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5 वजह जिसके चलते कैप्टन को जाना पड़ा

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जिसकी चर्चा इतने समय से चल रही थी, वो आखिर हो ही गया. कांग्रेस विधायक दल की बैठक की घोषणा के 24 घंटे से भी कम समय बाद, 18 सितंबर को कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) ने पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है.
48 विधायकों के कथित तौर पर पार्टी आलाकमान को पत्र लिखकर उन्हें हटाने की मांग करने के बाद से ही इस्तीफे कि अफवाहें आने लगी थीं. इसके चलते पंजाब के पार्टी प्रभारी हरीश रावत ने कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई. पहले से आशंका जताई जा रही थी कि कांग्रेस कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने के लिए मजबूर हो सकती है. कम से कम पंजाब की राजनीति में, इसने एक बड़े करियर का अंत किया, जिसने पंजाब के इतिहास में सबसे दर्दनाक दौर भी देखा.
पंजाब में कांग्रेस पर कैप्टन का बहुत कर्ज है. 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद कांग्रेस से उनके इस्तीफे से सिखों के बीच उन्हें काफी सम्मान मिला. हालांकि, कुछ साल बाद वो वापस कांग्रेस में लौट आए, लेकिन 1980 और 1990 के दशक के उस दाग से वो लगभग अछूते रहे, जिसने पंजाब में सिखों के बीच पार्टी की साख को काफी नुकसान पहुंचाया था. इसने 2002 में और फिर 2017 में भारी बहुमत के साथ कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने में अहम भूमिका निभाई. तो कैप्टन के लिए क्या गलत हुआ?
घटती लोकप्रियता
कैप्टन की अप्रूवल रेटिंग उनके कार्यकाल के मुश्किल से दो साल में ही गिरने लगी. 2019 की शुरुआत में, CVoter ट्रैकर के मुताबिक, कैप्टन की अप्रूवल रेटिंग 19 फीसदी थी और 2021 की शुरुआत में ये गिरकर 9.8 फीसदी हो गई. लेटेस्ट ट्रैकर के मुताबिक, उनकी अप्रूवल रेटिंग अब नेगेटिव में है. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, पार्टी आलाकमान ने इस साल अगस्त में पंजाब के कई जिलों में एक सर्वे किया था और इसने कैप्टन के खिलाफ बड़े पैमाने पर सत्ता विरोधी लहर का खुलासा किया था. इससे आलाकमान को एहसास हुआ कि अगर वो कैप्टन को नहीं हटाते हैं, तो पंजाब उनके हाथों से फिसल सकता है.
ड्रग माफिया के खिलाफ कार्रवाई नहीं
भ्रष्टाचार विरोधी सरकार का वादा कभी पूरा नहीं हुआ. ड्रग्स, रेत-खनन और केबल माफिया जो SAD-BJP शासन की एक विशेषता थी, कैप्टन के कार्यकाल में भी जारी रही. ये तब भी हुआ, जब कैप्टन ने गुटखा साहिब की शपथ ली कि वो ड्रग माफिया पर नकेल कसेंगे.
धार्मिक ग्रंथ बेअदबी मामलों में बादल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं
बरगारी में 2015 की बेअदबी की घटनाओं और बाद में महल कलां में प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की SIT रिपोर्ट को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा खारिज करने के बाद इस साल कैप्टन की लोकप्रियता में तेजी से गिरावट हुई. जनता में उम्मीद थी कि इस मामले में बादल की भूमिका का पर्दाफाश होगा और उनके खिलाफ कार्रवाई होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बेअदबी के मामलों में बादल के खिलाफ कार्रवाई की कमी से ये धारणा पैदा हुई कि कैप्टन उनके साथ नरमी बरत रहे हैं या कैप्टन की उनके साथ मिलीभगत है.
अधूरे वादें
कैप्टन अमरिंदर पर नौकरी देने और बेरोजगारी भत्ता देने जैसे अपने अन्य चुनावी वादों को पूरा न करने का भी आरोप लगाया गया था. जमीनी हालात ये भी बताते हैं कि बुजुर्गों के लिए 1500 रुपये मासिक पेंशन के पात्र कई लोगों को या तो 750 रुपये मिल रहे थे या कुछ मामलों में तो कुछ भी नहीं मिल रहा था. अधूरे वादों की अधिक संख्या के कारण ही पार्टी हाईकमान को चुनाव से पहले पूरा करने के लिए कैप्टन को 18 कार्यों की सूची देनी पड़ी.
विरोध प्रदर्शन
कैप्टन अमरिंदर के मुख्यमंत्री कार्यकाल को कई समूहों के विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ रहा है, जैसे सरकारी कर्मचारियों से लेकर पारा-टीचर्स, किसानों, आशा वर्कर्स, बेरोजगार युवाओं, दलित समूहों आदि. हालांकि, तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध का निशाना मुख्य रूप से केंद्र सरकार पर है, लेकिन प्रदर्शनरत किसानों ने राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ असंतोष का एक सामान्य माहौल बनाया और इसका असर कैप्टन पर भी पड़ रहा था.
हाल ही में आया कैप्टन का बयान कि किसानों का विरोध पंजाब की आर्थिक स्थिति और विकास को नुकसान पहुंचा रहा है, कैप्टन का किसानों के गुस्से से न जुड़ने का संकेत था. नवजोत सिंह सिद्धू ने अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोला कई विधायक और मंत्री अमरिंदर सिंह के खिलाफ थे 60 विधायकों ने इस्तीफे की धमकी दी थी. इन विधायकों ने अमरिंदर सिंह को नहीं हटाए जाने पर आप में जाने की धमकी दी थी.
सिद्धू ने कैप्टन की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए आलाकमान ने पार्टी के कई नेताओं से मुलाकात की थी. अमरिंदर सिंह को दिल्ली तलब किया गया आलाकमान ने कैप्टन के सामने वादे पूरे करने की शर्त रखी थी. कैप्टन पर हाईकमान को नजरअंदाज करने का आरोप लगा सरकार में अधिकारियों की मनमानी होने का आरोप लगा.
यह पूछे जाने पर कि उनकी भविष्य की रणनीति क्या होगी तो अमरिंदर सिंह ने कहा, मेरी 52 साल की राजनीति में जिन लोगों ने मेरा साथ दिया, उनके साथ बातचीत करने के बाद इस बारे में फैसला करूंगा. इस सवाल पर कि क्या वह नए मुख्यमंत्री का फैसला करेंगे तो उन्होंने कहा कि अपने साथियों से चर्चा के बाद ही कोई निर्णय लेंगे.
उन्होंने जोर देकर कहा, जहां तक मेरी भविष्य की राजनीति का सवाल है, तो एक विकल्प हमेशा रहता है, समय आने पर उस विकल्प को देखूंगा. मैं अपने साथियों से बात करके कोई फैसला करूंगा. इससे पहले, कांग्रेस के 50 से अधिक विधायकों ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री के पद से हटाने की मांग की थी. इसी पत्र के बाद पार्टी आलाकमान ने विधायक दल की बैठक बुलाने का निर्देश दिया.
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