राजस्थान की सीकर लोकसभा सीट जाट राजनीति का केंद्र रहा है, यही वजह रही कि जाटों की सियासत में बड़ा संदेश देने के लिए चौधरी देवीलाल से लेकर बलराम जाखड़ ,कुम्भाराम आर्य जैसे नेताओं ने इस सीट को चुना।
आजकलराजस्थान/ आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर देश में सियासी हलचल तेज हो गई है. राजस्थान में भी इसका भरपूर असर देखने को मिल रहा है. दोनों बड़े राजनीतिक दल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने आम चुनावों के लिए टारगेट 25 का मिशन लेकर रणनीति तैयार कर रही हैं. हालांकि हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों में राज्य के सियासी समीकरण बदले हैं. क्योंकि कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर राजस्थान में सरकार बनाई है।
2019 लोकसभा चुनावों में यहां कांग्रेस से सुभाष महरिया, बीजेपी से सुमेधानंद सरस्वती व माकपा से अमराराम मुख्य प्रत्याशी हैं।
राजस्थान के शेखावटी क्षेत्र की बात करें तो यह क्षेत्र शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है. लेकिन 2014 की मोदी लहर में बीजेपी ने इस मिथक को तोड़ते हुए कांग्रेस का यह मजबूत किला ढहा दिया. वैसे तो शेखावटी अंचल में लोकसभा तीन सीटें-झुंझुनू, सीकर और चूरू शामिल हैं. लेकिन प्रदेश और देश की जाट सियासत में सीकर की अपनी अलग पहचान है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
शेखावटी का जाट बहुल सीकर जिला प्रदेश में सैनिकों के जिले के नाम से जाना जाता है. सीकर की एक अलग पहचान इसलिए भी है क्योंकि इस क्षेत्र का इस्तेमाल तमाम सियासी दल देश की जाट सियासत में बड़ा संदेश देने के लिए करते रहे हैं. फिर चाहे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा सीकर से जाट आरक्षण का ऐलान हो या कांग्रेस के कद्दावर नेता बलराम जाखड़ और पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल का हरियाणा से आकर यहां से चुनाव लड़ना ही क्यों न हो. सीकर के वर्तमान सांसद स्वामी सुमेधानंद सरस्वती भी सीकर से न होकर पड़ोसी राज्य हरियाणा से ताल्लुक रखते हैं और जाट समुदाय के हैं।
आजादी के बाद 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में सीकर लोकसभा सीट पर रामराज्य पार्टी ने जीत हासिल की. इसके बाद 1957 और 1962 के चुनाव में लगातार दो बार कांग्रेस के रामेश्वरलाल टांटियां यहां से सांसद बने. 1967 का चुनाव भारतीय जनसंघ से गोपाल साबू ने जीता तो वहीं 1971 में कांग्रेस ने एक बार फिर वापसी की. 1977 की जनता लहर में कांग्रेस यह सीट बचा नहीं पाई और भारतीय लोकदल के टिकट पर जगदीश प्रसाद ने बाजी मारी. 1980 के चुनाव में जनता पार्टी-एस के कुंभाराम आर्य यहां से चुनाव जीते.
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1984 में कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे बलराम जाखड़ ने बीजेपी के बड़े ब्राह्मण नेता धनश्याम तिवाड़ी को हराकर सीकर में जीत का परचम लहराया. लेकिन 1989 के लोकसभा चुनाव में पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल ने जाखड़ के समक्ष ताल ठोक कर मुकाबला दिलचस्प बना दिया. हालांकि जाखड़ यह चुना देवीलाल से हार गए. लेकिन 1991 के चुनाव में कांग्रेस के बलराम जाखड़ ने एक बार फिर इस सीट पर वापसी की. 1996 के चुनाव में भी कांग्रेस को इस सीट पर जीत हासिल हुई. लेकिन इसके बाद लगातार तीन बार सीकर संसदीय सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा, जब 1998,1999, 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी सुभाष महारिया ने जीत का परचम लहराया.
