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शिल्पशाला बनी गुरु शिष्य की परंपरा को आगे बढ़ाने का सशक्त माध्यम

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शिल्पशाला बनी गुरु शिष्य की परंपरा को आगे बढ़ाने का सशक्त माध्यम

जयपुर, 26 जून। जयपुरवासियों में परंपरागत शिल्प कला को सीखने की इस कदर ललक देखने को मिल रही है कि शिल्पशाला में गुर सीखा रहे शिल्प गुरु स्वयं हतप्रभ व उत्साहित दिख रहे हैं। उद्योग विभाग ने पहली बार अनूठी पहल करते हुए परंपरागत शिल्प कलाओं से नई पीढ़ी को जोड़ने के लिए भारतीय शिल्प संस्थान में पांच दिवसीय शिल्प शाला आयोजित की है।

आयुक्त उद्योग डॉ. कृृष्णाकांत पाठक ने बताया कि अवार्डी शिल्प गुरुओं का आगे आकर प्रतिभागिता निभाना गुरु शिष्य परंपरा को आगे बढ़ाने का सशक्त उदाहरण है।
भारतीय शिल्प संस्थान में आयोजित शिल्पशाला का नजारा ही कुछ अलग दिखाई दे रहा है। जहां एक और प्रदेश के ख्यातनाम शिल्पगुरु स्वयं शिल्प के गुर सिखा रहे हैं तो बच्चों, युवाओं, युवतियों और उम्रदराज महिलाओं व पुरुष कुछ नया सीखने की ललक मेें उम्र भी कोई बाधा नहीं बन रही है। लैंडस्केप पेंटिंग में दादा-पोता साथ साथ गुर सीख रहे है तो बच्चे पूरे उत्साह के साथ पेपरमैशे के आकर्षक गणेश जी व अन्य शिल्प तैयार करने में जुटे हैं। और तो और पांच दिवसीय शिल्प शाला में चाक पर मिट्टी को तरह तरह के आकार देते बच्चों और युवाओं में अलग ही तरह का उत्साह देखा जा रहा है। इसके साथ ही पॉटरी और ब्लूपॉटरी की तकनीक सीखने में भी कोई पीछे नहीं रहना चाहता।

आयुक्त डॉ. पाठक ने बताया कि परंपरागत शिल्प के प्रति उत्साह को इसी से देखा जा सकता है कि शिल्पशाला में 155 प्रतिभागी पूरे मनोयोग से सीख रहे हैं। शिल्पशाला में सर्वाधिक उत्साह हैण्ड ब्लॉक पिं्रटिंग में देखा जा रहा है। हैण्ड ब्लॉक प्रिंटिंग में नेशनल अवार्डी अवधेश पाण्डेय से कपड़े के चयन, रंग संयोजन से लेकर प्रिंट तक के गुर युवतियों के साथ ही उम्रदराज महिलाओ द्वारा भी पूरे उत्साह से सीखा जा रहा है। कुंदन मीनाकारी के नेशनल अवार्डी सरदार इन्दर सिंह कुदरत बच्चों को धातुओं पर उकेरने के गुर बता रहे हैं तो परंपरागत मेंहदी की डिजाइन सीखने का भी जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है।

ब्लॉक प्रिंटिंग, टाई एण्ड डाई, लाख, वुडन, लैण्ड स्केप, चर्म शिल्प, मिटटी के बर्तन, टेराकोटा, ब्लू पाटरी, मीनाकारी, उस्ताकला, डेकापेजआर्ट, पेपरमेशे, मिनियचर पेंटिंग, मेंहदी आदि की सरदार इन्दर सिंह कुदरत, प्रीति काला, मिनियश्चर पेंटिंग में बाबू लाल मारोठिया, लाख शिल्प में ऎवाज अहमद, मिट्टी के बर्तन/टेराकोटा में राधेश्याम व जीवन लाल प्रजापति, ब्लू पॉटरी में संजय प्रजापत और गौपाल सैनी, ज्वैलरी वुडन क्राफ्ट में भावना गुलाटी, हाथ-ठप्पा छपाई में संतोष कुमार धनोपिया, हैण्ड ब्लॉक प्रिंटिंग में अवधेश पाण्डेय, पेपरमैशी में सुमन सोनी, मेहंदी में प्रीतम जिरोतिया और मनीषा रेनीवाल, हाथ कागज में अनिल पारीक, कार्विंग ज्वैलरी में दीपक पालीवाल, चर्मशिल्प में जितेन्द्र यादव और संतोष सैनी, तारकशी में रामस्वरुप शर्मा, लैण्ड स्केप पेंटिंग में शमीम निलोफर नीलम नियाज आदि गुरुजन ज्ञान प्रदान कर रहे हैं।

भारतीय शिल्प संस्थान की निदेशक तूलिका गुप्ता ने बताया कि जयपुरवासियों में सीखने का गजब का उत्साह है। शिल्पशाला के प्रभारी एसएस शाह ने बताया कि सहभागिता से विभाग भी उत्साहित है। उद्योग विभाग के श्री रवि गुप्ता, भारतीय शिल्प संस्था के उपनिदेशक रश्मी पारीक और धमेन्द्र समन्वयक है।

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