मौजूदा सत्ता के सामने जनता के तमाम मुद्दे और सत्ता की नाकामियां मुंह बाए हुए खड़ी है और लंबे समय से खड़ी हैं, लेकिन इन तमाम नाकामियों को दबाने के लिए मौजूदा सत्ता द्वारा देश में हो रहे चुनाव से ठीक पहले चाहे वह लोकसभा के चुनाव हो या फिर अलग-अलग राज्यों के, किसी टीवी सीरियल के एपिसोड की तरह 1 एपिसोड रिलीज कर दिया जा रहा है. जिसकी आड़ में तमाम मुद्दे दब जा रहे हैं.
बात अगर 2019 लोकसभा चुनाव की की जाए तो भाजपा ने अपने 5 साल के कार्यकाल में जनता के हित के लिए, युवाओं के रोजगार के लिए, किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए, महिला सुरक्षा के लिए, देश की शिक्षा व्यवस्था के लिए, देश की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के लिए क्या-क्या किया ? इस पर कोई ठोस रिपोर्ट नहीं दी.
2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने देश के अंदर बढ़ रही बेरोजगारी को मुद्दा बनाया था. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस द्वारा कहा गया था कि, देश के अंदर बेरोजगारी अपने पिछले 45 साल का रिकॉर्ड तोड़ चुकी है और यह आंकड़े कई एजेंसियों ने जारी किए थे. लेकिन भाजपा ने इन आंकड़ों को आधारहीन बताया था. भाजपा की प्रचार एजेंसी मीडिया ने भी इन आंकड़ों पर कोई रिपोर्ट पेश नहीं की थी. कोई डिबेट नहीं कराई थी, हांलाकि 2019 लोकसभा चुनाव संपन्न होने के बाद मौजूदा सत्ता ने यह माना था कि, देश के अंदर बेरोजगारी भयावह रूप ले चुकी है और अपने 45 साल का रिकॉर्ड तोड़ चुकी है.
देश के अंदर युवा रोजगार की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं, किसान अपनी आर्थिक हालत से परेशान होकर आत्महत्या करने पर मजबूर है, महिलाओं के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ रहे हैं लेकिन 2019 का लोकसभा चुनाव इन मुद्दों पर मौजूदा सत्ता ने नहीं लड़ा था, देश की जनता ने भी अपने खुद के इन मुद्दों पर एकजुट होकर भाजपा को हराने के लिए किसी एक पार्टी के नेतृत्व में वोट नहीं किया था.
2019 लोकसभा चुनाव में मौजूदा सत्ता बुरी तरीके से जनता के मुद्दों पर घिरी हुई थी. देश के आर्थिक हालात पर सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़े लंबे समय से संदेह के घेरे में हैं और कई अर्थशास्त्री कह चुके हैं कि सरकार गलत आंकड़े पेश कर रही है.
अपनी तमाम नाकामियों के बावजूद और जनता के मुद्दों पर बुरी तरीके से घुटनों के बल गिरी हुई मौजूदा मोदी सत्ता, 2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले छद्म राष्ट्रवाद के रथ पर सवार होकर अपनी नाकामियों को पीछे छोड़ते हुए, उग्र होकर चुनाव प्रचार करते हुए, जनता को गुमराह करने में कामयाब हो गई.
देश के अंदर जो भी चुनाव हो रहे हैं उसके ठीक पहले मौजूदा सत्ता द्वारा किसी सीरियल की तरह 1 एपिसोड रिलीज किया जा रहा है. यही देखने को मिला था 2019 चुनाव से ठीक पहले.
2019 का पूरा चुनाव प्रचार पुलवामा में शहीद हुए जवानों के इर्द-गिर्द घूमता रहा जिसमें मौजूदा सत्ता ने पाकिस्तान और आतंकवाद को लपेटते हुए, पुलवामा हमले में जो जवान शहीद हुए उनके नाम पर जनता से वोट मांगा. शहीदों पर राजनीति की. जनता भी सेना के नाम पर अपनी तमाम परेशानिया भूल चुकी थी. भाजपा का जो वोट बैंक था उसने खुलकर एकजुट होकर भाजपा को वोट दिया. इसके अलावा भी भाजपा को वोट मिला. बाकी जो वोट बचा था वह अलग-अलग पार्टियों में बट चुका था, एकजुट नहीं हो पाया किसी एक पार्टी के नेतृत्व में, जिसका नतीजा यह हुआ कि विपक्ष को बुरी तरह हार का मुंह देखना पड़ा.