हालांकि 2009 के चुनाव में महरिया, कांग्रेस के महादेव सिंह खंडेला से चुनाव हार गए. लेकिन 2014 की मोदी लहर में एक बार फिर बीजेपी ने इस सीट पर कब्जा जमा लिया. सीकर के सियासी समीकरण हाल के दिनों में बदले हैं क्योंकि बीजेपी के तीन बार के सांसद रहे सुभाश महरिया अब अपने भाई समेत कांग्रेस में शामिल हो गए हैं।कभी bjp के दिग्गज रहे घनश्याम तिवाड़ी भी कांग्रेस में शामिल होकर कांग्रेस का प्रचार कर रहे हैं।
सामाजिक समीकरण
सीकर लोकसभा क्षेत्र संख्या 5 एक सामान्य सीट है जिसे सीकर और जयपुर के कुछ हिस्से को मिलाकर बनाया गया है. साल 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की जनखंख्या 26,90,773 है जिसका 78.43 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण और 21.57 प्रतिशत शहरी आबादी है. जबकि कुल आबादी का 15.26 फीसदी अनुसूचित जाति और 3.37 फीसदी अनुसूचित जनजाति हैं. यहां की कुल आबादी का 82 फीसदी हिंदू और 12 फीसदी मुस्लिम हैं. सीकर जाट बहुल क्षेत्र है इसलिए कांग्रेस और बीजेपी और माकपा ने ज्यादातर यहां से जाट उम्मीदवार ही मैदान में उतारे हैं।
2014 लोकसभा चुनावों में किसको कितना
साल 2014 के चुनावी आंकड़ों के मुताबिक सीकर संसदीय सीट पर मतदाताओं की संख्या 17,70,424 जिसमें 9,44,231 पुरुष और 8,26,193 महिला मतदाता शामिल हैं. सीकर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें-सीकर, लक्ष्मणगढ़, नीमकाथाना, धोद, श्रीमाधोपुर, खंडेला, दांतारामगढ़ और चौमूं शामिल हैं. इसमें चौमूं विधानसभा जयपुर का हिस्सा है. चौमूं में माली समुदाय की खासी आबादी है, लिहाजा इस इलाके में माली वोट अहम भूमिका अदा करता है. हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में काग्रेस पार्टी ने सीकर संसदीय सीट के तहत आने वाली 8 विधानसभा सीटों में से 6 सीट पर कब्जा जमाया है, जबकि खंडेला विधानसभा सीट पर जीते निर्दलीय महादेव सिंह अब वापस कांग्रेस में शामिल हो गए हैं और एकमात्र चौमूं सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है।लेकिन वहाँ पर भी वर्तमान कांग्रेस प्रत्याशी सुभाष महरिया की शानदार व्यक्तिगत छवि है।
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में सीकर संसदीय सीट पर 60.2 फीसदी मतदान हुआ था, जिसमें बीजेपी को 46.9 फीसदी, कांग्रेस को 24.4 फीसदी वोट मिले. जबकी तीसरे स्थान पर पूर्व बीजेपी सांसद सुभाष महरिया ने निर्दलीय चुनाव लड़ते हुए 17.7 फीसदी वोट हासिल किए. जहां बीजेपी से स्वामी सुमेधानंद सरस्वती के 4,99,428 वोट मिले तो वहीं कांग्रेस से प्रताप सिंह जाट 2,60,232 वोट हासिल कर दूसरे नंबर पर रहें. वहीं निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर सुभाष महरिया को 1,88,841 वोट मिले।
इस लोकसभा चुनाव के ओपीनियन
बीजेपी प्रत्याशी स्वामी सुमेधानंद यहाँ फिर इस बार मोदी लहर के सहारे हैं।स्वामी जी अभी तक एक बड़े जन राजनेता की छवि नहीं बना पाए इसकी एक बड़ी वजह उनकी जनता से सीधी पहचान नहीं होना है।उनकी छवि एक सपष्ट वादी,साफ छवि के स्वामी की है।अच्छे वक्ता हैं।स्थानीय नहीं होना भी एक दिक्कत है।लोकसभाक्षेत्र में एकमात्र चौमूं से बीजेपी विधायक अन्य सातों विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक व राजस्थान में कांग्रेस सरकार तथा इस बार 2014 जैसी मोदी लहर नही होना इनके लिये परेशानी।
सुभाष महरिया एक जुझारू नेता हैं।बीजेपी को सीकर में आगे बढ़ाने का काम इन्होंने खूब किया पर पिछली बार पार्टी ने टिकट नहीं देकर व पार्टी में उपेक्षित रहे।जिनके बाद कांग्रेस जॉइन की ।व विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत में बड़ा योगदान किया जिससे कांग्रेस के सभी लोग एहसानमंद।और सभी सहयोग कर रहे।काफी वर्षों तक जनता के बीच रहकर हर गांव ढाणी के व्यक्ति से व्यक्तिगत जानकारी इनकी विशेषता रही है।प्रदेश के बड़े जाट नेता होने की वजह से जाट बहुल सीट पर मतदाताओं का इनके प्रति सहानुभूति है।
दलित नेता परसराम मोरदिया को धोद में पूर्ण सहयोग व sc/st में बीजेपी की प्रति सन्देह के कारण कांग्रेस की तरफ झुकाव। अल्पसंख्यक समाज का भी झुकाव पूर्ण रूप से महरिया की तरफ
माकपा के नेता अमराराम की क्षेत्र में अच्छी छवि है।जनता किसान नेताओं में सबसे पहले अमराराम का नाम लेते हैं।हर बार किसानों मजदूरों के लिये संघर्ष करते रहते हैं।पर दक्षिण पंथी विचारधारा बढ़ने व क्षेत्र में एक भी विधायक नहीं होने व 2 -3 विधानसभा क्षेत्र को छोड़कर पूरे लोकसभा क्षेत्र में माकपा के जनाधार नहीं होने के कारण कमजोर पड़े हैं।क्षेत्र का युवा वर्ग का झुकाव मोदी की ओर होने कारण कमजोर पड़े क्योंकि क्षेत्र का युवा इससे पहले सबसे ज्यादा sfi से जुड़ा था।
फिलहाल बीजेपी कांग्रेस में कांटे की टक्कर है।पर सीकर लोकसभा सीट पर कांग्रेस सबसे ज्यादा मजबूत दिखाई दे रही है।महरिया का पलड़ा भारी लग रहा है।