाग के अधिकारियों की मेहनत के दम पर राजस्थान ने दिव्यांग शिक्षा के मामले में समर्थ अभियान के जरिए मुहिम शुरू की थी। इसका असर अब ग्रास रूट पर नजर आने लगा है। पूरे देश में सबसे पहले दिव्यांग के विद्यार्थियों के लिए ऑडियो-वीडियो कटेंट राजस्थान ने बनाए है।गोविन्द सिंह डोटासरा, शिक्षा मंत्री
शिक्षा से वंचित दिव्यांगों को समर्थ अभियान के जरिए सरकारी स्कूलों से लगातार जोड़ा जा रहा है। इस साल नामांकन काफी बढऩे की आस है। ऑडियो-वीडियो कटेंट के जरिए होने वाली पढ़ाई को विद्यार्थियों की ओर से काफी पसंद किया जा रहा है। शिक्षक भी विद्यार्थियों के घर तक पहुंच रहे हैं।सौरभ स्वामी, शिक्षा निदेशक

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