सीकर. सीकर जिले में मलेरिया की भयावह स्थिति नहीं है लेकिन सीकर शहर व फतेहपुर ब्लॉक में किए जा रहे प्रयास यहां के लिए असफल साबित हो रहे हैं। यहां मलेरिया का सीजन शुरू होते ही मरीजों की लाइन लग जाती है। मलेरिया के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए ही 25 अप्रेल को विश्व मलेरिया दिवस मनाया जाता है। पिछले साल विभाग की ओर से शुरू होने वाली मौसमी बीमारियों के मद्देनजर प्रदेश के कई जिलों में सर्वे कराया गया था। इसमें सीकर शहर और फतेहपुर को मलेरिया व डेंगू की दृष्टि से रोकथाम के लिए निर्देश जारी किए गए थे। विभाग ने इन तहसीलों को रिस्क जोन घोषित किया है। इन क्षेत्रों में एंटी लार्वा व एंटी एडल्ट एक्टीविटी करने का आदेश भी दिए गए थे लेकिन स्थिति पर अपेक्षित नियंत्रण नहीं हो पाया। सीकर में मलेरिया के सर्वाधिक रोगीचिकित्सा विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो सीकर शहर में पांच साल में सबसे अधिक 70 रोगी मिले हैं। ऐसे में आंकड़े बताते हैं मलेरिया के मच्छर का डंक यहां खतरनाक साबित हो रहा है। मलेरिया के जितने रोगी जिले के अन्य उपखंडों में मिलते हैं उतने अकेले सीकर और फतेहपुर व पिपराली ब्लॉक में ही मिलते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां मलेरिया का प्रकोप कितना अधिक है। हालांकि दो साल से कुछ हद तक नियंत्रण पाया गया है। डा. रघुनाथ चौधरी ने बताया कि मलेरिया एक वाहक जनित संक्रामक रोग है। चार प्रकार के परजीवी मनुष्य को प्रभावित करते हैं। उक्त परजीवी एनोफिलेज मच्छर के काटने से रक्त में फैलते हैं। इस मच्छर के काटने से मलेरिया के परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं में प्रवेश कर जाते हैं। इससे रक्तहीनता, कमजोरी व सांस फूलने लगती है और चक्कर आने लग जाते हैं, पेशाब में खून आने लगता है। गंभीर स्थिति होने पर मरीज की मौत भी हो सकती है। बुखार आना, कंपकंपी, जोड़ों में दर्द, उल्टी इसके प्रमुख लक्षण हैं। भारत में वर्ष 2017 में 8 लाख 44 हाजर 558 रोगी मिले, इसमें 194 की मलेरिया से मौत हो गई थी।
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