2019 चुनाव से ठीक पहले आतंकवादियों द्वारा हमारे जवानों पर हमला होता है और वह मानो मौजूदा सत्ता के लिए संजीवनी साबित होता है, मौजूदा सत्ता अपनी तमाम नाकामियों के बावजूद भारी उत्साह के साथ चुनाव प्रचार में लग जाती है और 2019 लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत दर्ज करती है.
2019 लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई भाजपा महाराष्ट्र और हरियाणा का चुनाव भी राष्ट्रीय मुद्दों पर ही लड़ी है. महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या एक बड़ा मुद्दा था, महाराष्ट्र में किसानों द्वारा पिछले कुछ सालों में बड़े स्तर पर कई आंदोलन भी हुए थे, सत्ता के खिलाफ महाराष्ट्र में अभी हाल ही में चुनाव से ठीक पहले पीएमसी बैंक के खाताधारकों द्वारा सत्ता का भारी विरोध हुआ था.
महाराष्ट्र में भी पिछले 5 सालों में भाजपा और शिवसेना के गठबंधन की सरकार थी जिसके खिलाफ जनता में भारी आक्रोश था, इस चीज को भांपते हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा द्वारा एक और एपिसोड रिलीज किया जाता है.
जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को महत्वहीन करके जम्मू कश्मीर को 2 केंद्र शासित राज्यों में तब्दील कर दिया गया और कहा गया कि धारा 370 जम्मू कश्मीर में आतंकवाद की जननी है. अब जम्मू-कश्मीर की समस्या का समाधान हो गया है. यह कहते हुए पूरे महाराष्ट्र में भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं ने चुनावी रैलियां की और भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. हलाकि बहुमत का आंकड़ा अकेले दम पर भाजपा को नहीं मिला.
ठीक ऐसा ही हाल है हरियाणा का भी है. हरियाणा में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा माना जा रहा था. क्योंकि हरियाणा में सैकड़ों कंपनियों पर ताले लगे हुए थे, बेरोजगार युवा हरियाणा की भाजपा सरकार से सवाल कर रहे थे. भाजपा के खिलाफ जनता के बीच हरियाणा में भारी आक्रोश था. इसके बावजूद हरियाणा में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में चुनाव के बाद सामने आई, हालांकि बहुमत का आंकड़ा भाजपा को अकेले दम पर हरियाणा में भी नहीं मिला, लेकिन हरियाणा का भी चुनाव प्रचार जम्मू-कश्मीर आतंकवाद और पाकिस्तान के इर्द-गिर्द भाजपा के नेताओं ने घुमाया.
आने वाले कुछ समय में झारखंड और दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं उसके ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या पर अपना फैसला दे दिया है, हालांकि यह किसी राजनीतिक पार्टी के कारण फैसला नहीं आया है, लेकिन फिर भी पूरी उम्मीद है भाजपा के बड़े-बड़े नेता हरियाणा और दिल्ली के विधानसभा चुनाव प्रचार में अयोध्या मामले पर श्रेय लेते हुए जनता के मुद्दों से भागते हुए नजर आएंगे.
कहने का बस यही तात्पर्य है कि, जनता के मुद्दों पर बात करने से भाजपा के तमाम नेता बचते हुए नजर आ रहे हैं. राष्ट्रीय मुद्दों में देशभक्ति की चाशनी लपेटकर जनता की भावनाओं से खेलते हुए भाजपा लगातार चुनाव तो जीत रही है लेकिन कब तक ? कब तक जनता अपने मुद्दों को भूलेगी ? कब तक देश की जनता अपने बच्चों के भविष्य के बारे में नहीं सोचेगी ? कब तक देश के युवा अपने रोजगार के बारे में नहीं सोचेंगे ? कब तक देश की महिलाएं अपने बारे में नहीं सोचेंगी अपनी सुरक्षा के बारे में नहीं सोचेंगी ?
जनता अपनी जरूरतों को लेकर मौजूदा सत्ता की नाकामियों को लेकर जिस दिन मौजूदा सत्ता के खिलाफ किसी 1 पार्टी के नेतृत्व में एकजुट हुई उस दिन भाजपा का क्या होगा ?
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