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पाठ्यक्रम बदलाव मामला: सावरकर को’पुर्तगाल के पुत्र’ पढ़ाने पर फिर गरमाई सियासत

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आजकल राजस्थान /जयपुर।

राजस्थान सरकार की ओर से स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव की सियासत थमने का नाम ही नहीं ले रही।पूर्व शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी ने प्रदेश की गहलोत सरकार पर एक बार फिर निशाना साधा है। देवनानी ने एक ट्वीट कर कहा कि राजस्थान की कांग्रेस सरकार के द्वारा वीर सावरकर को ‘पुर्तगाल का पुत्र’ कहा जाना एक स्वातंत्र्य वीर का अपमान है। राज्य की कांग्रेस सरकार का एक ही एजेंडा है, भारतीय संस्कृति और प्रदेश के वीर एव वीरांगनाओं का अपमान करना व एक परिवार विशेष का बखान करना।
इससे पहले भी देवनानी इस मामले को लेकर प्रदेश की कांग्रेस सरकार को घेर चुके हैं। उन्होंने कहा था कि कांग्रेस हिंदुत्व विरोधी मानसिकता की पार्टी है। वह ऐसे राष्ट्रभक्त की उपेक्षा करती है, जो हिंदुत्व से जुड़े रहे हैं। अब पाठ्यक्रम में बदलाव कर वीर सावरकर के बारे में अनर्गल इतिहास पढ़ा रही है। यह कार्य निंदनीय और अशोभनीय है। वीर सावरकर को दो बार आजीवन कारावास मिला। वे अंग्रेजों से लड़ते रहे। उनके पाठ को सही प्रकार से बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए।

आपको बता दें कि राजस्थान में पिछली राजे सरकार के कई फैसले पलट चुकी गहलोत सरकार ने स्कूली पाठ्यक्रम में सावरकर की जीवनी वाले हिस्से में बदलाव किया है। विनायक दामोदर सावरकर को तीन साल पहले भाजपा सरकार में तैयार सिलेबस में वीर, महान देशभक्त और महान क्रांतिकारी बताया गया था। लेकिन अब कांग्रेस शासन में नए सिरे से तैयार स्कूली पाठ्यक्रम में उन्हें वीर नहीं बताकर जेल की यातनाओं से परेशान होकर ब्रिटिश सरकार से दया मांगने वाला बताया है।

वसुंधरा राजे सरकार के समय यह था पाठ्यक्रम में  -वीर सावरकर की जीवनी की शुरुआती कुछ लाइनों में लिखा था कि वीर सावरकर महान क्रांतिकारी, महान देशभक्त और महान संगठनवादी थे। उन्होंने आजीवन देश की स्वतंत्रता के लिए तप और त्याग किया। उसकी प्रशंसा शब्दों में नहीं की जा सकती। सावरकर को जनता ने वीर की उपाधि से विभूषित किया। अर्थात वे वीर सावरकर कहलाए। भाजपा शासन में पढ़ाया गया था कि सावरकर ने अभिनव भारत की स्थापना 1904 में की थी।

गहलाेत सरकार ने अब ये किया बदलाव -सावरकर की जीवनी में नए तथ्य जाड़े गए हैं। लिखा है कि जेल के कष्टों से परेशान होकर सावरकर ने ब्रिटिश सरकार के पास 4 बार दया याचिकाएं भेजी थी। इसमें उन्होंने सरकार के कहे अनुसार काम करने और खुद को पुर्तगाल का पुत्र बताया था। ब्रिटिश सरकार ने याचिकाएं स्वीकार करते हुए सावरकर को 1921 में सेलुलर जेल से रिहा कर दिया था और रत्नागिरी जेल में रखा था।

यहां से छूटने के बाद सावरकर हिंदु महासभा के सदस्य बन गए और भारत को एक हिंदू राष्ट्र स्थापित करने की मुहिम चलाते रहे। दूसरे विश्वयुद्ध में सावरकर ने ब्रिटिश सरकार का सहयोग किया। वर्ष 1942 में चले भारत छोड़ो आंदोलन का सावरकर ने विरोध किया था। महात्मा गांधी की हत्या के बाद उन पर गोडसे का सहयोग करने का आरोप लगाकर मुकदमा चला। हालांकि बाद में वे इससे बरी हो गए। सावरकर ने अभिनव भारत की स्थापना 1906 में की थी।

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